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कोरोनाःअपना फर्ज निभाएं नागरिक

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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हमारे देश के चिकित्सक,नर्स, पुलिसकर्मी और सरकारी कर्मचारी कितनी लगन से ‘कोरोना’ मरीजों की सेवा कर रहे हैं और समाजसेवियों के तो कहने ही क्या ? उनकी निस्वार्थ समाजसेवा ही आज भारत को दुनिया की पुण्यभूमि बना रही है,लेकिन जिस बात को लेकर आज भयंकर धक्का लगा और हर इंसान को लगना चाहिए,वह यह कि पंजाब के दो-तीन परिवारों ने गज़ब की पत्थरदिली दिखाई है। उन्होंने बेटे,पति, भाई,पिता या पड़ौसी का फर्ज निभाने में भी कोताही की है। पंजाब के एक अधिकारी के मुताबिक कोरोना से मरनेवालों के घरवाले उनके शवों को दफनाने या जलाने भी नहीं आते। उनकी अंत्येष्टि सरकारी अफसरों को करनी पड़ती है। लगभग ५० प्रतिशत शवों की यही गति हुई है। प्रसिद्ध ग्रंथी हुजूरी रागी भाई निर्मलसिंह खालसा के गाँव के लोगों ने उनकी अंत्येष्टि में अड़ंगा लगा दिया। पटवारी अगर सख्ती से पेश नहीं आता तो वहां उनकी अंत्येष्टि ही नहीं होती। कोरोना-मरीजों के शवों को चिकित्सक लोग काफी अच्छी तरह से लपेटकर सम्हलाते हैं। फिर भी लोग इतने डरे हुए क्यों रहते हैं,समझ में नहीं आता। पता नहीं,इसे डर कहें या कायरता ? डर के मारे हमारे सारे नेता अपने घरों में छिपे पड़े हुए हैं तो इन बेचारे सामान्यजन को क्या कहा जाए ?
भारत की केन्द्र और राज्य सरकारें तो कोरोना से लड़ने की भरपूर कोशिश कर रही हैं और उन्होंने तालाबंदी को खोलने पर विचार करना भी शुरु कर दिया है,लेकिन भारत के लिए यह बड़ी खुश खबर है कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत से कोरोना की दवाई हाइड्रोक्सीक्लोरीन की मांग की है। मलेरिया की इस सफल दवाई की करोड़ों गोलियां भारत में उपलब्ध हैं। कुछ दिन पहले भारत ने इसके निर्यात पर रोक लगाई थी लेकिन अब हटा लिया है। बड़बोले ट्रम्प ने भारत के इन्कार की संभावना पर बदला लेने की बात कहकर अपनी ही किरकिरी करवाई है। अच्छा है कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उसकी अनदेखी करें। न्यूयार्क और अन्य अमेरिकी शहरों में सैकड़ों भारतीय मूल के लोग भी कोरोनाग्रस्त हो गए हैं। हमारी मदद उनके भी काम आएगी। भारत ने श्रीलंका को १० टन दवाई विशेष जहाज से भिजवाई है। भारत ने जैसे एक करोड़ डाॅलर ‘दक्षेस कोरोना आपातकोश’ में दिए हैं,वैसे ही वह सभी पड़ौसी देशों को दवाइयां भिजवाने की भी पहल करे। उन देशों की भाषाओं में कोरोना से बचने की तरकीबें भी वहां के करोड़ों लोगों को अंतरजाल,रेडियो,टी.वी. और खबरों के जरिए बताई जा सकती हैं। बड़े भाई का फर्ज निभाने का यह सही वक्त है।

परिचय–डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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