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दया

रोहित मिश्र,
प्रयागराज(उत्तरप्रदेश)
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रमेश रोज की तरह आज भी अपने विद्यालय से पैदल ही आ रहा था। तभी उसकी नजर सड़क किनारे चोटिल कुत्ते के बच्चे पर चली गई। वह समझ गया कि किसी वाहन की चपेट में वह बच्चा आ गया था। बच्चा दर्द से कराह रहा था। छोटे से बच्चे का दर्द उससे देखा नहीं गया और वह उसकी मलहम-पट्टी के लिए उसे अपने घर ले आया।
कुत्ते के बच्चे को जैसे ही रमेश की मम्मी ने रमेश की गोदी में देखा,वैसे ही रमेश की मम्मी बोली- ‘कहाँ से उठा लाए हो ये कुत्ते का बच्चा ? जाओ जहाँ से लाए हो वहीं छोड़ आओ,पापा को मालूम होगा तो डाँट खाओगे।’
रमेश बोला-‘मम्मी,इस बच्चे को किसी गाड़ी वाले ने कुचल दिया है और मुझसे इसका दर्द देखा नहीं गया।’
रमेश की मम्मी सारी बात समझ गई। उन्होंने खुद रमेश के साथ कुत्ते के बच्चे के घाव पर मलहम पट्टी की। बच्चा भले ही जानवर हो,पर उसमें भी प्रेम- वफादारी आदि मानसिक भाव इंसानों की तरह ही रहते हैं। बच्चे को भी रमेश और उसके परिवार के साथ परिवार की तरह ही लगाव हो गया था। अब वह रमेश के परिवार के साथ ही घर में रहता था।
एक रात को रमेश का परिवार गहरी नींद में था, तभी रमेश के घर कुछ चोर चोरी करने के इरादे से घुसे। चोरों की आहट रमेश के यहाँ रह रहे कुत्ते के बच्चे को लग गई,और उसने जोर-जोर से भौंकना शुरु कर दिया,जिस कारण रमेश का परिवार जाग गया। घर की बिजली चालू होते ही चोर उल्टे पाँव भाग खड़े हुए। अब रमेश का परिवार सड़क के किनारे से लाए उस कुत्ते के बच्चे का एहसानमंद हो गया। रमेश की मम्मी सोचने लगी कि,अगर उस दिन रमेश को नि:स्वार्थ भाव से उस कुत्ते के बच्चे पर दया न आती तो आज उनका कीमती सामान चोर उठा ले गए होते।

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