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डोरी

बोधन राम निषाद ‘राज’ 
कबीरधाम (छत्तीसगढ़)
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टूटे कभी न डोर ये,बनते ये संजोग।
रिश्ते बन्धन प्रेम का,बँधे सभी हैं लोग।
बँधे सभी हैं लोग,जहां में देखो प्यारे।
कहलाते परिवार,सभी मिल रहते सारेll
कहे `विनायक राज`,यहाँ कोई मत छूटे।
प्रेम-भाव निःस्वार्थ,कभी मत डोरी टूटेll

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