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मेरी कल्पना

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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नए साल में नई उमंगें,
जैसे नया जमाना होगा
बीत जाएगा साल पुराना
गुज़रा हुआ फ़साना होगाl

तड़प रहे थे इतने दिन से,
डरते-डरते समय गुजारा
कब जाएगा ये कोरोना
कब आएगा वक्त हमाराl

कब अपनों से मिल पाएँगे,
फटा हुआ दिल सी पाएँगे
शहर में घूमेंगे आवारा,
जब होगा इससे छुटकाराl

आशा करते हैैं वर्ष नया,
खुशियाँ लेकर के आएगा
सब नूतन नवल सृजन होंगे,
भारत मेरा मुस्काएगा।

त्रासदियाँ भारत की भू को,
अब और नहीं तड़पाएंगी
ये धरना रैली-हड़तालें,
सब खत्म आज हो जाएँगी।

इन आतंकी गतिविधियों से,
अब त्रस्त नहीं होगा भारत
होंगे अब सदा सुरक्षित ही,
दुश्मन हो जाएँगे गारत।

ये बाढ़ ये सूखा अतिवृष्टि,
ये अनावृष्टि भूकम्प सभी
इन सबसे बचा हमें रखना,
ये प्राण न हरने पाएँ कभी।

ये चीन और नापाक पाक,
अब हमें चैन से जीने दें
छेड़ें न ये सोते सिंहों को,
इनको बस चुप ही रहने दें।

हम शांति दूत बन कर के ही,
हैं घूम रहे सारे जग में
हम नहीं चाहते कोई भी,
काँटे न बिछाए इस मग में।

अब तक ये हिन्दुस्तान कभी,
न डरा है ना डर जाएगा
ये सबका बाप रहा अब तक,
ये बाप सदा कहलाएगा।

ये सभी कल्पनाएँ मेरी,
साकार हे प्रभुवर हो जाएँ।
तुम अपना पता बता दो तो,
कुछ प्रसाद लेकर आ जाएं॥

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है।

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