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‘पराधीनता’ अभिशाप,तो ‘स्वाधीनता’ वरदान

गोपाल मोहन मिश्र
दरभंगा (बिहार)
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स्वतंत्रता दिवस विशेष ……..

‘पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं’-इस उक्ति का अर्थ होता है कि पराधीन व्यक्ति कभी भी सुख को अनुभव नहीं कर सकता है। सुख पराधीन और परावलंबी लोगों के लिए नहीं बना है। पराधीनता एक तरह का अभिशाप होता है। मनुष्य तो बहुत दूर,पशु-पक्षी भी पराधीनता में छटपटाने लगते हैं।
पराधीन व्यक्ति के साथ हमेशा शोषण किया जाता है। पराधीनता की कहानी किसी भी देश,जाति या व्यक्ति की हो,वह दुःख की होती है। पराधीन व्यक्ति का स्वामी जैसा व्यवहार चाहे, वैसा व्यवहार उसके साथ कर सकता है।
पराधीन व्यक्ति कभी भी अपने आत्म-सम्मान को सुरक्षित नहीं रख पाते हैं। ‘हितोपदेश’ में भी कहा गया है कि पराधीन व्यक्ति एक मृत के समान होता है।
प्रत्येक मनुष्य अपने जन्म से लेकर मृत्यु तक स्वतंत्र रहना चाहता है। वह कभी भी किसी के वश में या किसी के अधीन रहने को तैयार नहीं होता है। एक स्वतंत्रता सेनानी ने कहा था कि “स्वतंत्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है।”
अगर कभी उसे पराधीन होना भी पड़ता है,तो वो स्वाधीनता के लिए अपने प्राणों की बाजी तक लगा देता है। सभी को पराधीनता के कष्टों का पता होता है। पराधीनता के समान अभिशाप कोई दूसरा नहीं हो सकता है। पराधीनता एक व्यक्ति की हो सकती है, परिवार की हो सकती है,या फिर देश की हो सकती है। जो व्यक्ति पराधीन होते हैं,उनका कोई अस्तित्व नहीं होता है।
पराधीन अपने मन की प्रसन्नता को हमेशा दबाकर रखता है। पराधीनता का असली मतलब किसी बंदी से पूछने पर हमें पता चल जाता है कि पराधीन व्यक्ति साफ हवा में अपनी इच्छा से साँस भी नहीं ले सकता है। उसे हर खुशी के लिए दूसरों का मुँह ताकना पड़ता है।
प्रकृति का कण-कण स्वतंत्र होता है। प्रकृति को अपनी स्वतंत्रता में किसी भी तरह का हस्तक्षेप पसंद नहीं होता है। जब-जब मनुष्य प्रकृति के स्वतंत्र स्वरूप के साथ छेड़छाड़ करता है तो प्रकृति उसे अच्छी तरह से सजा देती है। जब मनुष्य प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करता है,तो उसका परिणाम प्रदूषण, भूकंप,भू-क्षरण,बाढ़,अतिवृष्टि, अनावृष्टि और वैश्विक महामारी ‘कोरोना’ जैसा होता है। भारत को स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए कई महान लोगों ने अपने प्राणों को त्याग दिया था,लेकिन स्वाधीन होने के कई सालों बाद भी मानसिक रूप से हम अभी तक स्वाधीन नहीं हो पाए हैं। हम विदेशी संस्कृति, विदेशी भाषा,विदेशी विचारधारा को अपना कर अपने-आपको आज तक मानसिक पराधीनता से परिचित करवा रहे हैं। हमें स्वाधीनता का सही मतलब पता न होने की वजह से आज तक मानसिक पराधीनता से स्वतंत्र होने का झूठा अनुभव और गर्व करते हैं। आज हमारी यह स्थिति हो गई है कि स्वाधीनता के मतलब को गलत समझ रहे हैं।
आज हम स्वाधीनता के गलत अर्थ को ‘स्वतंत्रता’ से लगा कर सबको अपनी उद्दण्डता का परिचय दे रहे हैं। हम भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को बार-बार श्रद्धांजलि अर्पित करते रहते है,लेकिन पराधीन मानसिकता वाले कुछ देशद्रोही भारतीय और राजनीतिक पार्टी ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ और ‘हम ले के रहेंगे आजादी’ जैसे अलगाववादी आंदोलन चलाते हैं।
कोई भी राष्ट्र तभी उन्नति कर सकता जब वह स्वतंत्र हो। जो राजनीतिक दल या देशद्रोही समूह स्वाधीनता का मूल्य नहीं समझते हैं और स्वाधीनता को समाप्त करने के लिए प्रयत्न करते हैं,वे किसी-न-किसी दिन पराधीन जरुर हो जाते हैं और उनका अस्तित्व समाप्त हो जाता है। स्वाधीनता को पाने के लिए क़ुर्बानी देनी पड़ती है। स्वाधीनता का महत्व राष्ट्र में तभी होता है, जब पराधीनता प्रकट नहीं होती है। अगर पराधीनता एक अभिशाप है,तो स्वाधीनता वरदान है। अगर स्वाधीनता का आनंद लेना है,तो हर व्यक्ति,परिवार और समूह को स्वाधीनता का पाठ जरुर पढ़ना चाहिए। एक मनुष्य होकर दूसरे मनुष्य की दासता स्वीकार्य बात नहीं है।

परिचय–गोपाल मोहन मिश्र की जन्म तारीख २८ जुलाई १९५५ व जन्म स्थान मुजफ्फरपुर (बिहार)है। वर्तमान में आप लहेरिया सराय (दरभंगा,बिहार)में निवासरत हैं,जबकि स्थाई पता-ग्राम सोती सलेमपुर(जिला समस्तीपुर-बिहार)है। हिंदी,मैथिली तथा अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले बिहारवासी श्री मिश्र की पूर्ण शिक्षा स्नातकोत्तर है। कार्यक्षेत्र में सेवानिवृत्त(बैंक प्रबंधक)हैं। आपकी लेखन विधा-कहानी, लघुकथा,लेख एवं कविता है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। ब्लॉग पर भी भावनाएँ व्यक्त करने वाले श्री मिश्र की लेखनी का उद्देश्य-साहित्य सेवा है। इनके लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक- फणीश्वरनाथ ‘रेणु’,रामधारी सिंह ‘दिनकर’, गोपाल दास ‘नीरज’, हरिवंश राय बच्चन एवं प्रेरणापुंज-फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“भारत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शानदार नेतृत्व में बहुमुखी विकास और दुनियाभर में पहचान बना रहा है I हिंदी,हिंदू,हिंदुस्तान की प्रबल धारा बह रही हैI”

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