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मुझे भी दर्द होता है

रोशनी दीक्षित
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)
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हाड़ मांस का नहीं मैं पुतला,
मेरे सीने में भी दिल होता है।
पुरुष हूँ,जीवंत हूँ,हाँ,
मुझे भी दर्द होता है॥

चोट लगे तो रोना नहीं,
तुम लड़के हो और लड़के कभी रोते नहीं
बचपन से ही सुनते आते बस बात यही,
अरे! हम भी इंसान हैं,क्या हमें रोने का हक भी नहीं
आखिर हम पत्थर तो नहीं,
हममें भी एहसास होता है
पुरुष हूँ,जीवंत हूँ,हाँ!
मुझे भी दर्द होता है।

प्रसव पीड़ा में पत्नी जब चीख-चीख चिल्लाती है,
सच कहता हूँ,इस पति की भी तब जान हलक तक आती है
बच्चे के पैदा होने पर,
ये पिता भी खुशी में आँख भिगोता है
पुरुष हूँ,जीवंत हूँ,हाँ!
मुझे भी दर्द होता है।

नौ महीने पेट में रखकर,
माँ ममता की मूरत कहलाती है
अरे! कोई इस पिता से भी पूछे,
जिसने जाने कितनी ही रातें,करवट बदल गुजारी हैं
भरने बीवी-बच्चों का पेट,खुद भूखे पेट ही सोता है
पुरुष हूँ,जीवंत हूँ,हाँ!
मुझे भी दर्द होता है।

अधरों पर गिरे आँसू सबने देखे,
वो सूखा समुंदर पलकों पर किसने देखा
देखी सबने माँ की ममता,
पर पिता का संघर्ष किसने देखा।
बेटी की विदाई में ये पिता भी,खून के आँसू रोता है
*पुरुष हूँ,जीवंत हूँ,हाँ!
मुझे भी दर्द होता है।

मेरी बेटी,मेरा अभिमान,
तो क्या बेटों का नहीं है कोई सम्मान
सदियों से पुरुष अपराधी,पुरुष ही दोषी,
आखिर क्यों ? हमेशा पुरुष ही कटघरे में खड़ा होता है
पुरुष हूँ,जीवंत हूँ,हाँ!
मुझे भी दर्द होता है।

स्त्री-पुरुष गाड़ी के पहिए हैं एक समान,
इन दोनों का रिश्ता होता,नीर और तरु समान
नीर मिले तो तरु उगता और तरु से ही नीर बरसता है,
हाँ! दोनों में अंतर बस देह मात्र का होता है।
पुरुष हूँ,जीवंत हूँ,हाँ!
मुझे भी दर्द होता है॥

परिचय- रोशनी दीक्षित का जन्म १७ जनवरी १९८० को जबलपुर (मप्र)में हुआ है। वर्तमान बसेरा जिला बिलासपुर (छत्तीसगढ़) स्थित राजकिशोर नगर में है। स्नातक तक शिक्षित रोशनी दीक्षित ने एनटीटी सहित बी.एड. एवं हिंदी साहित्य से स्नातकोत्तर भी किया है। इनका कार्य क्षेत्र-शिक्षिका का है। लेखन विधा-कविता,कहानी,गज़ल है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी भाषा का प्रचार व विकास है।

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