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फिर से बचपन में हम घूम आएँ

निर्मल कुमार शर्मा  ‘निर्मल’
जयपुर (राजस्थान)
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तसव्वुर का ही आज ले कर सहारा,
चलो फिर से बचपन में हम घूम आएँ
अम्मा का आँचल,सुकूं का गुलिस्तां,
चलो पाक़ आँचल,वो, फिर चूम आएँ।

सही क्या गलत क्या,फ़हम ही नहीं था,
था बाबा का साया,कोई ग़म नहीं था
बाबा के काँधे,चढ़े हम शहंशाह,
चलो आसमानों में फिर झूम आएँ।

बालू से,दिलक़श घरौंदे बना के,
ख़्वाबों की दुनिया को,उनमें सजा के
गुड़िया से गुड्डे की शादी रचा के,
चलो,दोस्तों संग फिर झूम आएँ।

कच्ची थी सड़कें,मुहल्ले की सारे,
पाँवों में जूते ना चप्पल हमारे
डण्डे से गिल्ली हवा में उड़ा के,
मुहल्ले की गलियों में फिर घूम आएँ।

वो गर्मी की रातें,छतों पर बिताते,
ढली शाम ज्यों ही,छिड़क पानी आते
करें गुफ़्तगू चाँद-तारों से फिर से,
परियों की दुनिया में भी घूम आएँ।

आँगन की नाली में कपड़ा फँसा के,
तालाब मस्ती का,इसको बना के
कागज़ की कश्ती को इसमें चला के,
बचपन की बारिश में फिर झूम आएँ।

कभी रूठना और कभी था मनाना,
ज़रा नाज़-नख़रे दिखा,मान जाना
मासूमियत का नरम वो फ़साना,
मासूम दुनिया में फिर घूम आएँ।

तसव्वुर का ही आज ले कर सहारा,
चलो फिर से बचपन में हम घूम आएँ…॥
(इक दृष्टि यहाँ भी:तसव्वुर=कल्पना,फ़हम= ज्ञान,पाक़=पवित्र,गुफ़्तगू=बातचीत)

परिचय–निर्मल कुमार शर्मा का वर्तमान निवास जयपुर (राजस्थान)और स्थाई बीकानेर (राजस्थान) में है। साहित्यिक उपनाम से चर्चित ‘निर्मल’ का जन्म १२ सितम्बर १९६४ एवं जन्म स्थान बीकानेर(राजस्थान) है। आपने स्नातक तक की शिक्षा (सिविल अभियांत्रिकी) प्राप्त की है। कार्य क्षेत्र-उत्तर पश्चिम रेलवे(उप मुख्य अभियंता) है।सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आपकी साहित्यिक व सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भागीदारी है। हिंदी, अंग्रेजी,राजस्थानी और उर्दू (लिपि नहीं)भाषा ज्ञान रखने वाले निर्मल शर्मा के नाम प्रकाशन में जान्ह्वी(हिंदी काव्य संग्रह) और निरमल वाणी (राजस्थानी काव्य संग्रह)है। प्राप्त सम्मान में रेल मंत्रालय द्वारा मैथिली शरण गुप्त पुरस्कार प्रमुख है। आप ब्लॉग पर भी लिखते हैं। विशेष उपलब्धि में  स्काउटिंग में राष्ट्रपति से पुरस्कार प्राप्त ‘विजय रत्न’ पुरस्कार,रेलवे का सर्वोच्च राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त, दूरदर्शन पर सीधे प्रसारण में सृजन के संबंध में साक्षात्कार,स्व रचित-संगीतबद्ध व स्वयं के गाये भजनों का संस्कार व सत्संग चैनल से प्रसारण है। स्थानीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन होता रहता है। लेखनी का उद्देश्य- साहित्य व समाज सेवा है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-प्रकृति व समाज है। विशेषज्ञता में स्वयं को विद्यार्थी मानने वाले श्री शर्मा की रूचि-लेखन,गायन तथा समाज सेवा में है।

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