कुल पृष्ठ दर्शन : 216

कोरोना काल…रेल यात्रा बेहाल…

तारकेश कुमार ओझा
खड़गपुर(प. बंगाल )

*************************************************

वाकई भौकाल मचाने में हम भारतीयों का कोई मुकाबला नहीं। बदलते दौर में दुनिया २ भागों में बंटी नजर आ रही है। एक पर्दे की दुनिया और दूसरी असल दुनिया,इस बात का अहसास मुझे कोरोना की नई लहर के बीच की गई रेल यात्रा के दौरान हुआ। भांजी की शादी में शामिल होने मुझे अपने शहर से उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जाना था। रवाना होने से पहले तक देश-दुनिया का हाल जानने टेलीविजन के पर्दे पर नजरें टिकाए रहने के चलते मेरा तनाव लगातार बढ़ रहा था कि,पता नहीं कब फिर तालाबंदी हो जाए,क्योंकि अधिकांश खबरें कोरोना से ही संबंधित थी…दिल्ली में हाल-बेहालगुजरात में नाइट कर्फ्यूक्या फिर लगेगा लॉक-डाउन...। ऐसी सनसनीखेज खबरों के बीच रेल यात्रा पर निकलते समय तालाबंदी से जुड़े तमाम भयावह घटनाक्रम मेरी आँखों के सामने घूमने लगे। मन में आशंका का तूफान लिए हिजली स्टेशन पहुंचा। मुझे ०२८१५ पुरी-नई दिल्ली नीलांचल एक्सप्रेस पकड़नी थी,जो इन दिनों आनंद विहार कोविड स्पेशल बन कर चल रही है। प्लेटफॉर्म पहुंच कर मैं तेजी से स्वाभाविक होने लगा,क्योंकि सतर्कता या स्वास्थ्य नियमों के पालन के हंटर का दूर-दूर तक नामो-निशान नहीं था। सब-कुछ पहले जैसा और सामान्य। नवाचार के रूप में बस एक चीज देखने को मिली। आरपीएफ की कुछ महिला आरक्षक महिला यात्रियों से रू-ब-रू हुई और उनसे आपात सेवा की हेल्प लाइन के बारे में पूछताछ की,वहीं ना जानने वालों को नम्बर बताया और उनका नाम-पता नोट कर आगे बढ़ती रही। औपचारिकता के बावजूद मुझे यह अच्छा लगा। ट्रेन चलने पर भीतर सब सामान्य देख यात्री कोरोना पर ही बात करने लगे। ...कहां है कोरोना,कुछो तो नजर नहीं आ रहा,झूच्ठे सब भौंकाल मचाए है...l इस पर दूसरे का जवाब था…ना दिल्ली-मुंबई का हालत सचमुच खराब है।
सुकून की बात बस इतनी रही कि,ट्रेन समय से बल्कि हर स्टेशन पर कुछ पहले पहुंच रही थी। शायद कम ट्रेन चलने और यात्री ट्रेनों के नहीं चलने की वजह से ट्रेन को लगातार पटरी स्पष्ट मिल रही थी। दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन पर इसी वजह से ट्रेन करीब १ घंटे तक खड़ी रही। इस बीच जीआरपी के कुछ वर्दीधारी जवान डिब्बे में चढ़े और सामान चेक कर रहे हैं... कहते हुए शयन के नीचे तांक-झांक कर चलते बने। इसके सिवा कोरोना काल में की गई यात्रा का अनुभव भी बिल्कुल वैसा ही रहा,जैसा सामान्य दिनों में होता है। ट्रेन करीब १० मिनट पहले मेरे गंतव्य प्रतापगढ़ स्टेशन पहुंची और मैं डिब्बे से उतर कर मंजिल की ओर चल पड़ा।

परिचय-तारकेश कुमार ओझा का नाम खड़गपुर में वरिष्ठ पत्रकार के रुप में जाना जाता है। आपका निवास पश्चिम बंगाल के खड़गपुर स्थित भगवानपुर (जिला पश्चिम मेदिनीपुर) में है। आपकी लेखन विधा अनुभव आधारित लेख,संस्मरण और सामान्य आलेख है।श्री ओझा का जन्म स्थान प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश) हैL पश्चिम बंगाल निवासी श्री ओझा की शिक्षा बी.कॉम. हैL कार्यक्षेत्र में आप पत्रकारिता में होकर उप सम्पादक हैंL आपको मटुकधारी सिंह हिंदी पत्रकारिता पुरस्कार तथा श्रीमती लीलादेवी पुरस्कार के साथ ही बेस्ट ब्लॉगर के भी कई सम्मान मिल चुके हैंL आप ब्लॉग पर भी लिखते हैंL

Leave a Reply