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विकास की वास्तविक सोच को आगे रख कुछ ठोस करना होगा

राजकुमार अरोड़ा ‘गाइड’
बहादुरगढ़(हरियाणा)
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आज सच में हमारे देश की परिस्थिति कुछ ऐसी ही हो गई है,किसी को कुछ समझ ही नहीं आ रहा कि सही दिशा में,सही विकास की राह पर कैसे आगे बढ़ा जाए। हर कोई अंधेरे में ही हाथ-पाँव मारता दिखाई दे रहा है। कांग्रेस के ६० साल के शासन को पानी पी-पी कर कोसने वाले आज प्रचण्ड बहुमत के बाद भी स्वयं को अजीब परिस्थितियों में उलझा हुआ पा रहे हैं। अपने को दूसरों से अलग कहने वाले अपने ही कार्यकलापों से जनता से अलग होते जा रहे हैं। यह तो सभी विपक्षी दलों का दुर्भाग्य है कि वह तथाकथित अपनी-अपनी चौधराहट की छोटी-बड़ी गठरी व अपने अपने स्वार्थ को ले कर येन-केन प्रकारेण कुछ पाने की इच्छा में सलंग्न है। इन्हीं की नाकामयाबियों व बिखराव का फायदा उठा कर अच्छे दिन का झांसा दे कर जो सरकार दो तिहाई बहुमत से आई,अब पिछले वर्ष फिर वही दोहराव होने से इतनी आत्ममुग्ध है कि वह अपनी असफलताओं का ढिंढोरा भी सफलता
के गायन के रूप में पीटती है।
बेरोजगारी पिछले ५० वर्षों की चरम सीमा पर हैं। नौकरियां मिलना तो दूर,चली गईं। जिन किसानों को दुगनी आय का झांसा देते रहे,आज उन्हीं के लिए बनाए कृषि कानूनों का लाभ उन्हें सही समझा नहीं पा रहे हैं। बेचारा किसान मंडी में फसल ला कर,सही दाम मिलने की अभिलाषा एवं तकनीकी ज्ञान के अभाव के कारण नित-नए सरकारी फरमानों से कुंठित हो कर औने-पौने दाम पर बेच कसमसाते हुए किस्मत को रोता हुआ घर जा रहा है।
सुरसा की तरह रोज़ बढ़ती महंगाई ने तो लोगों का जीना ही दूभर कर दिया है,सबके घर के बजट गड़बड़ा गए हैं। पहले वाली जमा पूंजी भी धीरे-धीरे खत्म हो रही है। रोज़गार के अभाव में आने वाले कल की सोच कुंठाग्रस्त कर रही है।
इस वर्ष के शुरू में पूरे विश्व में व्याप्त ‘कोरोना’ महामारी को हल्के में लेकर बिना परिणाम की चिंता किए ‘तालाबंदी’ को एकाएक पूरे देश पर थोप दिया,जिससे मज़दूरों,व्यापारियों,उद्योगपतियों के आगे रोजी-रोटी का संकट छा गया। बेचारे मजदूर मरते क्या न करते,मायूस हो पैदल ही चल दिए। गरीबों को तो फिर भी कुछ जगह कुछ मिल गया,पर मध्यम वर्ग तो नौकरी-रोजगार,व्यवसाय
छिनने से अभी तक सकते में है। उसे तो कोई ढंग का झुनझुना भी नहीं मिल पाया,जो उसके जख्मों पर मरहम लगा दे। ऐसी परिस्थितियों से ७ माह बाद भी देश पूरी तरह उबर नहीं पाया है,अब जब,सभी कुछ धीरे-धीरे खुल रहा है तो उद्योग, व्यापार में खरीद-फरोख्त होने से कुछ राहत मिली है,पर सरकारी राहत के प्रोत्साहन को पाने के लिए इतनी पेचीदगियां-औपचारिकताएं हैं,जिनके कारण प्रोत्साहन का लाभ सबको नहीं मिल पा रहा है। आज ७५ लाख के आसपास कोरोना मरीज हैं,१.१५ लाख के आसपास काल के गाल में समा गए,पर सबसे बड़ी राहत की बात यही है कि ८५ प्रतिशत लोग ठीक भी हुए हैं। केन्द्र द्वारा राहत देने में अपनी व विपक्षी सरकार का फर्क व फिक्र भी हो रही है।
कोरोना का सही उपचार नहीं और बदलते लक्षण के असमंजस ने आम आदमी के जीवन की दिनचर्या,मनोभावों,भविष्य के प्रति चिन्ता को ही बदल दिया है। केन्द्र के साथ-साथ सभी राज्य सरकारों को अपने किए उपायों की सफलता पर ही सन्देह हो रहा है। पूरी निष्ठा,समर्पण,लगन,सबके
विकास की वास्तविक सोच को आगे रख कर ही कुछ ठोस करना होगा। आश्वासनों की दुकान का शटर तो खुला रख लोगे,पर सामान के बिना क्या करोगे ?
लगता है इस हमाम में हम सब वस्त्रहीन हैं,एक वस्त्रहीन दूसरे वस्त्रहीन के क्या उतारेगा ? आज एक आम नागरिक तो अपने को ठगा हुआ महसूस कर रहा है,वह हतप्रभ-निराश है,उसे ऐसा कोई रास्ता दिखाई ही नहीं दे रहा जहाँ वह यह उम्मीद कर सके कि किस अमुक के हाथ में मैं,मेरा हित व मेरा देश सुरक्षित है। काले धन को बाहर लाने का हवाला दे कर ‘नोटबन्दी’ की गई,उससे भले ही कितने हवाला कांड हो गए हों,पर काला धन बाहर नहीं आया। कुछ हद तक सफलता तो मिली,पर अपेक्षित नहीं। भ्रष्टाचार ने एक नए तरह के शिष्टाचार का रूप ले लिया है,हर विभाग में बदस्तूर किसी न किसी रूप में जारी है,सख्ती व पारदर्शिता के नाम पर उसका पैमाना और भी अधिक विस्तृत हो गया है।
आज हम एक ऐसे चौराहे पर खड़े हैं,जहाँ अंधेरा ही अंधेरा है और उसी चौराहे पर एक कुआँ भी है,जो गहन अंधकार के कारण दिखाई नहीं दे रहा है। चाहे-अनचाहे एक- दूसरे से आगे निकल जाने की होड़ लगाए, नैतिक-अनैतिक,सही-गलत,पाप-पुण्य की चिन्ता किए बिना तात्कालिक लाभ को देखते हुए उसमें गिरते जा रहे हैं। यदि स्वयं को इन सबने किसी भी तरह नहीं सम्भाला तो सोचो! हम सब का भविष्य क्या होगा! बरसों से सँजोए सुनहरे सपनों को साकार होते देखने की चाहत सजाई है,पर इन्होंने हमारा आज ही खराब कर दिया। आज विडम्बना यही है कि,जिसे अपने भविष्य की बागडोर सौंपनी है,उसके चुनाव में बस यह चयन करना है कि हमारी नज़र में कम बुरा कौन है, ज्यादा बुरा कौन ?

