डॉ. मेनका त्रिपाठी
कनखल(हरिद्वार)
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काव्य संग्रह हम और तुम से…..
नीड़ तुम प्रिय,
मैं विहग तुम्हारी भोली-भाली।
घनी छाँव प्रेम तुम्हारा,
डग साहस से भरा हुआ
एक सीमित दायरे से बाहर लाकर,
दिखला कर चाँद मुझे
मुस्कराते हुए कहते कि-
‘जाओ जरा छू कर आओ तो’,
तारे भी मुठ्ठी भर तोड़ लाने का
भरते हों हौंसला।
करते हो इशारा बस,
कि लो बिन पँख उड़ कर
दिखा दो दिखा दो कि,
सब कर लोगी।
अपने मजबूत हाथों से,
पकड़ कर पतली कमर
उठाते हो मुझे,
ज्यों पतंग मैं
संग कोई,
अदृश्य डोर।शर्बत से प्रिय बोल,
घोल कर हृदय में
ली प्रिय फिर मैंने उड़ान,
नाप कर आसमान।
सपनों का आसमानी जल और,
पुष्प तारे भर अंजुरी लौट आती हूँ
पग पूजन को,
कि आश्रय प्रेमसुखद तुम्हारा
नीड़ तुम मेरे प्रियतम,
मैं विहग तुम्हारी
भोली-भाली॥