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आज अपना बसेरा बनाया

प्रिया देवांगन ‘प्रियू’
पंडरिया (छत्तीसगढ़)
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देखो माँ मैंने आज अपना बसेरा बनाया,
तिनका-तिनका जोड़-जोड़ अपना घर बनाया।
कभी भूखा न रहने देती,खाना रोज लाती थी,
तुम नहीं खाती थी माँ,हमें रोज खिलाती थी।
ठंडी गर्मी बरसात,इन सबसे बचाती थी,
कितनी मेहनत करती थी माँ,अब समझ में आया।
देखो माँ मैंने आज अपना बसेरा बनायाll

बरसातों में पेड़ों पर,छाया तुम लाती थी,
जाड़े के दिनों में हमें,ठंड लगने से बचाती थी।
छोटे-छोटे बच्चे थे माँ,उड़ना हमें सिखाती थी,
कैसे जीना हमें चाहिए,राह नई दिखाती थी।
देखो माँ मैंने आज अपना बसेरा बनाया,
कितनी मेहनत करती थी माँ,अब समझ में आयाll

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