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जीती बेटियाँ,जाने कितने रूप

प्रियंका सौरभ
हिसार(हरियाणा)

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कभी बने है छाँव तो,कभी बने हैं धूप।
सौरभ जीती बेटियाँ,जाने कितने रूप॥

जीती है सब बेटियाँ,कुछ ऐसे अनुबंध।
दर्दों में निभते जहां,प्यार भरे संबंध॥

रही बढ़ाती मायके,बाबुल का सम्मान।
रखती हरदम बेटियाँ,लाज शर्म का ध्यान॥

दुनिया सारी छोड़कर,दे साजन का साथ।
बनती दुल्हन बेटियाँ,पहने कंगन हाथ॥

छोड़े बच्चों के लिए,अपने सब किरदार।
माँ बनती है बेटियाँ,देती प्यार दुलार॥

माँ,बहना,पत्नी बने,भूली मस्ती-मौज।
गिरकर सम्भले बेटियाँ,सौरभ आये रोज॥

कदम-कदम पर चाहिए,हमको इनका प्यार।
मांग रही क्यों बेटियाँ,आज दया उपहार॥

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