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गांधी बाबा को मत मानो,गांधी की अवश्य मानो

निर्मलकुमार पाटोदी
इन्दौर(मध्यप्रदेश)
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अगले २० साल के लिए नई शिक्षा नीति प्रस्तुत हुई है। इसमें अनेक विशेषताएं हैं। एक बड़ी विशेषता कौशल के आधार पर विद्यार्थी को आत्मनिर्भर बनाने की है,विद्यार्थी का जीवन निर्माण करने की है। इसमें पाठ्यक्रम को कम रखते हुए अन्य गतिविधियों को महत्त्व दिया गया है। शिक्षा नीति कोरी दिमाग़ी और किताबी नहीं है।
१२६ पृष्ठों में समाहित नई शिक्षा नीति में मातृभाषा,राज्यभाषा सिखाने का उल्लेख तो है,किंतु इसमें कहीं भी स्वभाषाओं को अनिवार्य नहीं किया गया है। इस कारण कहना होगा कि यह अपंग है। इस नीति को अंतिम रूप देते समय शिक्षा के साथ शिक्षितों के भविष्य से जुड़े स्वभाषा के बुनियादी पक्ष को विस्मृत करने से सब कुछ चौपट हो जाने वाला है।
मोहनदास गांधी शिक्षा और शिक्षा में मातृभाषा के महत्त्व को जितना बारीकी से समझा और जाना था,संभवत: उतना अब तक किसी अन्य ने नहीं। सौ साल पहले उन्होंने जो कहा था,वह आज भी प्रासंगिक है।
पहले इस विसंगति पर ध्यान देना होगा कि पिछले तिहत्तर साल से राज्यों और केन्द्र सरकार का उच्च स्तर पर मूल कामकाज सिर्फ और सिर्फ अंग्रेज़ी भाषा में चलता आया है। नयी शिक्षा नीति से पढ़ कर जितने युवा बाहर निकलेंगे,वे सब बिना अंग्रेज़ी के शासकीय की सेवाओं में पहुंच नहीं पाएंगे। सच्चाई यह है कि,भारत सरकार के कामकाज की भाषा अंग्रेज़ी है। हिंदी राजभाषा होते हुए भी उसकी स्थति अनुवाद की भाषा तक ही सीमित है। केन्द्र सरकार और राज्यों में जब भारतीय भाषाओं में मूल कामकाज होता ही नहीं है,तब कोई अभिभावक क्योंकर अपने बच्चों को मातृभाषा,राज्य की भाषा में पढ़ाने की मूर्खता करेगा ? लॉर्ड मैकाले सूझ-बूझ से अंग्रेज़ सरकार भारत में प्रशासन,शिक्षा और न्याय के क्षेत्र में अंग्रेज़ी भाषा को स्थापित करने में सफल हुई थी। स्वाधीन भारत में कुछ भी बुनियादी परिवर्तन नहीं हुआ है। अंग्रेज़ी यथावत कायम है। सभी राज्य सरकारें जानती है कि उनके यहाँ के युवकों का भविष्य अंग्रेज़ी में शिक्षा प्रदान करने से ही सुरक्षित है। इसीलिए उन्हें अपने राज्य की भाषाओं की परवाह नहीं। है। इसी कारण से उत्तरप्रदेश सरकार ने भी राज्य में अंग्रेज़ी भाषा में शिक्षा प्रदान करने का निर्णय लिया हुआ है।
अध्ययन दर्शाते हैं कि बच्चों को यदि उनकी मातृभाषा में पढ़ाया जाए तो सबसे बेहतर नतीजे हासिल होते हैं। अभी आत्म चिंतन करने का अवसर है। शिक्षा में स्वभाषाओं को स्वाधीन राष्ट्र के अनुसार सम्मान देने का अवसर है। प्राचीन संस्कृति,सभ्यता,जीवन पद्धति,ज्ञान विज्ञान और देश की समृद्ध भाषाओं की विरासत को सुरक्षित और संरक्षित करने का क़दम उठाया जा सकता है। देश की भाषाओं का उपयोग निरंतर कम होने से उनको विलुप्त होने से बचाने का अवसर है। अंग्रेज़ी भाषा, अंग्रेज़ीयत और पश्चिम की भौतिक जीवन पद्धति के रंग में और रंगने से बचाना अपने हाथ में है।
युवा पीढ़ी अंग्रेजी भाषा और अंग्रेज़ीयत बुरी तरह से रमती जा रही है। उसे अपनी भाषाओं में पढ़ने,लिखने और बात करने में असुविधा हो रही है। उनके मन मस्तिष्क में अपनी भाषाओं के अखबार,साहित्य, अध्यात्मिक ग्रंथ और उत्सवों के प्रति लगाव कम होता जा रहा है। उनकी बोलचाल में अंग्रेज़ी भाषा के शब्दों को प्रयोग बढ़ता जा रहा है।
मैकाले द्वारा थोपी गई अंग्रेज़ी भाषा और उस भाषा के माध्यम की शिक्षा नीति की जकड़न को तोड़ कर अब मुक्त होना हमारे हाथ में हैं। तब ही स्वाधीनता की ताज़ी हवा का रसपान कर सकेंगे। यह विडंबना ही है कि स्वाधीन भारत में गांधी बाबा को मुद्रा पर अंकित कर दिया गया है। सरकारी कार्यालयों और न्यायालयों के कक्षों में उनकी तस्वीर शोभायमान कर दिया गया है। गांधी जयंती पर उनकी मूर्तियों पर पुष्पमाला अर्पण कर देते हैं,परंतु उस गांधी के विचारों को कर्म में बदलने की ओर ध्यान नहीं दिया जा सका है नई शिक्षा नीति में गांधी के व्यावहारिक विचारों को सम्मान दिया जाने का यह उपयुक्त अवसर है।

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