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कुछ ही दिनों की तो बात है

दीपक शर्मा

जौनपुर(उत्तर प्रदेश)

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‘कोरोना’
वुहान से चलकर,
विश्व-भ्रमण करते हुए
आया जो भारत,
जहाज में बैठ कर।
और दे दी हमें
चुपचाप,
युद्ध की चुनौती।
हम लड़ेंगे,
और उसे हराएंगे
बिना किसी बारूद के,
अपने घरों में बैठकर॥

कुछ ही दिनों की तो बात है,
नहीं मिलेंगे किसी दोस्त से
नहीं खेलेंगे स्टेडियम में क्रिकेट मैच,
नही जाएंगे सिनेमाहाल।
नवरात्रि का समय है,
घर में ही करेंगे
देवी माता की आराधना,
फुर्सत के पल हैं
आलमारी में रखी हुई सारी किताबें,
पढ़ डालेंगे।
भाई की शादी के लिए कपड़े,
बाद में बनवा लेंगे
इस बार बिट्टी के जन्मदिन पर,
केक नहीं काटेंगे॥

कुछ ही दिनों की तो बात है,
तब तक दोस्तों से
फोन पर ही करते रहेंगे बातें।
घर में ही बच्चों को सिखाएंगे
हिंदी-अंग्रेजी वर्णमाला,
उनके साथ खेलेंगे लूडो
और गुड्डा-गुडी का खेल।
दादा-दादी से कहेंगे-
“पड़ोसी के घर न जाकर
देखिए टेलीविजन पर रामायण,
सुनाइये बच्चों को कहानियाँ॥”

और हे प्रिये!
तुम्हें शिकायत रहती थी न,
कि मैं समय से घर नहीं आता हूँ
छुट्टियों के दिन भी गायब रहता हूँ।
अब सारा दिन करूंगा
तुमसे बातें,
तुम्हारी आँखों का काजल
माथे की बिंदिया,
और कानों की बाली को।
देर तक निहारूँगा,
तुम्हारे जूड़े को
गाँठना सीख जाऊँगा।
मेरे बिखरे हुए बालों को,
तुम भी संवार दो ना॥

कुछ ही दिनों की तो बात है,
हम फिर मिलाएंगे
गर्मजोशी से हाथ,
और देखेंगे
प्रेमी जोड़े में
घास पर गिरा हुआ गोल चुम्बन।
कैन्टीन में बैठकर,
फिर उड़ाएंगे हँसी के फव्वारे
सजाएंगे महफिल,
कर सकेंगे
कवि सम्मेलन।
प्रातःकालीन बेला में,
चलो सिवान घूम आते हैं
देख आते हैं
गेहूँ के खेतों में,
मृदुल हवा के साथ
झूमती हुई बालियों को,
महकते हुए धनिए को।
फिर वहीं से मापेंगे,
धरती-आसमान के बीच की दूरी
और पगडण्डी पर बैठ कर,
लिखेंगे सुंदर-सी कविता॥

कुछ ही दिनों की तो बात है,
ये महामारी चली जाएगी
हम सब का संकट कट जाएगा।
तब तक अपने घर की,
खिड़कियों से देखिए
विचरण करते हुए पंछियों को,
और पता करते रहिए
कि हमारे पड़ोस में,
कोई भूखा तो नहीं।
ज़रूरतमंद को,
पहुंचा आइए
अनाज और सब्जियां,
फल और साबुन
और रखिये देश को खुशहाल॥

कुछ ही दिनों की तो बात है,
विद्यालय,दफ़्तर,दुकानें,कारखाने
सब खुल जाएंगे,
रेलगाड़ियों के पहिए
जो थम गए हैं
फिर से दौड़ने लगेंगे,
अपनी पटरियों पर।
और हम लोग भी,
आ जाएंगे सड़क पर
लेकर साइकिल,
सिर आसमान पर उठाकर
देख सकेंगे उड़ते हुए जहाजों को।
और गायेंगे गीत-
‘विजयी विश्व तिरंगा प्यारा॥’

परिचय-दीपक शर्मा का स्थाई निवास जौनपुर के ग्राम-रामपुर(पो.-जयगोपालगंज केराकत) उत्तर प्रदेश में है। आप काशी हिंदू विश्वविद्यालय से वर्ष २०१८ में परास्नातक पूर्ण करने के बाद पद्मश्री पं.बलवंत राय भट्ट भावरंग स्वर्ण पदक से नवाजे गए हैं। फिलहल विद्यालय में सहायक अध्यापक के पद पर कार्यरत हैं।आपकी जन्मतिथि २७ अप्रैल १९९१ है। बी.ए.(ऑनर्स-हिंदी साहित्य) और बी.टी.सी.( प्रतापगढ़-उ.प्र.) सहित एम.ए. तक शिक्षित (हिंदी)हैं। आपकी लेखन विधा कविता,लघुकथा,आलेख तथा समीक्षा भी है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में इनकी कविताएँ व लघुकथा प्रकाशित हैं। विश्वविद्यालय की हिंदी पत्रिका से बतौर सम्पादक भी जुड़े हैं। दीपक शर्मा की लेखनी का उद्देश्य-देश और समाज को नई दिशा देना तथा हिंदी क़ो प्रचारित करते हुए युवा रचनाकारों को साहित्य से जोड़ना है।विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा आपको लेखन के लिए सम्मानित किया जा चुका है।

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