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बढ़ती जनसंख्या-घटते संसाधन,नियंत्रण कानून बेहद जरुरी

अंकुर सिंह
जौनपुर(उत्तर प्रदेश)
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जनसंख्या वृद्धि कहीं न कहीं हमें आने वाले समय में भयंकर दुष्परिणाम की तरफ ले जा रही है, इस पर हम आज सचेत नहीं हुए तो आने वाले समय में संसाधनों के लिए महायुद्ध जैसी स्थिति का सामना करना पड़ सकता है,क्योंकि दैनिक उपयोग के संसाधन जैसे-पेट्रोल,डीजल,पेयजल,निवास और खेती हेतु भू-भाग इत्यादि की सीमित मात्रा है। जनसंख्या नियंत्रण कानून को यदि तत्काल प्रभावी नहीं किया गया तो आने वाले निकट भविष्य में संसाधनों के लिए गृह-युद्ध का सामना करना पड़ेगा। जब सीमित संसाधन के लिए उपयोगकर्ता ज्यादा होंगे तो उन संसाधनों पर अधिकार के लिए निश्चित ही भ्रष्टाचार और अपराध भी बढ़ेंगे।
हमारे देश में कृषि योग्य भूमि विश्व का २.४ फीसदी है,पेय-जल विश्व का ४ फीसदी है और जनसंख्या विश्व की २० फीसदी है,जो कहीं न कहीं ये इंगित करती है कि भविष्य में हालात ‘रोटी एक और खाने वाले दस’ जैसे होने वाले हैं। जनसंख्या नियंत्रण पर हमें अपने पड़ोसी देश चीन से सबक लेना चाहिए। चीन ९६ लाख वर्ग किलोमीटर में पसरा है,और भारत ३३ लाख वर्ग किलोमीटर से भी कम में है। इस तरह आँकड़ों के हिसाब से भारत की आबादी चीन से कम है,लेकिन क्षेत्रफल की तुलना से देखें तो यहां जनसंख्या घनत्व में हम पहले से ही चीन से आगे निकल चुके हैं। आज के समय में चीन में प्रति मिनट जन्म-दर ११ बच्चे की और हिंदुस्तान में ३३ बच्चों की है। आँकड़ों के आधार पर हम कह सकते हैं कि यदि जनसंख्या नियत्रंण के लिए जल्द ही कोई कठोर दंडात्मक कानून नहीं बनाया गया तो आने वाले ५-७ साल में चीन को पछाड़ क्रम १ पर काबिज होंगे,जो विकास में बाधक होगा क्योंकि संसाधन उतने ही रहेंगे और उपयोगकर्ताओं की संख्या ज्यादा होने से भुखमरी,बेरोज़गारी,आपराधिक गतिविधि और बीमारी जैसे संकट का सामना करना पड़ेगा। तब सबके इलाज के लिए ना उतने अस्पताल होंगे,ना उतने रोज़गार सृजित होंगे। तब तो खेतों में पैदा अन्न से सबकी भूख भी नहीं मिटेगी और सबको अच्छी और सस्ती शिक्षा नहीं मिलने से लोग तनाव ग्रस्त होकर आपराधिक प्रवृत्ति की तरफ रुख करेंगे।
भविष्य में संसाधन के संकट और आपराधिक गतिविधियों पर रोकथाम पर अंकुश रखना चाहते हैं तो बालकवि बैरागी जी के नारे ‘हम दो हमारे दो’ पर अध्यादेश लाना होगा। मेरा मानना है,’हम दो हमारे दो’ की जगह ‘हम दो हमारे एक’ का कानून लाना चाहिए,इसके लिए पहले लड़के-लड़कियों में लिंग के आधार पर भेदभाव मिटाना होगा।
आंध्रा,गुजरात,महाराष्ट्र,ओडिशा और गुजरात जैसे कुछ राज्यों में परिवार नियोजन जैसे प्रावधान हैं। अभी हाल में ही उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव में २ संतान तक वाले अभिभावक को चुनाव लड़ने की छूट रहेगी ऐसा मुद्दा भी चर्चा में है। बेशक क़ाबिले तारीफ भी है ऐसा कानून,लेकिन ऐसे कानून केवल पंचायत स्तर पर ही नहीं,अपितु राष्ट्रीय स्तर पर लोकसभा चुनाव और बाकी सरकारी सुविधाओं में भी समय-सीमा के साथ लागू होना चाहिए।
जनसंख्या नियंत्रण कानून चीन ही नहीं,बल्कि बहुत से देशों ने यही कानून बनाए। उदाहरण के रुप में ईरान को ही ले लीजिए। १९९० में वहाँ के राष्ट्रपति ख़ुमैनी साहब ‘हम दो हमारे दो’ का कानून लाए,जिसके आधार पर भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने करुणाकरण समिति का गठन किया। समिति ने काफी अध्ययन के बाद ये स्वीकार किया कि,भारत में भी ईरान जैसे जनसंख्या नियंत्रण कानून की जरुरत है। वो अलग बात है कि,किस राजनीतिक कारणवश वो कानून अभी तक नहीं बन पाया। यदि नियम उस समय लागू हो गया होता,तो आज हमारी जनसंख्या सवा सौ करोड़ होती। साल १९७५-७६ में जनसंख्या नियंत्रण हेतु नसबंदी जैसा तानाशाही कानून तो आया,जिसमें अविवाहित पुरुषों को भी पकड़कर नसबंदी की गई,जिससे लोगों के बीच एक गलत सन्देश गया। साल २००० में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने न्यायमूर्ति एम.एन. वेंकटचलैया की अध्यक्षता में संविधान समीक्षा आयोग का गठन किया था,जिसमें सर्वोच्च अदालत के न्यायधीश आदि कई बड़ी हस्ती थे। आयोग ने २ साल के विस्तृत अध्ययन के बाद कहा कि,संविधान में अनुच्छेद ४७-ए को जोड़िए और जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाइए। दुर्भाग्य से कुछ राजनीतिक समीकरणों से इस कार्य का भी शुभ आरम्भ नहीं हो पाया।
आज देश के विकास के लिए जनसंख्या नियंत्रण कानून पर सभी राजनीतिक दलों को राष्ट्रहित में साथ आना होगा और सामाजिक संगठनों,धार्मिक गुरूओं,शिक्षित और युवा वर्गों को चाहिए कि,लोगों को जनसंख्या विस्फोट पर अंकुश के लिए जागरूक करें।

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