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हिन्दी की पहचान दिखनी चाहिए

 

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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शान हिन्दी की सदा ऊँची ही रहनी चाहिए,
मुँह से जब निकले तो ये सरिता सी बहनी चाहिए।

बात जो कहनी है तो उपयोग हिन्दी का करो,
विषय कुछ हो भाषा हिन्दी ही रहनी चाहिए,

थोपता हो आप पर जो और भाषा गर कोई,
ऐसी हठधर्मिता नहीं कोई भी सहनी चाहिए।

भाषाएं हर प्रांत की मीठी ही होती हैं सभी,
देश के हर प्रांत में हिन्दी भी चलनी चाहिए।

बात जो कोई करे इंग्लिश में तुमसे ऐंठ कर,
तुमको अपनी बात बस हिन्दी में कहनी चाहिए।

छंद दोहे और ग़ज़लें या हो कविताएं सभी,
कुछ भी लिक्खो तुम मगर हिन्दी में लिखनी चाहिए।

कोई भाषा-भाषी हो पहचान बोली से करो,
हिन्दी की पहचान पहनावे में दिखनी चाहिए

अन्न हिन्दुस्तान का हो मक्की,चावल,बाजरा,
खाने में मक्खन मिला कर दाल मखनी चाहिए॥

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है।

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