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गुलाली होली

उमेशचन्द यादव
बलिया (उत्तरप्रदेश) 
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हमें गर्व है कि हम भारतीय हैं। हमारे भारत वर्ष को त्योहारों और पर्वों का देश भी कहा जाता है,क्योंकि यहाँ हर रोज कोई-ना-कोई त्योहार मनाया जाता है। यहाँ हर जाति,धर्म और सम्प्रदाय के लोग एकसाथ मिलकर रहते हैं। इसलिए,कभी हिंदू भाईयों का त्योहार आता है तो कभी मुस्लिम,सिक्ख और ईसाई भाईयों का। सभी लोग एक-दूसरे के साथ मिलकर खूब मस्ती भी करते हैं और मिल-बाँटकर खाते भी हैं। इसीलिए,विदेशी लोग यहाँ आकर यहाँ की संस्कृति को अपनाना चाहते हैं। हमारी भारतीय संस्कृति भी सागर की तरह विशाल और उदार है। यह भी सभी को अपने में मिला लेती है। जैसे,कि हमने पहले से ही जाना है कि हमारे यहाँ प्रतिदिन कोई-ना-कोई पर्व जरुर मनाया जाता है। हमारे यहाँ धर्म की दृष्टि से कुछ महत्वपूर्ण त्योहार इस प्रकार हैं-होली, दीपावली,दशहरा,मकर संक्रांति,छठ पूजा, भाई दूज, रक्षाबंधन,श्रीराम नवमी,कृष्ण जन्माष्टमी,गोवर्धन पूजा,बसंत पंचमी आदि। हर त्योहार से संबंधित कोई-ना- कोई कहानी भी जरुर होती है।
आइए,अब हम रंगों के त्योहार होली के बारे में जानने का प्रयास करते हैं,जिसे मैंने ‘गुलाली होली’ नाम दिया है। इसके पीछे क्या रहस्य है,यह भी आगे स्पष्ट करने का प्रयास करुँगा। होली प्रति वर्ष फाल्गुन महीने की पूर्णिमा को बहुत ही धूमधाम से मनाई जाती है। लोग एक-दूसरे को रंग लगाते हैं। होली के गीत-संगीत का कार्यक्रम रखा जाता है। बहुत से लोग तो इस दिन नशे का सेवन करते हैं, जो बहुत बुरी बात है। इस दिन छुट्टी रहती है। सभी लोग मिल-जुल कर हँसते-गाते हुए घर-घर घूमकर एक-दूसरे के गले मिलते हैं,और पकवानों का स्वाद चखते हुए आगे बढ़ जाते हैं। इस दिन सबके हाथ में रंग की पुड़िया या पिचकारी होती है। घर में औरतें भी बाल्टियों में रंग घोल कर रखती हैं और लफुओं की (देवरों) टोली के आते ही भिगो देती हैं। इस प्रकार शाम तक रंग खेलने के बाद सभी लोग स्नान करते हैं। यहाँ तक कि उस दिन कुछ लोग जानवरों पर भी रंग लगा देते हैं और फिर उन्हें भी नहलाते हैं। बैल,गाय तथा बछड़ों को रंग का टीका लगाकर ही मेरी होली पूरी होती थी। होली के संबंध में भी कई कहानियाँ हैं। उनमें से एक कहानी कुछ इस प्रकार है-
भक्त प्रह्लाद का पिता हिरण्यकश्यप एक अहंकारी राक्षस था। वह खुद को ही भगवान मानता था। वह भगवान विष्णु को अपना दुश्मन मानता था। प्रह्लाद,भगवान विष्णु के परम भक्त थे। इसलिए,उनके पिता ने उनको मारने के लिए तरह-तरह की तरकीब लगाई, लेकिन प्रह्लाद का बाल भी बाँका नहीं कर पाया। तब उसने अपनी बहन होलिका का सहारा लेकर प्रह्लाद को मारने की योजना बनाई। एक दिन बहुत सारी लकड़ियों से चिता बनाकर होलिका को आदेश दिया कि वह प्रह्लाद को लेकर उसमें बैठ जाए। ठीक ऐसा ही हुआ,होलिका प्रह्लाद को लेकर लकड़ी पर बैठ गई,लेकिन”हुआ उल्टा, होलिका जलकर राख हो गई और प्रह्लाद पर आँच भी नहीं आई। इसलिए,होली के पहले दिन घर की पुरानी चीजें,लकड़ी या उपल (गोईठा) इकट्ठा कर के जलाते हैं। बुराई पर अच्छाई की जीत की खुशी में अगले दिन सभी लोग मिलकर एक-दूसरे को रंग लगाते हैं और गले मिलकर होली की हार्दिक शुभकामनाएंँ और बधाईयाँ देते हैं। रंग का त्योहार होली,बहुत ही मनोरंजक होता है। सभी में,यहाँ तक कि प्रकृति में भी नया रंग दिखाई देने लगता है। सभी लोग रंगों में सराबोर होते हैं। पहचानना मुश्किल हो जाता है,लेकिन इस खुशी के त्योहार को कुछ लोगों की स्वार्थपरकता ने खराब कर दिया है। मतलब यह है कि कुछ लोग रंगों में रसायन मिला देते हैं जिसके कारण लोगों के चेहरे का रंग खराब हो जाता है। कई लोग तो इसी बहाने दुश्मनी साधने लगते हैं। अतः,हमें आपसी प्यार और भाईचारा बनाए रखने के लिए सूखे रंगों से अर्थात गुलाल से होली खेलना चाहिए। हमें चाहिए कि एक-दूसरे की सुविधा और सेहत का ख्याल रखते हुए गुलाल को अपनाएं और रसायन से भरे विषैले रंगों को अलविदा कहें। इस प्रकार हमारा आपसी सदभाव भी बना रहेगा और जीवन भी मनोरंजक होगा-
होली है लाल गुलालों की,
गोपियों और ग्वाल बालों की।
होली है,जी लो जी भर के,
खालो पकवान उदर भर के।
आत्मसम्मान का हरदम ध्यान रहे,
अपने हैं हम सबका भी हरदम मान रहे।
कहे ‘उमेश’ खेलो गुलाल,
पर सेहत का भी हरदम ध्यान रहे॥

परिचय–उमेशचन्द यादव की जन्मतिथि २ अगस्त १९८५ और जन्म स्थान चकरा कोल्हुवाँ(वीरपुरा)जिला बलिया है। उत्तर प्रदेश राज्य के निवासी श्री यादव की शैक्षिक योग्यता एम.ए. एवं बी.एड. है। आपका कार्यक्षेत्र-शिक्षण है। आप कविता,लेख एवं कहानी लेखन करते हैं। लेखन का उद्देश्य-सामाजिक जागरूकता फैलाना,हिंदी भाषा का विकास और प्रचार-प्रसार करना है।

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