डॉ.सत्यवान सौरभ
हिसार (हरियाणा)
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जब दौलत की लालसा,बांटे मन के खेत,
ठूँठा-ठूँठा जग लगे,जीवन बंजर रेतl
दो पैसे क्या शहर से,लाया अपने गाँव,
धरती पर टिकते नहीं,अब सौरभ
के पाँवl
तुझमें मेरी साँस है,मुझमें तेरी जान,
आओ मिलकर तय करें,हम अपनी पहचान।
कहा सत्य ने झूठ से,खुलकर बारम्बार,
यार मुखौटे और के,रहते हैं दिन चारl
कौन पूछता योग्यता,तिकड़म है आधार,
कौवे मोती चुन रहे,हंस हुए बेकारl
मन बातों को तरसता,समझे घर में कौन,
दामन थामे फ़ोन का,बैठे हैं सब मौनl
जिनकी खातिर मैं लड़ा,दुनिया से हर बार,
अंत समय में वो सभी,निकले थोथे यारll