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ठिठुरती सुबह

डॉ.शैल चन्द्रा
धमतरी(छत्तीसगढ़)
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दिसम्बर का आखिरी सप्ताह था। कड़ाके की ठंड पड़ रही थी।शीत लहर के प्रकोप से पूरे शहरवासी कांप रहे थे,फिर भी कहीं क्रिसमस तो,कहीं नए वर्ष का उत्साह लोगों में छाया था। कोई पिकनिक में जाने की तैयारी में था तो कोई क्रिसमस का महँगा केक आर्डर दे रहा था। युवा वर्ग न्यू ईयर की खुशियाँ मनाने फाइव स्टार होटल बुक कर रहा था। यह सारा उत्साह आभिजात्य था।
गरीब तबके के लोगों का इस दिसम्बर की हाड़ कँपा देने वाली ठण्ड ने जीना हराम कर रखा था। ऐसे में सड़क पर गुजारा करने वाला बेघर रघुपति के परिवार का बहुत ही बुरा हाल था। आने वाले त्यौहार और नए वर्ष में उन्हें जरूर आशा थी कि कोई दयालु,संवेदन शील लोग जरूर उनको इस ठण्ड से राहत देने कम्बल या स्वेटर दान करेगा । इसी आशा से रोज वह अपने ठिठुरते बच्चों को बहलाता,उन्हें आशा दिलाता।
बच्चे ठिठुरन से बचने का लाख प्रयास करते,पर ठंड किसी प्रेत की तरह उन्हें दबोच लेने को आतुर हो उठ। रघुपति को शहर में आग जलाने को लकड़ी भी कहाँ से मिलती ? जो कुछ देर जलाकर राहत मिलती।
कल रात को ठंड ने ऐसा कहर बरपाया कि,ओस से भीगी सुबह ठंड से ठिठुरती हुई आई और रघुपति के दोनों बच्चों को हमेशा के लिए ठंडा कर गई। रघुपति को इस ठिठुरती सुबह में अब एक कफ़न नहीं,बल्कि दो कफ़न की जरूरत थी।

परिचय-डॉ.शैल चन्द्रा का जन्म १९६६ में ९ अक्टूम्बर को हुआ है। आपका निवास रावण भाठा नगरी(जिला-धमतरी, छतीसगढ़)में है। शिक्षा-एम.ए.,बी.एड., एम.फिल. एवं पी-एच.डी.(हिंदी) है।बड़ी उपलब्धि अब तक ५ किताबें प्रकाशित होना है। विभिन्न कहानी-काव्य संग्रह सहित राष्ट्रीय स्तर के पत्र-पत्रिकाओं में डॉ.चंद्रा की लघुकथा,कहानी व कविता का निरंतर प्रकाशन हुआ है। सम्मान एवं पुरस्कार में आपको लघु कथा संग्रह ‘विडम्बना’ तथा ‘घर और घोंसला’ के लिए कादम्बरी सम्मान मिला है तो राष्ट्रीय स्तर की लघुकथा प्रतियोगिता में सर्व प्रथम पुरस्कार भी प्राप्त किया है।सम्प्रति से आप प्राचार्य (शासकीय शाला,जिला धमतरी) पद पर कार्यरत हैं।

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