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घर सुरक्षित तो ही देश स्वस्थ

मंजू भारद्वाज
हैदराबाद(तेलंगाना)
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सुबह की पहली डोर बेल बजते ही हम दौड़ पड़ते हैं अखवार के लिए। बचपन से यही तो देखा है कि सुबह की शुरुआत गर्मा-गर्म चाय और गर्मा-गर्म ख़बरों के साथ होती रही है,पर आज के इस दौर में अख़बार का हर पन्ना, टी.वी. का हर चैनल, मीडिया का हर श्रोता लहूलुहान है। हर सुबह अख़बार के पन्ने खून-खराबा,स्त्री पर हो रहे अत्याचार से भरे पड़े हैं। कहीं औरतों को जिंदा जलाया जा रहा है,तो कहीं सरेआम उसकी इज्जत लूटी जा रही है। कहीं वह बेजान चीज़ों की तरह बेची जा रही हैं,तो कहीं अस्मत बेचने को मजबूर की जा रही हैं। देखा जाए तो अख़बार,इंटरनेट आदि मीडिया के हर स्रोत में बढ़ता नंगापन, उत्तेजित करते दृश्यों,अश्लील चलचित्र एवं अश्लील फिल्मों की भी भरमार है। आज ये अश्लीलता पैसे कमाने का बहुत बड़ा जरिया बनती जा रही है। आधुनिकता के नाम पर हम अपनी मर्यादा की हर रेखा लांग चुके हैं। बड़ी-बड़ी अभिनेत्री भी बहुत बेबाक हो कर अपना जिस्म प्रदर्शन कर रही हैं,और निर्माता कहते हैं-ये दर्शकों की मांग है पर इसे श्रोताओं की मांग बनाने का श्रेय भी उन्हीं को जाता है। और सेंसर बोर्ड भी उन्हें देख कर अपनी आँखें सेकता है। हर जगह उत्तेजक दृश्यों को देख कर उत्तेजित इंसान,अपनी उत्तेजना का शिकार घर,पास-पड़ोस की महिलाओं को,काम वालियों को बनाता है और उसी में करीना,दीपिका को ढूंढता है। सिर्फ युवा ही नहीं,उमरदार बुजुर्ग भी इस हरकत में शामिल हैं। सवाल यह है कि, समाज में ऐसी आफत पैदा करने वाले लोगों के खिलाफ क्यों नहीं ज़बर्दस्त कदम लिया जाता है। कई बार बलात्कार के घिनौने काण्ड से सारा देश काँप जाता है,पर ये आँधी बस कुछ ही समय के लिए उठती है और शांत हो जाती है,यानी दु:ख-दर्द सिर्फ कविता-कहानियों में सिमट कर रह जाता है। खून का उबाल इतनी जल्दी शांत हो जाता है,देख कर आश्चर्य होता है यह सब। इससे दरिन्दे को दरिन्दगी की शह मिलती है और इसी लिए बार-बार ये काण्ड दुहराया जाता है। अब तो इस तरह के शर्मनाक हादसे बयां के काबिल भी नहीं है। इसकी व्याख्या करने के लिए जुबाँ से निकले शब्द तेजाब की तरह हमें जला रहे हैं,आज जिसका शिकार कहीं दो महीने की मासूम है,तो कहीं चार महीने की,कहीं एक साल की,तो कहीं चार साल की,कहीं दस साल की,तो कहीं चालीस साल की,कहीं साठ साल की तो कहीं पिच्यासी साल की महिला है। जब ये सुरक्षित नहीं हैं,तो जवान बेटियां कहाँ सुरक्षित रह सकती हैं ?
हम सिर्फ मोमबत्ती जला कर इनके अन्धकार भरे जीवन को रौशन नहीं कर सकते। जो इस पीड़ा को सहते हुए इस दुनिया से चले गए,उनकी आत्मा भी व्याकुल होगी इंसाफ पाने को। इसलिए ऐसे बलात्कारी को खुले आम चौरास्ते पर फांसी दी जानी चाहिए। इनकी सजा इतनी भयंकर होनी चाहिए कि, जिसका खौफ इस ख्याल से भी लोगों को दूर रखे।
आखिर क्यों हमेशा हमारे आत्मबल,स्वाभिमान, खुशियों एवं हमारी इच्छाओं को बेड़ियों में जकड़ा जाता है। सिर्फ इस डर से कि हमारा बलात्कार न हो जाए…!। इन सबका जिम्मेदार कौन है ? वह इंसान,जिसे जन्म एक औरत ने दिया है। औरत यदि सीता है,सावित्री है,तो काली और दुर्गा भी है। आज देश में बढ़ते इस जघन्य अपराध ने औरतों को भी कठोर बनने को मजबूर कर दिया है।
आज के दौर में मीडिया इतना शक्तिशाली माध्यम बनता जा रहा है कि,हमें क्या पहनना है,हमें कैसे रहना है,कैसे बोलना है,क्या बोलना है,यह सब मीडिया तय करता है,तो क्या मीडिया का यह दायित्व नहीं है कि वह हमारी आने वाली पीढ़ी को हमारे संस्कार, हमारी मर्यादा,हमारी सभ्यता से अवगत कराए,जिस वजह से हमारा देश पूरे विश्व में जाना जाता है। किसी कवि ने बहुत सही कहा है-‘कपड़े उतारना ही अगर फैशन है,तो हम अभागे हैं। आज के इस दौर में,कुत्ते भी हमसे आगे हैं।’
एक दौर था जब हेमामालिनी,माधुरी दीक्षित, जयाप्रदा की फिल्मों ने भी तहलका मचाया है। उनमें शालीनता थी,उन्हें देख कर आज भी श्रद्धा आती है,पर आज कई निर्माता पैसों के लालच में पर्दे पर नंगेपन का व्यापार कर रहे हैं। इसके समाज पर हो रहे असर को आप नजर अंदाज नहीं कर सकते हैं। हम जिन संस्कार की बड़ी -बड़ी बातें करते हैं,भविष्य में हमें उनकी परछाई भी नजर नहीं आएगी। आज मनोरंजन के नाम पर हमें किस तरह की फिल्में दिखाई जा रही है ?
अब धीरे-धीरे देश के हालात ये हैं कि,जहाँ एक तरफ हम उन्नति कर रहे हैं, वहीं हम अवनति की किस गर्त में जा रहे हैं,इसका अन्दाजा आप सहज ही लगा सकते हैं। आज मोबाइल में संदेश आता है-‘अकेली हो,बोर हो रही हो,दोस्ती करोगी,तुम्हारा नम्बर गुप्त रखा जाएगा या अमीर औरतों से मसाज का आनन्द लीजिए।’ इस तरह के वाहियात विज्ञापनों से अखबार के भी पन्ने भरे पड़े हैं। क्या इसे हम तरक्की कहते हैं ? आपकी उन्नति,आपका आधुनिकपन हमें किस दिशा में ले जा रहा है,जहाँ भरोसा,सज्जनता,सच्चाई,विश्वास,मर्यादा,पवित्रता सब दम तोड़ रही है और हम उनके मरने का जश्न मना रहे हैं। एक परिवार की नींव होती है विश्वास, पवित्रता,मर्यादा। इसके बिना परिवार की कल्पना हम नहीं कर सकते। जब एक परिवार सुरक्षित नहीं होगा तो देश कैसे रह सकता है। सरकार को इस ओर बहुत अधिक ध्यान देना होगा।

