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घर-परिवार मेरा अभिमान

डॉ. आशा गुप्ता ‘श्रेया’
जमशेदपुर (झारखण्ड)
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घर-परिवार स्पर्धा विशेष……

संसार में घर और परिवार में अनुपम सामंजस्य रहता है। दोनों एक-दूसरे के पूरक होते हैं। घर चाहे कुटिया हो,या आलीशान अट्टालिकाएं,या महल। घर की गरिमा परिवार से बढ़ती है,और परिवार की गरिमा घर से। मानव प्राणी ने आदिम काल में अपनी सुरक्षा और अपने परिवार की सुरक्षा के लिए कहीं ना कहीं आसरा लिया,और इस तरह से घर जैसी जगह की स्थापना हुई। असल में परिवार या घर का चलन कब हुआ,इसका सही विवरण नहीं मिलता है। सतयुग में भी महल और घर होते थे। इसका अर्थ हजारों हजारों साल पहले इस अनोखी सुंदर व्यवस्था का अविष्कार हुआ होगा।
घर के नाम से ही हृदय में कोमल भावों का अनुभव होता है। शायद ही कोई मानव होगा,जिसे घर की आवश्यकता ना होती हो। जनों के अस्थायी या स्थायी घर तो होते ही हैं। घर केवल छत नहीं,यह परिवार और रिश्तों को बाँधे रखने वाले स्थान हैं। घर की गरिमा या नाम उस घर में रहने वाले परिवार के मुख्य सदस्य के नाम से ही रहता है।
घर-परिवार के सदस्यों के प्यार,समर्पण,त्याग, क्रोध,पीडा़,मनुहार,दु:ख-सुख,हानि,प्रगति अनेक सपनों का गवाह रहता है। घर का हर कोना कुछ कहता है। परिवार में नन्हें बच्चों का जनम,उनके लालन-पालन,उनके बढ़ते कदम,उनकी किलकारियों के साथ पति-पत्नी के दाम्पत्य सुख, उनकी प्रेम भरी नोक-झोंक,त्याग और माता-पिता, दादा-दादी,नाना-नानी आदि अनेक रिश्तों की खुशबू से दमकता है।
घर-परिवार के हर व्यक्ति का अभिमान होता है। घर-परिवार ही बच्चों की शिक्षा, प्रगति एवं व्यक्तित्व निर्माण में सहायक होता है।
संक्षेप में कहें,तो अपना घर और परिवार जन के सदा हृदय के करीब होते हैं। उनका गर्व होता है। परिवार ही रिश्तों की कोमलता,सहनशीलता का सुंदर उदाहरण है। घर की एक छत के नीचे परिवार जीवन के हर सुख से आनंदित होता है,और पीड़ा के दर्द को साथ मिल बाँटता,आँसू बहाता है। परिवार का साथ ही हर तूफान में साहस बनता है।
इस कोरोना संक्रमण के काल में घर- परिवार विषम परिस्थितियों से साथ लड़ रहे हैं,और साथ खडे़ हैं,एक-दूसरे के लिए समर्पित हैं।
घर-परिवार के लिए सबसे सुंदर कथन-
‘घर सजता है परिवार जनों से
हँसता घर देख सुखी परिवार
सुख-दुःख परिवार का समझे
घर कहता मैं तुम्हारा सम्मान
ईंट पत्थर नहीं,ये हैं अरमान
परिवार सजा देख है कहता
रहे प्रफुल्लित सुखी परिवार
सुंदर विचारों से भरा हो ज्ञान
परिवार मेरा हे परम सजा रहे
दमके सदा शुभ नंदन कानन
मात पिता आशीष संग शिक्षा
संस्कारों से सजा रहे ये जीवन
स्नेह सिंचित हृदय खिले प्राण
छोटे-बड़े सबका नित हो आदर
प्रगति भरा हो सुरक्षित जीवन
बेटे-बेटी सम ऐसा घर मधुवन
नतमस्तक रहूँ सदा मैं ऋणी
प्रभु जी करूँ कोटि कोटि नमन
अर्जुन से संकल्पी हों कर्मवीर
नमन घर-परिवार देश अभिमान।’

परिचय- डॉ.आशा गुप्ता का लेखन में उपनाम-श्रेया है। आपकी जन्म तिथि २४ जून तथा जन्म स्थान-अहमदनगर (महाराष्ट्र)है। पितृ स्थान वाशिंदा-वाराणसी(उत्तर प्रदेश) है। वर्तमान में आप जमशेदपुर (झारखण्ड) में निवासरत हैं। डॉ.आशा की शिक्षा-एमबीबीएस,डीजीओ सहित डी फैमिली मेडिसिन एवं एफआईपीएस है। सम्प्रति से आप स्त्री रोग विशेषज्ञ होकर जमशेदपुर के अस्पताल में कार्यरत हैं। चिकित्सकीय पेशे के जरिए सामाजिक सेवा तो लेखनी द्वारा साहित्यिक सेवा में सक्रिय हैं। आप हिंदी,अंग्रेजी व भोजपुरी में भी काव्य,लघुकथा,स्वास्थ्य संबंधी लेख,संस्मरण लिखती हैं तो कथक नृत्य के अलावा संगीत में भी रुचि है। हिंदी,भोजपुरी और अंग्रेजी भाषा की अनुभवी डॉ.गुप्ता का काव्य संकलन-‘आशा की किरण’ और ‘आशा का आकाश’ प्रकाशित हो चुका है। ऐसे ही विभिन्न काव्य संकलनों और राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में भी लेख-कविताओं का लगातार प्रकाशन हुआ है। आप भारत-अमेरिका में कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्बद्ध होकर पदाधिकारी तथा कई चिकित्सा संस्थानों की व्यावसायिक सदस्य भी हैं। ब्लॉग पर भी अपने भाव व्यक्त करने वाली श्रेया को प्रथम अप्रवासी सम्मलेन(मॉरीशस)में मॉरीशस के प्रधानमंत्री द्वारा सम्मान,भाषाई सौहार्द सम्मान (बर्मिंघम),साहित्य गौरव व हिंदी गौरव सम्मान(न्यूयार्क) सहित विद्योत्मा सम्मान(अ.भा. कवियित्री सम्मेलन)तथा ‘कविरत्न’ उपाधि (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ) प्रमुख रुप से प्राप्त हैं। मॉरीशस ब्रॉड कॉरपोरेशन द्वारा आपकी रचना का प्रसारण किया गया है। विभिन्न मंचों पर काव्य पाठ में भी आप सक्रिय हैं। लेखन के उद्देश्य पर आपका मानना है कि-मातृभाषा हिंदी हृदय में वास करती है,इसलिए लोगों से जुड़ने-समझने के लिए हिंदी उत्तम माध्यम है। बालपन से ही प्रसिद्ध कवि-कवियित्रियों- साहित्यकारों को देखने-सुनने का सौभाग्य मिला तो समझा कि शब्दों में बहुत ही शक्ति होती है। अपनी भावनाओं व सोच को शब्दों में पिरोकर आत्मिक सुख तो पाना है ही,पर हमारी मातृभाषा व संस्कृति से विदेशी भी आकर्षित होते हैं,इसलिए मातृभाषा की गरिमा देश-विदेश में सुगंध फैलाए,यह कामना भी है

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