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किस रंग रंगूं

मयंक वर्मा ‘निमिशाम्’ 
गाजियाबाद(उत्तर प्रदेश)

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सोचा कि रंग दूं तुम्हें होली के रंग से,
फिर सोचा कि रंगू तो रंगू किस रंग से।

लाल रंग आया खयाल में,
पर तेरे होंठों से सोज़ नहीं होगा।
गुलाबी सोचा मल दूं,
पर तेरे गालों से सुर्ख नहीं होगा।

नीला भी देखा लेकर हाथ में,
पर तेरी आँखों से गहरा नहीं था।
पीला भी देखा मसल कर,
पर तेरे चेहरे की चमक से फीका ही था।

काला देख कर थोड़ी हँसी भी आई,
पर तेरे बालों की घटाएँ नजरों पर छाई।
सफ़ेद ही रंग दूं सब रंग छोड़ कर,
पर तेरे श्वेत मन की याद आई।

हरा,बैंगनी थाल सजे थे,
और न जाने कैसे-कैसे रंग भी देखे।
हर रंग अधूरा लगता है,
तुमसे ये सारे कुछ कम ही देखे।

अब क्या रंगूं तुम्हें किसी और रंग से,
जब सराबोर हो चुकी हो मेरे प्यार के रंग से॥

परिचय-मयंक वर्मा का वर्तमान निवास नई दिल्ली स्थित वायुसेना बाद (तुगलकाबाद)एवं स्थाई पता मुरादनगर,(ज़िला-गाजियाबाद,उत्तर प्रदेश)है। उपनाम ‘निमिशाम्’ है। १० दिसम्बर १९७९ को मेरठ में आपका जन्म हुआ है। हिंदी व अंग्रेज़ी भाषा जानने वाले श्री वर्मा ने बी. टेक. की शिक्षा प्राप्त की है। नई दिल्ली प्रदेश के मयंक वर्मा का कार्यक्षेत्र-नौकरी(सरकारी) है। इनकी लेखन विधा-कविता है। लेखनी का उद्देश्य-मन के भावों की अभिव्यक्ति है। पसंदीदा हिंदी लेखक व प्रेरणापुंज डॉ. पूजा अलापुरिया(महाराष्ट्र)हैं।

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