परिचय-मंजू भारद्वाज की जन्म तारीख १७ दिसम्बर १९६५ व स्थान बिहार है। वर्तमान में आपका बसेरा जिला हैदराबाद(तेलंगाना)में है। हिंदी सहित बंगला,इंग्लिश व भोजपुरी भाषा जानने वाली मंजू भारद्वाज ने स्नातक की शिक्षा प्राप्त की है। कार्यक्षेत्र में आप नृत्य कला केन्द्र की संस्थापक हैं,जबकि सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत कल्याण आश्रम में सेवा देने सहित गरीब बच्चों को शिक्षित करने,सामाजिक कुरीतियों को नृत्य नाटिका के माध्यम से पेश कर जागृति फैलाई है। इनकी लेखन विधा-कविता,लेख,ग़ज़ल,नाटक एवं कहानियां है। प्रकाशन के क्रम में ‘चक्रव्यूह रिश्तों का'(उपन्यास), अनन्या,भारत भूमि(काव्य संग्रह)व ‘जिंदगी से एक मुलाकात'(कहानी संग्रह) आपके खाते में दर्ज है। कुछ पुस्तक प्रकाशन प्रक्रिया में है। कई लेख-कविताएं बहुत से समाचार पत्र-पत्रिका में प्रकाशित होते रहे हैं। विभिन्न मंचों एवं साहित्यक समूहों से जुड़ी श्रीमती भारद्वाज की रचनाएँ ऑनलाइन भी प्रकाशित होती रहती हैं। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार देखें तो आपको श्रेष्ठ वक्ता(जमशेदपुर) शील्ड, तुलसीदास जयंती भाषण प्रतियोगिता में प्रथम स्थान,श्रेष्ठ अभिनेत्री,श्रेष्ठ लेखक,कविता स्पर्धा में तीसरा स्थान,नृत्य प्रतियोगिता में प्रथम,जमशेदपुर कहानी प्रतियोगिता में प्रथम सहित विविध विषयों पर भाषण प्रतियोगिता में २० बार प्रथम पुरस्कार का सम्मान मिला है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-देश-समाज में फैली कुरीतियों को लेखनी के माध्यम से समाज के सामने प्रस्तुत करके दूर करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-दुष्यंत,महादेवी वर्मा, लक्ष्मीनिधि,प्रेमचंद हैं,तो प्रेरणापुंज-पापा लक्ष्मी निधि हैं। आपकी विशेषज्ञता-कला के क्षेत्र में महारत एवं प्रेरणादायक वक्ता होना है। इनके अनुसार जीवन लक्ष्य-साहित्यिक जगत में अपनी पहचान बनाना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-‘हिंदी भाषा साँसों की तरह हममें समाई है। उसके बिना हमारा कोई अस्तित्व ही नहीं है। हमारी आन बान शान हिंदी है।’

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