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बदला

बाबूलाल शर्मा
सिकंदरा(राजस्थान)
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बदला-
बदला लिया कलिंग ने,किया मगध का ह्रास!
दोनो तरफ विनाश बस,पढ़िए जन इतिहास!
पढ़िये जन इतिहास,सत्य जो सीख सिखाए!
भूत भावि संबंध,शोध नव पंथ दिखाए!
शर्मा बाबू लाल,करो मत मानस गँदला!
लेते देते हानि,सखे दु:ख दायक बदला!

दुनिया-
दुनिया मतलब की हुई,स्वार्थ भरा संसार!
धर्म सनातन की सखे,बिकती सीख उधार!
बिकती सीख उधार,पंथ दादुर सम बोले!
पढ़ अंग्रेजी बोल,नये युग उड़े हिंडोले!
शर्मा बाबू लाल,भूलते गज वह गुनिया!
एकल अब परिवार,भीड़ में एकल दुनिया!

तपती-
तपती असि धनु वीरता,मरुथल राजस्थान!
सहज पतंगाकार सम,किले महल पहचान!
किले महल पहचान,आन इतिहास बखाने!
आतुर युवा किशोर,देश हित शक्ति दिखाने!
शर्मा बाबू लाल,बाजरी सरसों पकती!
आन बान अरु शान,जवानी जन की तपती!

मेरा-
मेरा-मेरा सब करे,मैं का भाव कुभाव!
ममता माया मोह मैं,कारण द्वेष दुराव!
कारण द्वेष दुराव,अहं का भाव विनाशी!
हम का बोल उवाच,हमारे हों विश्वासी!
शर्मा बाबू लाल, समझ नित नया सवेरा!
मनुज हितैषी मान, त्याग भव तेरा मेरा!

सबका-
सबका पानी आसमां,सिंधु सरित परिवेश!
पृथ्वी पवन प्रकाश पर,पलता प्रेम प्रदेश!
पलता प्रेम प्रदेश,देश हित जीवन अपना!
पर उपकारी भाव,भारती सेवा सपना!
शर्मा बाबू लाल,माल्य के हम सब मनका!
अपना भारत देश,तिरंगा अपना सबका!

आगे-
आगे उड़े पतंग तो,पीछे रहती डोर!
कठपुतली-सी नाचती,मन के वश दृग कोर!
मन के वश दृग कोर,रहे मन वश तृष्णा के!
इच्छा तृष्णा मोह,कृष्ण वश में कृष्णा के!
शर्मा बाबू लाल,बँधे सब प्रभु के धागे!
लगते सब असहाय,मनुज विधना के आगे!

मौसम-
आते मौसम की तरह,सुख-दु:ख जीवन संग!
गर्मी या बरसात हो,शीत कपाएँ अंग!
शीत कपाएँ अंग,पवन पुरवाई चलती!
कभी बसंत बयार,आश जन मन में पलती!
शर्मा बाबू लाल,विपद मिट हर्ष सुहाते!
बदले जीवन राग, रंग सम मौसम आते!

जाना-
जाना तो तय हो गया,जब जन्मा इंसान।
दुर्लभ मानुष देह यह,रख अच्छे अरमान।
रख अच्छे अरमान,भारती से वर माँगो।
बुरे कर्म परिहार,द्वेष सब खूँटी टाँगो।
शर्मा बाबू लाल,गीत वीरों के गाना।
जन्म मिला जिस हेतु,काम पूरे कर जाना।

करना-
करना केवल कर्म नर,मत कर फल की आस।
भले कर्म होते फलित,मान ईश विश्वास ।
मान ईश विश्वास,कर्म करना उपकारी।
देश धरा आकाश,पवन पानी हितकारी।
शर्मा बाबू लाल,तिरंगे हित ही मरना।
मृत्यु शाश्वत सत्य,अमर भारत माँ करना।

दीपक-
जलता पहले तो स्वयं,पीछे तिमिर पतंग।
देता दीपक रोशनी,घृत बाती के संग।
घृत बाती के संग,जले नित जन उपकारी।
करें प्राण उत्सर्ग,लोक हित बन तम हारी।
शर्मा बाबू लाल,स्वप्न नित नूतन पलता।
चाहे तम का अंत,नित्य ही दीपक जलता।

परिचय : बाबूलाल शर्मा का साहित्यिक उपनाम-बौहरा हैl आपकी जन्मतिथि-१ मई १९६९ तथा जन्म स्थान-सिकन्दरा (दौसा) हैl वर्तमान में सिकन्दरा में ही आपका आशियाना हैl राजस्थान राज्य के सिकन्दरा शहर से रिश्ता रखने वाले श्री शर्मा की शिक्षा-एम.ए. और बी.एड. हैl आपका कार्यक्षेत्र-अध्यापन(राजकीय सेवा) का हैl सामाजिक क्षेत्र में आप `बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ` अभियान एवं सामाजिक सुधार के लिए सक्रिय रहते हैंl लेखन विधा में कविता,कहानी तथा उपन्यास लिखते हैंl शिक्षा एवं साक्षरता के क्षेत्र में आपको पुरस्कृत किया गया हैl आपकी नजर में लेखन का उद्देश्य-विद्यार्थी-बेटियों के हितार्थ,हिन्दी सेवा एवं स्वान्तः सुखायः हैl

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