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घर एक मन्दिर ही

राजकुमार अरोड़ा ‘गाइड’
बहादुरगढ़(हरियाणा)
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यह बात निस्संदेह नितान्त सत्य ही है कि,घर एक मन्दिर की तरह है। मन्दिर में जाते ही प्रभु से समीपता का एहसास होता है,ऐसे ही घर में जहाँ परस्पर प्यार,लगाव,आकर्षण हैl जाते ही अपनेपन का एहसास हिलोरे लेने लगता हैl घर की देहरी में आते ही सारी थकान दूर हो जाती है तो यह मंदिर जैसा ही लगता है,नहीं तो मकान ही है, ईंट सीमेंट से बना,जहां एक-दूसरे से विमुख कुछ प्राणी बस किसी तरह रहते हैं।
पति-पत्नी दोनों या सिर्फ पति की नौकरी,बच्चों के विद्यालय,टयूशन व शाम को दफ्तर से लेट आना,फिर घर रसोई के काम,बच्चों से पढ़ाई व अन्य जानकारी लेना अगले दिन फिर वही दिनचर्या,जिंदगी यूं ही बीतती जाए,तो मशीन से क्या अलग है,एकाएक इस महामारी के कारण हुए या अब कुछ तालाबन्दी के कारण जीवनधारा तो बिल्कुल ही बदल ही गईl पहले कहते थे-मरने की फुर्सत नहीं है,अब मरने केे डर से फुर्सत में ही बैठना पड़ गया, जिनमें समन्वय था,परवाह थी,उनके लिए तो यह समय गुज़ारना एक पारिवारिक पिकनिक जैसा हो गयाl यह सच है,जहाँ परवाह है,वहां परिवार है,जहाँ परिवार है,वहीं ही तो हरिद्वार है। इसके विपरीत जहां बस किसी तरह मशीनी और महज़ औपचारिकता से भरी जिंदगी बस यूँ ही गुजर रही थी,वहां इतना लंबा समय एक-दूसरे को किसी तरह बर्दाश्त करना मुश्किल हो गया,हर समय रणक्षेत्र जैसा माहौल,नकारात्मकता से भरे वातावरण ने पारिवारिक जिन्दगी को छिन्न-भिन्न कर दिया,घर घर न रहा,बस एक मकान हो गया। पति भी कहां जाए घर में तो बैठना ही मुश्किल हुआ,पर ऑनलाइन काम में
तो घर रहना ही पड़ेगा।
मैंने देखा है कुछ एक परिवारों में सब-कुछ ठीक चल रहा होता है,कोई कमी नहीं,कोई अभाव नहीं,परन्तु बात-बात पर बेवजह अतीत की कुछ गलतियों या बातों को याद कर या करा कर घरेलू वातावरण को तनावग्रस्त कर दिया जाता है। अतीत की चादर बार-बार ओढ़ने से वर्तमान की सुनहरी चादर भी मैली ही नज़र आएगी,साथ ही भविष्य भी कौन-सा ठीक रह जाएगाl बात तो एकदम पूरी तरह सही है कि ब्रह्मांड में ज़ुबान ही ऐसी चीज़ है,जहां पर ज़हर और अमृत दोनों एकसाथ रहते हैं। मेरी कविता की पंक्तियाँ हैं-शब्द केवल शब्द नहीं होते हैं,तरकश से निकले बाण होते हैं। ऐसे-वैसे,बस यूँ ही कुछ न कहो।परोसने से पहले,ये चखने भी होते हैंll
गलतियां सुधारी जा सकती हैं,गलतफहमियां भी,पर गलत धारणा कभी नहीं सुधारी जा सकती। यह गलत धारणा बार-बार के कड़वे बोल के कारण बन जाती हैं,जब ऐसे में परिवार टूटन की कगार पर आता है तो दो में एक पक्ष कभी भी शत-प्रतिशत सही नहीं हो सकताl ऐसे में बहुत अधिक या बहुत कम कोई भी गलत हो सकता है,बुद्धिमत्ता व सूझ-बूझ से ही बात बनती हैl दोनों तरफ अहंकार व जिद के कारण बाद में तो पश्चाताप व कसमसाहट के अलावा कुछ भी नहीं बचता।

परिचय–राजकुमार अरोड़ा का साहित्यिक उपनाम `गाइड` हैL जन्म स्थान-भिवानी (हरियाणा) हैL आपका स्थाई बसेरा वर्तमान में बहादुरगढ़ (जिला झज्जर)स्थित सेक्टर २ में हैL हिंदी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री अरोड़ा की पूर्ण शिक्षा-एम.ए.(हिंदी) हैL आपका कार्यक्षेत्र-बैंक(२०१७ में सेवानिवृत्त)रहा हैL सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत-अध्यक्ष लियो क्लब सहित कई सामाजिक संस्थाओं से जुड़ाव हैL आपकी लेखन विधा-कविता,गीत,निबन्ध,लघुकथा, कहानी और लेख हैL १९७० से अनवरत लेखन में सक्रिय `गाइड` की मंच संचालन, कवि सम्मेलन व गोष्ठियों में निरंतर भागीदारी हैL प्रकाशन के अंतर्गत काव्य संग्रह ‘खिलते फूल’,`उभरती कलियाँ`,`रंगे बहार`,`जश्ने बहार` संकलन प्रकाशित है तो १९७८ से १९८१ तक पाक्षिक पत्रिका का गौरवमयी प्रकाशन तथा दूसरी पत्रिका का भी समय-समय पर प्रकाशन आपके खाते में है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। प्राप्त सम्मान पुरस्कार में आपको २०१२ में भरतपुर में कवि सम्मेलन में `काव्य गौरव’ सम्मान और २०१९ में ‘आँचलिक साहित्य विभूषण’ सम्मान मिला हैL इनकी विशेष उपलब्धि-२०१७ में काव्य संग्रह ‘मुठ्ठी भर एहसास’ प्रकाशित होना तथा बैंक द्वारा लोकार्पण करना है। राजकुमार अरोड़ा की लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा से अथाह लगाव के कारण विभिन्न कार्यक्रमों विचार गोष्ठी-सम्मेलनों का समय समय पर आयोजन करना हैL आपके पसंदीदा हिंदी लेखक-अशोक चक्रधर,राजेन्द्र राजन, ज्ञानप्रकाश विवेक एवं डॉ. मधुकांत हैंL प्रेरणापुंज-साहित्यिक गुरु डॉ. स्व. पदमश्री गोपालप्रसाद व्यास हैं। श्री अरोड़ा की विशेषज्ञता-विचार मन में आते ही उसे कविता या मुक्तक रूप में मूर्त रूप देना है। देश- विदेश के प्रति आपके विचार-“विविधता व अनेकरूपता से परिपूर्ण अपना भारत सांस्कृतिक, धार्मिक, सामाजिक, साहित्यिक, आर्थिक, राजनीतिक रूप में अतुल्य,अनुपम, बेजोड़ है,तो विदेशों में आडम्बर अधिक, वास्तविकता कम एवं शालीनता तो बहुत ही कम है।

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