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‘हिंदी,इसकी बोलियाँ और अष्टम अनुसूची’ पर हुई वैश्विक ई-संगोष्ठी

मुंबई(महाराष्ट्र)l

वैश्विक हिंदी सम्मेलन के तत्वावधान में १० अक्तूबर को ‘हिंदी,इसकी बोलियां और अष्टम अनुसूची’ विषय पर वैश्विक ई-संगोष्ठी का आयोजन किया गयाl इसमें सम्मेलन के निदेशक डॉ. एम.एल. गुप्ता ‘आदित्य’,सम्मेलन की संयोजक डॉ. सुस्मिता भट्टाचार्य,वरिष्ठ पत्रकार और भारतीय भाषा चिंतक राहुल देव,केंद्रीय हिंदी संस्थान(आगरा)के उपाध्यक्ष अनिल शर्मा ‘जोशी’,हिंदी बचाओ मंच के संयोजक प्रो. अमरनाथ,हिंदी विभागाध्यक्ष(मुंबई विश्वविद्यालय)के प्रो. करूणाशंकर उपाध्याय,लेखक डॉ. आर.वी. सिंह,पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय की प्रो. मंगला रानी,भाषासेवी विजय कुमार जैन तथा डॉ. वरुण कुमार(निदेशक रेलवे बोर्ड)ने अपने विचारों से उपस्थितजनों का ज्ञानवर्धन किया।

सर्वप्रथम डॉ. भट्टाचार्य ने उपस्थित वक्ताओं और श्रोताओं का शब्द पुष्पों से स्वागत किया। तत्पश्चात मंच संचालन करते हुए निदेशक डॉ. गुप्ता ने वैश्विक ई-संगोष्ठी का विषय प्रवर्तन करते हुए बताया कि,हिंदी क्षेत्र की बोलियों को संविधान की अष्टम अनुसूची में शामिल करवाने के प्रमुख कारण नेताओं की क्षेत्र विशेष के लोगों को बोली-भाषा के नाम पर मत बैंक का ध्रुवीकरण और अलग राज्यों की माँग,हिंदी की बोलियों को अष्टम अनुसूची में आ जाने पर सिविल सेवा की परीक्षाओं में चयन में का सरल रास्ता बनाना और अकादमियों व शिक्षण संस्थानों और भाषा आयोग आदि के गठन के चलते पदों की अपेक्षा तथा साहित्य अकादमी के पुरस्कारों की अपेक्षा है। डॉ. गुप्ता ने सुझाव दिया कि साहित्य अकादमी पुरस्कारों का आधार अष्टम अनुसूची,जनसंख्या आदि न हो कर केवल साहित्य की गुणवत्ता होनी चाहिए,फिर वे देश की किसी भाषा,बोली या उपबोली में क्यों न हों। उन्होंने अष्टम अनुसूची की भाषाओं और धार्मिक विषयों के आधार पर सिविल सेवा परीक्षा में सफलता पाने के चोर दरवाजों पर लगाम लगाने की बात भी कही,ताकि किसी के साथ भी अन्याय न होl उनका कहना था कि यदि हिंदी क्षेत्र की बोलियों को अष्टम अनुसूची में शामिल किया गया तो हिंदी किसी जिले की भी भाषा न रहेगी और फिर विघटन की यह प्रक्रिया अन्य भारतीय भाषाओं में प्ररंभ हो जाएगी,तब पूरे देश पर अंग्रेजी का एकछत्र राज स्वत: स्थापित हो जाएगा।