परिचय–राजकुमार अरोड़ा का साहित्यिक उपनाम `गाइड` हैL जन्म स्थान-भिवानी (हरियाणा) हैL आपका स्थाई बसेरा वर्तमान में बहादुरगढ़ (जिला झज्जर)स्थित सेक्टर २ में हैL हिंदी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री अरोड़ा की पूर्ण शिक्षा-एम.ए.(हिंदी) हैL आपका कार्यक्षेत्र-बैंक(२०१७ में सेवानिवृत्त)रहा हैL सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत-अध्यक्ष लियो क्लब सहित कई सामाजिक संस्थाओं से जुड़ाव हैL आपकी लेखन विधा-कविता,गीत,निबन्ध,लघुकथा, कहानी और लेख हैL १९७० से अनवरत लेखन में सक्रिय `गाइड` की मंच संचालन, कवि सम्मेलन व गोष्ठियों में निरंतर भागीदारी हैL प्रकाशन के अंतर्गत काव्य संग्रह ‘खिलते फूल’,`उभरती कलियाँ`,`रंगे बहार`,`जश्ने बहार` संकलन प्रकाशित है तो १९७८ से १९८१ तक पाक्षिक पत्रिका का गौरवमयी प्रकाशन तथा दूसरी पत्रिका का भी समय-समय पर प्रकाशन आपके खाते में है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। प्राप्त सम्मान पुरस्कार में आपको २०१२ में भरतपुर में कवि सम्मेलन में `काव्य गौरव’ सम्मान और २०१९ में ‘आँचलिक साहित्य विभूषण’ सम्मान मिला हैL इनकी विशेष उपलब्धि-२०१७ में काव्य संग्रह ‘मुठ्ठी भर एहसास’ प्रकाशित होना तथा बैंक द्वारा लोकार्पण करना है। राजकुमार अरोड़ा की लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा से अथाह लगाव के कारण विभिन्न कार्यक्रमों विचार गोष्ठी-सम्मेलनों का समय समय पर आयोजन करना हैL आपके पसंदीदा हिंदी लेखक-अशोक चक्रधर,राजेन्द्र राजन, ज्ञानप्रकाश विवेक एवं डॉ. मधुकांत हैंL प्रेरणापुंज-साहित्यिक गुरु डॉ. स्व. पदमश्री गोपालप्रसाद व्यास हैं। श्री अरोड़ा की विशेषज्ञता-विचार मन में आते ही उसे कविता या मुक्तक रूप में मूर्त रूप देना है। देश- विदेश के प्रति आपके विचार-“विविधता व अनेकरूपता से परिपूर्ण अपना भारत सांस्कृतिक, धार्मिक, सामाजिक, साहित्यिक, आर्थिक, राजनीतिक रूप में अतुल्य,अनुपम, बेजोड़ है,तो विदेशों में आडम्बर अधिक, वास्तविकता कम एवं शालीनता तो बहुत ही कम है।

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