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ह़ुस्ने ‘सीरत’

सरफ़राज़ हुसैन ‘फ़राज़’
मुरादाबाद (उत्तरप्रदेश)
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ह़ुस्ने ‘सीरत पे जो भी मरते हैं।
कब ‘वो सूरत की ‘परवा करते हैं।

नाज़ ‘करती है रात भी उन ‘पर,
जो दीए तीरगी को हरते हैं।

राहे ह़क़ पर हैं गामज़न जो भी,
ग़ैर ‘मुन्सिफ़ को वो अखरते हैं।

लाख होते हैं तजरिबे उन पर।
डूब कर लोग जो ‘उभरते हैं।

छोड़ कर ख़ुदपसंद लोगों को,
हम सभी को सलाम ‘करते हैं।

अ़ज़्म देखो तो इन परिन्दों के,
आसमाँ ‘तक उड़ान ‘भरते हैं।

आईनों ‘का ‘फ़राज़’ क्या करना,
हम उन्हें देख कर ‘सँवरते हैं॥

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