प्रो. उपाध्याय(अवधी भाषी) ने कहा कि देश में लगातार गुपचुप अंग्रेजी थोपी जा रही है,लेकिन कोई विरोध नहीं करता,लेकिन जैसे ही हिंदी की बात आती है विरोध शुरु कर देते हैं। आज संघ सरकार की राजभाषा हिंदी,देश के बहुसंख्यकों की भाषा हिंदी,देश की वैश्विक पहचान हिंदी,अंग्रेजी के साथ-साथ देश में कई मोर्चों पर संकट का सामना कर रही है। उन्होंने जोर देकर कहा कि सभी चाहते हैं कि बोलियों का संरक्षण हो,उनका संवर्धन हो इसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं है,लेकिन अष्टम अनुसूची में शामिल होने की जिद करके हिंदी को कमजोर न करें। उनका कहना था कि राष्ट्रहित में छोटे हित को छोड़ना पड़े तो यह उचित माना जाता है और हमें भी ऐसा ही करना चाहिए।

लेखक डॉ. आर.वी. सिंह(भोजपुरी भाषी) ने कहा कि अष्टम अनुसूची में हिंदी की बोलियाँ ही नहीं,अन्य भाषाओं की बोलियाँ भी अपने को शामिल करने की माँग करेंगी,यह अंतहीन माँग कहीं खत्म होते नहीं दिखती। वह दिन दूर नहीं जब अंग्रेजी को भी आठवीं अनुसूची में शामिल करने की बात होगी। अतः अब नई बोलियों को इस सूची में शामिल नहीं किया जाना चाहिए। हिन्दी का विकास इस प्रकार किया जाए कि,वह भारत की सामासिक संस्कृति की अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम बन सके।

प्रो. मंगला रानी ने कहा कि,हमारे इतिहास में कई रचनाकारों ने हिंदी खड़ी बोली में उत्कृष्ट रचनाएं लिखीं, लेकिन कोई विरोध नहीं हुआ,पर आज स्वतंत्र होने के बाद भी हम हिंदी से लड़ रहे हैं। हिंदी हैं तो बोलियों की भी पहचान है। आज की गंभीर चिंता है कि लाभ-लोभ के लिए बोलियों के कुछ लोगों द्वारा संविधान की अष्टम अनुसूची में पहुँचने की अंधी दौड़। देश में इसके प्रति जागरूकता लानी ही होगी। हिंदी ही हमारी पहचान है,राष्ट्र की रीढ़ है।

विजय कुमार जैन(जो एक समय राजस्थानी को अनुसूची में शामिल करवाने के लिए आन्दोलनरत रहे)ने कहा कि हमें बोली-भाषा के नाम पर संघर्ष करने के बजाए हिंदी को सशक्त बनाने के लिए,इसे राष्ट्रभाषा बनाने के प्रयास करने चाहिए। हमारा प्रयास है,’देश में सबसे पहले मातृभाषा,फिर राष्ट्रभाषा।’

अनिल शर्मा ‘जोशी’ ने कहा कि हमें देश में भाषाई संवेदना का ध्यान रखना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र की भाषा बनने की दिशा में बढ़ें,लेकिन देश में भी इसका विरोध न हो इसका उपाय करना होगा। जनगणना के समय तो हिंदी की इन सहभाषाओं को,हिंदी को अपनी भाषा मानकर दर्ज कराना चाहिए । घर में हम चाहे जो भी बोलियाँ बोलते हों,लेकिन हमें हिंदी को स्वीकारना चाहिए,ताकि वैश्विक स्तर पर हमारे देश को एक भाषाई पहचान मिल सके।

