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हिंदी विश्‍वविद्यालय ने काव्‍य संध्‍या में किया ‘नेताजी’ का स्मरण

वर्धा(महाराष्ट्र)।

महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्‍ल की अध्‍यक्षता में नेताजी सुभाष चन्‍द्र बोस की स्मृति में शनिवार की शाम को ग़ालिब सभागार में काव्‍य संध्‍या का आयोजन ऑनलाइन तथा ऑफ़लाइन दोनों माध्यमों से किया गया। ‘नेताजी की पत्रकारिता’ विषय पर व्‍याख्‍यान भी आयोजित किया गया।
इस कार्यक्रम का प्रारंभ दीप दीपन व नेताजी के चित्र पर माल्‍यार्पण कर किया गया। इस दौरान काव्य संध्या का आयोजन भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय की योजना ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ के अंतर्गत किया गया। संध्‍या का संयोजन मानविकी एवं सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ के अधिष्‍ठाता प्रो. चौबे ने किया। संध्‍या में वरिष्‍ठ कवि योगेंद्र नाथ शर्मा ‘अरूण’ ने पराक्रम दिवस को समर्पित कविता ‘गीत गाता हूँ मैं आज उनके लिए,जो जिए भी मरे भी वतन के लिए’ का पाठ किया। मुंबई से रासबिहारी पाण्‍डेय ने ‘सच कहते हैं जब तक यारों हर नारा बेकार है, हम हैं पतन की ओर या उत्‍थान कर रहे हैं’ कविता सस्‍वर प्रस्‍तुत की। भोपाल से मधु शुक्‍ला ने नारी संवेदना पर ‘तुलसी मानस के राम लिखूँ,मॉं शक्ति दो इतनी मैं गीत देश के नाम लिखूँ’ कविता प्रस्‍तुत की। प्रेम शंकर त्रिपाठी ने ‘भारत माता के वंदन में अपना सर्वस्‍व लुटाया था’ कविता के साथ-साथ आकांक्षा और कामना के दोहे भी सुनाए। विश्‍व हिंदी निदेशालय मारीशस के महा‍सचिव विनोद मिश्र ने ‘ध्‍वंस के आगे चलें निर्माण की बातें करें’ और ‘हर तरफ से जला आशियां देखिए,यही है वक्‍त अंधेरों को आजमाने का’ कविताओं का पाठ किया। वरिष्‍ठ पत्रकार कवि विनोद श्रीवास्‍तव ने ‘हमने भी किया नहीं अंतत: बचाव,फिर नदी अचानक सिहर उठी,ये कौन छू गया सांझ ढले’ इत्यादि कविता प्रस्‍तुत की। सभी कवियों ने अपनी रचनाओं का आनलाइन माध्‍यम से पाठ किया।
अध्‍यक्षीय उदबोधन में कुलपति प्रो. शुक्‍ल ने अपनी ५ कविताएं ‘आओ हम फिर एक नया इतिहास बनाते हैं,‘बुद्ध सौगत को नमन है’, ‘चल पड़ा छोड़ कर बंधनों को’,‘अंधेरा नहीं जीतता’ और ‘धुआं धुआं’ के माध्‍यम से श्रोताओं को मंत्रमुग्‍ध कर दिया। काव्‍य संध्‍या में कुसुम शुक्‍ल,प्रतिकुलपति प्रो. हनुमानप्रसाद शुक्‍ल,कुलसचिव कादर नवाज़ ख़ान,प्रो. अवधेश कुमार, प्रो. नृपेंद्र प्रसाद मोदी एवं डॉ. जयंत उपाध्‍याय सहित अध्‍यापक,अधिकारी एवं कर्मी भी उपस्थित थे। संचालन डॉ. धरवेश कठेरिया ने किया।

(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन,मुंबई)

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