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मानसिक संघर्ष और नारी

अंशु प्रजापति
पौड़ी गढ़वाल(उत्तराखण्ड)
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‘कोरोना’ महामारी के चलते एक स्व प्रेरित वेबिनार हमारे कुछ शिक्षक बंधुओं के माध्यम से आयोजित की गई,जिसमें मुझे प्रतिभाग का सुअवसर प्राप्त हुआ ।
प्रतिदिन नए विषय पर चर्चा होनी थी,जिसमें एक दिन निर्धारित था जीवन और आध्यात्म के लिए। उस दिन जो चर्चा हुई,वो वास्तव में अदभुत थी। आयोजकों और प्रतिभागियों ने भरपूर आनंद लिया,जिन्होंने नहीं लिया उन्होंने इसका अभिनय किया। ‘अभिनय’ शब्द का प्रयोग क्यों कर रही हूँ,आपको पढ़ कर ज्ञात हो जाएगा।
एक बहुत ही सकारात्मक वातावरण मैंने अनुभव किया और मुझे आंतरिक सुख की अनुभूति हुई। आयोजकों के प्रति कृतज्ञता दर्शाने के लिए उस भक्ति पूर्ण भाव में जो शब्द मेरे मस्तिष्क में आए,मैंने लिख दिए-“आप सभी के मन में उतर गए औऱ हम आपको आजीवन याद रखेंगे।” इस वाक्य की बड़ी ही नकारात्मक प्रतिक्रिया मेरे ही शिक्षक साथी द्वारा मुझ तक पहुंचाई गई कि-मैं एक पुरूष सहकर्मी के लिए ऐसा किस प्रकार लिख सकती हूँ ?
ये प्रश्नचिन्ह वाक्य पर नहीं था,वस्तुतः मेरे भाव पर था जो मुझे स्वीकार्य नहीं। यद्यपि, मैंने उस क्षण बहुत ही अपमानित महसूस किया,किन्तु किसी प्रकार स्वयं को नियंत्रित किया। जब मन शांत हुआ तो सोचने पर मजबूर हो गई कि जहाँ इस समाज में शिक्षकों को पथ प्रदर्शक,समाज सुधारक,राष्ट्र निर्माता और भी न जाने कितने नामों से सम्बोधित किया जाता है,वहाँ भी मुझे एक वक्तव्य के बाद इतना सोचना पड़ा…तो एक आम स्त्री प्रतिदिन कितने संघर्षों से जूझती होगी ? क्या सिर्फ शब्द मायने रखते हैं,उनके पीछे के भाव नहीं ?? यदि ऐसा है तो हर बात का मतलब ही उलट जाएगा। शब्दों से खेलना राजनेताओं और अभिनेताओं का कार्य है,किन्तु उन्हें अनुभव करना और रचना बुद्धजीवियों का…ऐसा मेरा मानना है। हम क्या कहते हैं,क्या इससे व्यक्तित्व निर्धारण उचित है ? क्यों कहते हैं…यह महत्व का विषय नहीं ?? इस क्यों के पीछे के भाव महत्वपूर्ण नहीं ? ये बात इतनी सामान्य-सी क्यों है कि कोई भी आएगा और ये बताएगा कि हम महिलाओं को क्या बोलना है,और क्या नहीं।
आधुनिकता का छद्म आवरण ओढ़े हम क्या अपनी रूढ़िवादी सोच को उजागर कर दूर करने का प्रयास कभी नहीं करेंगे। स्वतंत्रता की सीमा हमें पता है और मर्यादा की भी। हमारे पास विवेक है स्वयं की मर्यादा रेखा खींचने का,अन्य किसी के पास यह अधिकार नहीं। क्या पुरुष अंदाज़ा लगा सकते हैं जब इतना मुखर होने के उपरान्त मुझे एक छोटे से वाक्य के बाद पूरी मानसिक प्रक्रिया से गुजरना पड़ा स्वयं को नियंत्रित करने के लिए ,तो एक सामान्य महिला के लिए प्रतिपल कितना मानसिक संघर्ष है ?
मैं स्वाभाविक संतुलन की पक्षधर हूँ,जो स्व-विवेक से ही जन्मता है। अपने आस-पास जो कुछ भी देखती हूँ,प्रतिपल सीखती हूँ। इस विषय पर चुप न रहना मेरा निर्णय था,और चाहती हूँ प्रत्येक महिला अपने लिए एक निर्णय अवश्य ले। मंज़िल दूर है लेकिन चलना तो आरम्भ हो…।

परिचय-अंशु प्रजापति का बसेरा वर्तमान में उत्तराखंड के कोटद्वार (जिला-पौड़ी गढ़वाल) में है। २५ मार्च १९८० को आगरा में जन्मी अंशु का स्थाई पता कोटद्वार ही है। हिंदी भाषा का ज्ञान रखने वाली अंशु ने बीएससी सहित बीटीसी और एम.ए.(हिंदी)की शिक्षा पाई है। आपका कार्यक्षेत्र-अध्यापन (नौकरी) है। लेखन विधा-लेख तथा कविता है। इनके लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक-शिवानी व महादेवी वर्मा तो प्रेरणापुंज-शिवानी हैं। विशेषज्ञता-कविता रचने में है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“अपने देेश की संस्कृति व भाषा पर मुझे गर्व है।”

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