‘प्रवासी संसार’ के संपादक और हिंदी-सेनानी राकेश पांडेय ने कहा कि जनगणना के समय लिए गए भाषाई आँकड़ों का बहुत महत्व होता है,क्योंकि इसी आधार पर नीतियाँ बनती हैं। हिंदी की बोलियों को अलग करके जनगणना करने से सभी हिंदी की बोलियों को तथा हिंदी को भी नुकसान हुआ है। उन्होंने बोलियों के दावेदारों द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों की तथ्यात्मक सच्चाई प्रस्तुत करते हुए कहा कि,भारत और मॉरीशस में जो आँकड़े बताए जा रहे हैं वे वास्तविकता से काफी दूर हैं।
वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव ने इस अवसर पर कहा कि,बोलियाँ शब्द का प्रयोग न कर इन्हें सहभाषा कहा जाना ज्यादा उचित होगा। सब भाषाएँ एक जैसी क्षमताओं से युक्त हैं। हिंदी की सहभाषाएं हिंदी की जननियाँ हैं, मातृभाषाएँ है। हर प्रदेश में दूसरे भाषा-भाषी भी होते हैं,जनगणना में इनका भी जिक्र किया जाना चाहिए। ज्यादातर भारतीय बहुभाषी होते हैं। देश के हिंदीभाषी परिवार,विद्वान,चिंतक,भाषाविद् अगर हिंदी का भला चाहते हैं तो उऩ्हें भावनाओं में बहने के बजाय तथ्यों पर ध्यान देने और तथ्यों के आधार पर बात करने तथा की जरूरत है। यदि हिंदी में से बोलियों को निकाल दिया जाए,तो हिंदी में क्या बचेगा। अतः आज के समय में इसकी बहुत जरूरत है कि देश के सभी कोने-कोने से भाषा चिंतकों,भाषाविदों,विद्वानों,शिक्षा शास्त्रियों,राज्यों की सरकारों को मिलकर ऐसे विस्तृत आयोजन-बैठक-संगोष्ठी आदि में विचार-विमर्श करना चाहिए,जहाँ सब खुलकर अपनी बातों को एक-दूसरे के सामने रखें। बोली और भाषा वालों के बीच संवाद से एक-दूसरे की भावनाओं,तकलीफों को समझें तथा भाषाओं की इस आपसी खींचतान का सुखद हल निकालें।

इस अवसर पर डॉ. वरुण कुमार ने टिप्पणी करते हुए कहा कि,भाषा और बोली वालों के बीच संवाद कैसे होगा ? मैं भोजपरी वाला हूँ और मैं ही हिंदी वाला,मैं ही अवधी भाषी हूँ और मैं ही हिंदीभाषी,हिंदी की सभी बोलियों के साथ यही स्थिति है। इसलिए संवाद तो खुद से ही करने की आवश्यकता है। इस विषय पर जागरूकता फैलाई जानी चाहिए ।

प्रो. अमरनाथ ने इस अवसर पर कहा कि हिंदी की चिंदी चिंदी न हो,इससे न तो हिंदी बचेगी और न ही इसकी बोलियाँ। आज हिंदी को तोड़ने की साजिशें हो रही हैं। सभी को सोचना होगा,तभी हमारा देश देश रहेगा,अन्यथा बहुत नुकसान हो रहा है और होगा। राष्ट्रीय स्तर की बात सोचें,कृपया छोटे-छोटे टुकड़ों में न बंटें। हिंदी का अहित होगा तो देश का भी अहित होगा। उन्होंने कहा कि बोलियों को जनपदीय भाषाएं कहें,तो उचित होगा। उन्हें भी सम्मान,संरक्षण,संवर्धन मिलना चाहिए लेकिन इनको भी अष्टम अनुसूची का मोह छोड़ना चाहिए और देश हित में सोचना चाहिए,क्योंकि हिंदी को सम्मान इसकी सहभाषाओं या जनपदीय भाषाओं का भी सम्मान है।

अंत में वैश्विक हिंदी सम्मेलन के निदेशक डॉ. गुप्ता ने कार्यक्रम की सफलता पर सभी वक्ताओं तथा ई-संगोष्ठी में शामिल सभी महानुभावों को बहुत-बहुत धन्यवाद दिया। संगोष्ठी में गूगल मीट के अतिरिक्त यू ट्यब आदि पर देश-विदेश के अनेक विद्वानों तथा भाषा-प्रेमियों ने भाग लिया।

(सौजन्य: वैश्विक हिन्दी सम्मेलन,मुम्बई)

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