राजेश पुरोहित
झालावाड़(राजस्थान)
****************************************************
अंतर के दर्पण में नव मीत बनाना बाकी है,
नव सृजन कर छंदों का नवगीत सजाना बाकी है।
दुनिया के मिथ्या झगड़ों से खुद को बचाना बाकी है,
रूढ़ियों और कुरीतियों से लड़ना अब भी बाकी है।
विश्वासों के भंवर जाल में जीना-मरना बाकी है,
असली और नकली चेहरों में अंतर करना बाकी है।
नफरत की दीवारों को घर में गिराना बाकी है,
रिश्तों की बगिया को फिर महकाना बाकी है।
आगत के स्वागत में अतीत भुलाना बाकी है,
कोरे कागज में इंद्रधनुषी रंग सजाना बाकी हैll