डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)
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सिहरन ठिठुरन सर्द तनु,बाल जरा युववृन्द।
रविदर्शन ढँक कोहरा,कहाँ खिले अरविन्दll
पड़ी कड़ाके ठंड अब,पहन ऊन गणवेश।
हाड़ रार कर ठंड अब,शीताकुल उपवेशll
लावारिस बिन गेह के,सड़कछाप बिन वस्त्र।
ठिठुर गात्र कवलित मरण,बिन घायल ही शस्त्रll
निर्दयता है चरम पर,सात दशक जनतंत्र।
ठिठुर रही आधी प्रजा,गज़ब तंत्र का मंत्रll
है सुषुप्त संवेदना,सुख सत्ता अय्यास।
मानवता कम्पित शरद,दानवता उपहासll
आहत गृह भूख वसन,दीन-हीन दुर्भाव।
गर्मी सर्दी बारिशें,यायावर क्या घावll
निशि निकुंज
तम कोहरा,मचा शत कोहराम।
पशु-पक्षी कम्पित मनुज,सुबह बना है शामll
शीतकाल कलिकाल बन,चहुँदिशि है तिमिरान्ध।
थिथुरन शिथलित गात जग,पद नेता पा अन्धll
शीत-प्रीत नवगीत बन,कुसुमित कलसी भास।
ऊष्म-शीत अरु वर्षिणी,जीवन रीति सुहासll
कोमल तन कंबल वदन,ऊष्मित मन उल्लास।
रवि ओझल जग शान्ति हो,प्रीत मिलन रनिवासll
लिख दोहे शीताकुलित,आवाहन सरकार।
करो शमन शीतार्त जन,कुछ तो बनो उदारll
परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