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तुझसे कैसा शिकवा

निर्मल कुमार शर्मा  ‘निर्मल’
जयपुर (राजस्थान)
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नहीं शिकवा जरा तुझसे,या रब,मुझको है कोई,
धूप तेरी,छाँव तेरी और मरजी भी तेरी…
तू चाहे जो सिला दे,ना गिला मुझको है कोई।

जो माँगी महफ़िलें मैंने,तूने तन्हाइयाँ दी,
जो महफ़िल दी साथ तूने मुझे रुसवाइयाँ दी
फ़िज़ा तेरी,ख़िज़ां तेरी और मरजी भी तेरी,
रज़ा तेरी में राजी,ना गिला मुझको है कोई।

जो दी परवाज़ तूने,मैं हुआ तब आसमानी,
जिंदगी में लगी आने थी,फिर अब शादमानी
फ़लक तेरी जमीं तेरी और मरजी भी तेरी,
ख़ाक दे या ख़ला दे,ना गिला मुझको है कोई।

ख़ता तूने,न जाने माफ़ की,कितनी ही मेरी,
सज़ा तब दी,नहीं जब थी,खता कोई भी मेरी
रज़ा तेरी,क़ज़ा तेरी और मरजी भी तेरी,
फ़ैसला चाहे जो दे,ना गिला मुझको है कोई।

ग़लतफ़हमी नहीं मुझको,तुझे मैं जानता हूँ,
तेरे जलवे,तेरे अनवार को मैं मानता हूँ।
सहर तेरी,शब भी तेरी और मरजी भी तेरी,
तारीक़ी या नूर दे,ना गिला मुझको है कोई॥
(इक दृष्टि यहाँ भी:सिला=प्रतिकार,पुरस्कार, गिला= शिकायत, रुसवाई=बदनामी,फ़िज़ा= ख़ुशनुमा माहौल (सामान्यतया फ़िज़ा वातावरण के लिए प्रयुक्त होता है),ख़िज़ां= पतझड़, रज़ा= आज्ञा,स्वीकृति,परवाज़=उड़ान शादमानी= प्रसन्नता, फ़लक=आकाश,ख़ाक= भूमि, ख़ला= अंतरिक्ष, क़ज़ा=न्याय,अनवार= प्रकाश पुंज, सहर=सुबह, शब=रात्रि, तारीक़ी= अन्धकार, नूर=प्रकाश)

परिचय-निर्मल कुमार शर्मा का वर्तमान निवास जयपुर (राजस्थान)और स्थाई बीकानेर (राजस्थान) में है। साहित्यिक उपनाम से चर्चित ‘निर्मल’ का जन्म १२ सितम्बर १९६४ एवं जन्म स्थान बीकानेर(राजस्थान) है। आपने स्नातक तक की शिक्षा (सिविल अभियांत्रिकी) प्राप्त की है। कार्य क्षेत्र-उत्तर पश्चिम रेलवे(उप मुख्य अभियंता) है।सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आपकी साहित्यिक व सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भागीदारी है। हिंदी, अंग्रेजी,राजस्थानी और उर्दू (लिपि नहीं)भाषा ज्ञान रखने वाले निर्मल शर्मा के नाम प्रकाशन में जान्ह्वी(हिंदी काव्य संग्रह) और निरमल वाणी (राजस्थानी काव्य संग्रह)है। प्राप्त सम्मान में रेल मंत्रालय द्वारा मैथिली शरण गुप्त पुरस्कार प्रमुख है। आप ब्लॉग पर भी लिखते हैं। विशेष उपलब्धि में  स्काउटिंग में राष्ट्रपति से पुरस्कार प्राप्त ‘विजय रत्न’ पुरस्कार,रेलवे का सर्वोच्च राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त, दूरदर्शन पर सीधे प्रसारण में सृजन के संबंध में साक्षात्कार,स्व रचित-संगीतबद्ध व स्वयं के गाये भजनों का संस्कार व सत्संग चैनल से प्रसारण है। स्थानीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन होता रहता है। लेखनी का उद्देश्य- साहित्य व समाज सेवा है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-प्रकृति व समाज है। विशेषज्ञता में स्वयं को विद्यार्थी मानने वाले श्री शर्मा की रूचि-लेखन,गायन तथा समाज सेवा में है।

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