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हिन्दी और उसकी बोलियाँ

सुरेश चन्द्र ‘सर्वहारा’
कोटा(राजस्थान)
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१४ सितम्बर १९४९ को हिन्दी को भारतीय गणतंत्र की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया। अंग्रेजी को पन्द्रह वर्षों अर्थात् १९६५ तक सह राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया। दक्षिण में हिन्दी के विरोध को देखते हुए १९६७ में संविधान में संशोधन किया गया कि जब तक एक भी राज्य नहीं चाहेगा,अंग्रेजी नहीं हटाई जाएगी। इस प्रकार अंग्रेजी सदा के लिए भारतीय गणतंत्र पर लद गई।
निष्ठा की कमी और अंग्रेजी की श्रेष्ठता के दबाव के उपरान्त भी हिन्दी आज अपनी पहचान बनाने में सफल रही है। यह भारत का प्रतिनिधित्व करने वाली भाषा है,और विश्व भाषा बनने की ओर अग्रसर है। हिन्दी का विकास अपभ्रंश भाषा से हुआ है जो संस्कृत से अनुप्राणित है। दुर्भाग्य की बात है कि,संविधान लागू होने के सात दशक बाद भी राष्ट्रभाषा हिन्दी के नाम पर सम्पूर्ण देश में एकमतता नहीं हो पाई है। संविधान के अनुच्छेद ३४५ में राज्य विधायिकाओं को अधिकार दिया गया है कि वे राज्य में बोली जाने वाली भाषा या हिन्दी को राजभाषा घोषित करें। हिन्दी इस समय नौ राज्यों-उत्तर प्रदेश,उत्तराखंड,मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़,बिहार,झारखंड,हरियाणा, हिमाचल प्रदेश एवं दिल्ली की राजभाषा है। संविधान की आठवीं अनुसूची में संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त २२ प्रादेशिक भाषाओं का उल्लेख है। इस सूची में पैंतीस और भाषाएँ शामिल होने के लिए प्रयासरत हैं। अभी तक हिन्दी को ही संविधान प्रदत्त अधिकार नहीं मिला है,और आठवीं अनुसूची में बोलियों को शामिल करने की लड़ाई आरम्भ हो गई है। इससे देश के भाषाई सौहार्द को नुकसान पहुँच सकता है। अतः,आठवीं अनुसूची पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है अन्यथा इस अनुसूची के नाम पर भाषाओं को शामिल करने का अंतहीन सिलसिला चलता ही रहेगा। आठवीं अनुसूची अब राजनीतिक स्वार्थपूर्ति का हथियार बनती जा रही है। हिन्दीभाषी प्रदेशों के कुछ नेता और संकुचित मानसिकता वाले बौने कद के साहित्यकार आठवीं अनुसूची में अपना भविष्य तलाश रहे हैं। आजकल बिहार में `भोजपुरी`,उत्तरप्रदेश में `अवधी, ब्रज,बनारसी`,उत्तराखंड में `कुमाउनी, गढ़वाली`, मध्यप्रदेश में `मालवी,छत्तीसगढ़ी` ,हरियाणा में `हरियाणवी` और राजस्थान में `मायड़` भाषा के नाम पर राजस्थानी को राज्य भाषा का दर्जा दिलाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। यह विडम्बना है कि, अपनी क्षेत्रीय भाषा का अलग अस्तित्व चाहने वाले लोगों को अपनी बात कहने के लिए हिन्दी भाषा का आश्रय लेना पड़ता है। जहाँ तक अपनी भाषा में लिखने और बोलने की बात है तो इससे कोई भी असहमत नहीं है,पर यदि सब राज्य अपनी-अपनी मातृभाषा अपनाएँगे तो हिन्दी किसकी मातृभाषा रहेगी ? देखा जाए तो ये बोलियाँ हिन्दी का ही बोल-चाल वाला रूप है। इनमें क्षेत्रीयता के कारण थोड़ी बहुत विभिन्नता आ गई है। इन बोलियों का व्याकरण, शब्द भंडार और वाक्य विन्यास हिन्दी भाषा की ही तरह है। इनमें साहित्य की भी रचना होती है और कई लोगों की ये मातृभाषाएँ हैं। इन बोलियों की भी कई उपबोलियाँ हैं,जिनका सीमित क्षेत्र में उपयोग होता है। ये बोलियाँ और उपबोलियाँ हिन्दी का ही अंग हैं और ये हिन्दी की जड़ों को गहरा और मजबूत करती हैं। सूर,तुलसी,मीरा, कबीर,जायसी,रहीम,चन्दबरदाई हिन्दी के ही रचनाकार हैं।
वैश्वीकरण के इस दौर में जहाँ आए-दिन भाषाएँ दम तोड़ रही हैं,ऐसे में बोलियों को स्वतंत्र भाषा का दर्जा देना कोई महत्व नहीं रखता है। आज बोलियों को स्वतंत्र दर्जा दिया तो कल उपबोलियाँ अपने स्वतंत्र अस्तित्व की माँग करेंगी और यह परम्परा राष्ट्रीय एकता के लिए घातक होगी। हिन्दी की बोलियों को स्वतंत्र भाषा घोषित करने से हिन्दी की स्थिति कमजोर होगी। भाषायी गणना में हिन्दी भाषियों की संख्या कम होगी,जिससे अपने ही देश में हिन्दी का महत्व कम हो जाएगा और इसके अन्तर्राष्ट्रीय स्वरूप को क्षति पहुँचेगी। हिन्दी से इतर देवनागरी लिपि आधारित अन्य बोलियों को स्वतंत्र भाषा का दर्जा देने से किसी का भला नहीं होने वाला है। इनके अलग होने से हिन्दी कमजोर हो जाएगी,वहीं ये बोलियाँ भी एक सीमित क्षेत्र में सिमटकर रह जाएँगी। हिन्दी की बोलियाँ बहुत फूले-फलें,लेकिन इनके कारण हिन्दी का नुकसान नहीं होना चाहिए। हिन्दी के हित में इन क्षेत्रीय बोलियों को हिंदी का ही अंग बने रहकर हिन्दी के विकास में अपना योगदान देना चाहिए। हिन्दीभाषी क्षेत्र बोलियों में टुकड़े-टुकड़े होकर नहीं बिखरना चाहिए। हिन्दी सभी बोलियों को एक कड़ी में बाँधे रहकर विश्व मंच पर शान्ति,सदभावना का जीवन्त प्रतीक बनकर उभरे।

परिचय-सुरेश चन्द्र का लेखन में नाम `सर्वहारा` हैl जन्म २२ फरवरी १९६१ में उदयपुर(राजस्थान)में हुआ हैl आपकी शिक्षा-एम.ए.(संस्कृत एवं हिन्दी)हैl प्रकाशित कृतियों में-नागफनी,मन फिर हुआ उदास,मिट्टी से कटे लोग सहित पत्ता भर छाँव और पतझर के प्रतिबिम्ब(सभी काव्य संकलन)आदि ११ हैं। ऐसे ही-बाल गीत सुधा,बाल गीत पीयूष तथा बाल गीत सुमन आदि ७ बाल कविता संग्रह भी हैंl आप रेलवे से स्वैच्छिक सेवानिवृत्त अनुभाग अधिकारी होकर स्वतंत्र लेखन में हैं। आपका बसेरा कोटा(राजस्थान)में हैl

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