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महाराष्ट्रःमोटी खाल के नेता और भ्रष्टाचार

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख का इस्तीफा काफी पहले ही हो जाना चाहिए था,लेकिन हमारे नेताओं की खाल इतनी मोटी हो चुकी है कि जब तक उन पर अदालतों का डंडा न पड़े,वे टस से मस होते ही नहीं। देशमुख ने अपने पुलिसकर्मी सचिव वझे से हर माह १०० करोड़ रु. उगाह के देने को कहा था,इस बात के खुलते ही एक से एक रहस्य खुलकर सामने आने लगे थे। उद्योगपति मुकेश अंबानी के घर के सामने विस्फोटक से भरी कार रखने,उस कार के मालिक मनसुख हीरेन की हत्या और इस सबमें वझे की साजिश के स्पष्ट संकेत मिलने लगे। जिस मामले की जांच के लिए वझे जिम्मेदार था,उसी मामले में ही उसका गिरफ्तार किया जाना अपने-आपमें बड़ा अजूबा था। एक मामूली पुलिस निरीक्षक,जो किसी अपराध के कारण १६ साल मुअत्तिल रहा,उसका फिर नौकरी पर जम जाना और सीधे गृहमंत्री से संवाद करना आखिर किस बात का सूचक है ? यह रहस्य तब खुला,जब मुंबई के पुलिस आयुक्त परमबीरसिंह का अचानक तबादला कर दिया गया। परमबीर को गुस्सा आया और उसने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को लिखे अपने पत्र में गृहमंत्री,वझे और पुलिस विभाग की सारी पोल खोलकर रख दी। उसी आधार पर महाराष्ट्र के उच्च न्यायालय ने गहरा दु:ख व्यक्त किया और प्रांतीय सरकार द्वारा बिठाई गई जांच की बजाय सीबीआई की जांच की मांग की,वह भी १५ दिन के अंदर-अंदर ! हो सकता है कि ठाकरे सरकार सर्वोच्च न्यायालय की शरण में जाने की कोशिश करे,लेकिन पिछले ४-५ सप्ताह में ठाकरे-सरकार ने अपनी इज्जत पैंदे में बिठा ली है। जाहिर है कि १०० करोड़ रु. महीने का एक मंत्री क्या करेगा ? या तो वह पैसा वह मुख्यमंत्री या अपने पार्टी-अध्यक्ष को थमाएगा! इसीलिए स्वयं मुख्यमंत्री और उनके प्रवक्ता देशमुख की ढाल बने हुए थे। परमबीर के आरोपों को पहले तो यह कहकर उन्होंने रद्द किया कि वे प्रामाणिक नहीं हैं,क्योंकि उसमें ई-मेल पता कोई दूसरा है और परमबीर के हस्ताक्षर भी नहीं हैं। शरद पवार अपनी पार्टी, नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी के गृहमंत्री अनिल देशमुख को बचाने की कोशिश करते रहे। इस महाअघाड़ी-गठबंधन की तीसरी पार्टी कांग्रेस की भी हवा निकली पड़ी थी। उसने भी देशमुख के इस्तीफे की मांग नहीं की। इन तीनों दलों का इस षड़यंत्र और भ्रष्टाचार के प्रति जो रवैया देखा,क्या वह सभी दलों का नहीं है ? कोई भी दल या नेता दूध का धुला हुआ नहीं है। रफाल-सौदे में दी गई रिश्वत की खबर आज ही फूट पड़ी है। हमारी राजनीति का चरित्र इतना चौपट हो चुका है कि वह काजल की कोठरी बन चुकी है। अगर स्वयं गांधी जी को भी इसमें प्रवेश करना पड़ता तो पता नहीं कि उनके-जैसा महापुरुष भी बिना कालिख पुतवाए,इस कोठरी से बाहर निकल पाता या नहीं ? वह दिन कब आएगा, जब साफ-सुथरे लोग राजनीति में जाना चाहेंगे और उसमें जाकर भी वे साफ-सुथरे बने रह सकेंगे ? मिर्जा गालिब ने किसी दूसरे संदर्भ में ठीक ही लिखा था-
‘जिस को हो दीन ओ दिल अजीज़,उसकी गली में जाए क्यूँ ?’

परिचय– डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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