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बिल्ली के बच्चे

सुरेश चन्द्र ‘सर्वहारा’
कोटा(राजस्थान)
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घूम रहे घर-आँगन में बिल्ली के बच्चे,
माँ सोई है और पास ये उसके फिरते
उछल-कूद कर इक-दूजे पर रहते गिरते,
उड़ा रहे हैं चिंता के सारे परखच्चे।
बच्चे हैं ये अभी समझ के थोड़े कच्चे,
पर चिन्ता से मन इनके हैं कभी न घिरते
निडर बने बाहर गलियों में रहे विचरते,
कुत्तों से ये कभी कभी खा जाते गच्चे।
इन बच्चों में आओ हम बच्चे बन जाएँ,
दुःख-दर्दों को दुनिया भर के कुछ तो भूलें
वर्तमान के सुखद क्षणों को खुद में ढालें,
रुँधे गले से हम बच्चों की किलकारी गाएँ।
छोटी-छोटी खुशियों के झूले पर झूलें,
सहज भाव का जीवन इन जैसा अपना लें॥

परिचय-सुरेश चन्द्र का लेखन में नाम `सर्वहारा` हैl जन्म २२ फरवरी १९६१ में उदयपुर(राजस्थान)में हुआ हैl आपकी शिक्षा-एम.ए.(संस्कृत एवं हिन्दी)हैl प्रकाशित कृतियों में-नागफनी,मन फिर हुआ उदास,मिट्टी से कटे लोग सहित पत्ता भर छाँव और पतझर के प्रतिबिम्ब(सभी काव्य संकलन)आदि ११ हैं। ऐसे ही-बाल गीत सुधा,बाल गीत पीयूष तथा बाल गीत सुमन आदि ७ बाल कविता संग्रह भी हैंl आप रेलवे से स्वैच्छिक सेवानिवृत्त अनुभाग अधिकारी होकर स्वतंत्र लेखन में हैं। आपका बसेरा कोटा(राजस्थान)में हैl

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