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मेरा राम फ़िर वनवासी हुआ जाता है

अंशु प्रजापति
पौड़ी गढ़वाल(उत्तराखण्ड)
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मन मन्दिर रिक्त हुआ जाता है,
मेरा राम फिर वनवासी हुआ जाता है
कोई कालिमा कैकेयी सी है घर कर गयी क्या ?
ये इतिहास पुनः दोहराया जाता है।
मेरा राम फिर…

हे राम! क्षमा करना मुझे,
मन भवन छोड़ना पड़ा तुझे
कोई भाव भी सिय लखन-सा,
साथ दिया न जाता है।
मेरा राम फिर…

मानवता भूमिजा-सी पावन है जो,
हरण तेरे सानिध्य बिन है हो चुकी
शौर्य सौमित्र-सा अब हैं कहां!
मर्यादा रेखा अब कौन खींच पाता है।
मेरा राम फिर…

तुम इस कलयुग में कहां,
खोजोगे दशानन को यहां
वो तो हर मानव में बसा,
हर मन दशानन हुआ जाता है।
मेरा राम फिर…

पग-पग इस वन गमन में,
अवगुण मित्र रूप में हैं खड़े
वाणी भी है माया दानवी,
अस्तित्व विश्वास का नष्ट हुआ जाता है।
मेरा राम फिर…

तुम क्रोध भी न कर सकोगे इस युग में,
जन-परिजन सब शत्रु हो रहे
हर सम्बन्ध एक छल हुआ है यहां,
दयनीय ये युग हुआ जाता है।
मेरा राम फिर…

घृणा कल्मष पाप घर-घर हुए,
लंका सभी का मन हुआ जाता है
वैभव अपराध का विराजता है सर्वदा,
अहंकार पहरेदार हुआ जाता है।
मेरा राम फिर…

कोई भरत नहीं है प्रतीक्षारत यहां,
कोई देह अयोध्या नहीं यहां
तुम न आना आशा दीप जलाने कभी,
सन्देह अब तुम्ही पर यहां किया जाता है।
मेरा राम फिर…वनवासी हुआ जाता है॥

परिचय-अंशु प्रजापति का बसेरा वर्तमान में उत्तराखंड के कोटद्वार (जिला-पौड़ी गढ़वाल) में है। २५ मार्च १९८० को आगरा में जन्मी अंशु का स्थाई पता कोटद्वार ही है। हिंदी भाषा का ज्ञान रखने वाली अंशु ने बीएससी सहित बीटीसी और एम.ए.(हिंदी)की शिक्षा पाई है। आपका कार्यक्षेत्र-अध्यापन (नौकरी) है। लेखन विधा-लेख तथा कविता है। इनके लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक-शिवानी व महादेवी वर्मा तो प्रेरणापुंज-शिवानी हैं। विशेषज्ञता-कविता रचने में है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“अपने देेश की संस्कृति व भाषा पर मुझे गर्व है।”

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