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क्षमा प्रियंका…

कुँवर बेचैन सदाबहार
प्रतापगढ़ (राजस्थान)
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हैदराबाद घटना-विशेष रचना……….
छोटे-छोटे हाथ,छोटे-छोटे पैर परियों जैसी सुंदर अबोध-सी बिटिया जब पैदा होती है,तो अपने साथ पूरे परिवार का सौभाग्य लेकर आती है…। पिता की इच्छा शक्ति,माँ की ताकत,दादी-दादा में बचा हुआ बचपन चाची-चाचा,ताऊ-ताई का खिलौना,बुआओं की सहेली,बड़े भाइयों की जिम्मेदारी सब कुछ लेकर आती है…।
अक्सर कहता हूँ कि भगवान की सबसे प्यारी सौगात हैं बेटियां,भगवान द्वारा ये अनमोल निधि जिसे सौंपनी है,वह योग्यता के आधार पर चयनित होता है..। यानी अत्यंत भाग्यवान होता है।
फिर शुरू होता है लालन-पालन…। रातों को जागना,उठना,दूध पिलाना-कपड़े बदलना, धीरे-धीरे चलना बोलना सीखना…फिर पहली बार शाला भेजना,जो बेटी के लिए शायद पहली बार दुनिया के द्वार खोलने जैसा होता है।
“बस…,यहीं से किसी आम हिन्दुस्तानी माता-पिता के चेहरे पर एक लकीर बनना शुरू होती है,जो शायद ये सोच कर बनती है कि इस लक्ष्मण रेखा से सीता रावणों से बची रहेगी…!”
अनगिनत सपने,नर्सरी से हाईस्कूल…फिर उच्च शिक्षा देते हुए उसके भविष्य के तमाम संचित स्वप्न उसकी आँखों में चमकते देखना,सफलताओं-असफलताओं को पार करते विजय पाना…यहाँ कहानी अपने स्वर्णिम उत्कर्ष पर होती है…।
“यह हर पल उनकी तपस्या की तरह है, जिन्हें ईश्वर ने वरदान पहले दिया और तपस्या बाद में करनी पड़ी…”,लेकिन वो लकीर जो माथे पर है,बड़ी और बड़ी होती चली जाती है…जिम्मेदारियों जितनी…।
एक पिता और माँ अपने सारे अरमान-ख्वाहिशें झोंक देते हैं उस वरदान की तपस्या में,जो दिया था ईश्वर ने उसे योग्य समझ कर…। फिर जब पढ़ता हूँ उसी वरदान की राजमार्ग के किनारे बलात्कृत जली हुई लाश के बारे में…तब लगता है ईश्वर ने सारे अभिशाप इस वरदान को क्यों दे रखे हैं…?
शायद,भेड़ियों तुम्हारी माँ-बहन-बेटी- बुआ-दादी किसी ने तुम्हें संस्कार नहीं दिए…जो इतने गहरे जख्म देने का हुनर सीख लिया।
सारे सपनों के लुटने का ग़म कितना होता है,डॉ. प्रियंका रेड्डी के परिवार को पता होगा, दूसरा नहीं समझ पाएगा। और वो ईश्वर से शिकायत कर रहे होंगे,लेकिन ईश्वर चाहकर भी नहीं लौटा पायेगा उनकी तपस्या का श्रम। विनम्र श्रद्धांजलि…।

परिचय-कुँवर प्रताप सिंह का साहित्यिक उपनाम `कुंवर बेचैन` हैl आपकी जन्म तारीख २९ जून १९८६ तथा जन्म स्थान-मंदसौर हैl नीमच रोड (प्रतापगढ़, राजस्थान) में स्थाई रूप से बसे हुए श्री सिंह को हिन्दी, उर्दू एवं अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। राजस्थान वासी कुँवर प्रताप ने एम.ए.(हिन्दी)एवं बी.एड. की शिक्षा हासिल की है। निजी विद्यालय में अध्यापन का कार्यक्षेत्र अपनाए हुए श्री सिंह सामाजिक गतिविधि में ‘बेटी पढ़ाओ और आगे बढ़ाओ’ के साथ ‘बेटे को भी संस्कारी बनाओ और देश बचाओ’ मुहिम पर कार्यरत हैं। इनकी लेखन विधा-शायरी,ग़ज़ल,कविता और कहानी इत्यादि है। स्थानीय और प्रदेश स्तर की साप्ताहिक पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में स्थानीय साहित्य परिषद एवं जिलाधीश द्वारा सम्मानित हुए हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-शब्दों से लोगों को वो दिखाने का प्रयास,जो सामान्य आँखों से देख नहीं पाते हैं। इनके पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद,हरिशकंर परसाई हैं,तो प्रेरणापुंज-जिनसे जो कुछ भी सीखा है वो सब प्रेरणीय हैं। विशेषज्ञता-शब्द बाण हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिंदी केवल भाषा ही नहीं,अपितु हमारे राष्ट्र का गौरव है। हमारी संस्कृति व सभ्यताएं भी हिंदी में परिभाषित है। इसे जागृत और विस्तारित करना हम सबका कर्त्तव्य है। हिंदी का प्रयोग हमारे लिए गौरव का विषय है,जो व्यक्ति अपने दैनिक आचार-व्यवहार में हिंदी का प्रयोग करते हैं,वह निश्चित रूप से विश्व पटल पर हिन्दी का परचम लहरा रहे हैं।”

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