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उत्तर-दक्षिण भाषा-सेतु के वास्तुकार मोटूरि सत्यनारायण

डॉ. अमरनाथ,
कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)
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हिन्दी योद्धा-पुण्यतिथि विशेष…

आजादी के आन्दोलन के दौरान गाँधी जी के साथ हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में विकसित करने का जिन लोगों ने सपना देखा और उसके लिए आजीवन निष्ठा के साथ संघर्ष किया उनमें मोटूरि सत्यनारायण ( २ फरवरी १९०२ से ६ मार्च१९९५) का नाम पहली पंक्ति में लिया जा सकता है। वे भारतीय हिंदी आंदोलन के एक ऐसे अपराजेय सेनानी और योजनाकार थे, जिन्होंने मन,वचन और कर्म से हिन्दी के अखिल भारतीय स्वरूप को मजबूत आधार प्रदान करने के लिए जीवन भर संघर्ष किया। महात्मा गाँधी के अनन्य अनुयायी मोटूरि सत्यनारायण उत्तर से दक्षिण तक हिन्दी भाषा के सेतु थे। उन्होंने गाँधी जी का संदेश गाँव-गाँव एवं घर-घर तक पहुँचाया और हिन्दी को राष्ट्रीयता की संवाहिका और भारतीय भाषाओं के एकीकरण की मजबूत कड़ी मानकर उसके प्रचार-प्रसार में न केवल अपना संपूर्ण जीवन लगा दिया,बल्कि इसके लिए जेल भी गए।
उन्होंने ‘हिन्दी प्रचारक’,’हिन्दी प्रचार समाचार’ तथा ‘दक्षिण भारत’ जैसी पत्रिकाओं का कुशल सम्पादन किया। केन्द्रीय हिन्दी संस्थान(आगरा),भारतीय संस्कृति संगम(दिल्ली),तेलगु भाषा समिति, (हैदराबाद),हिंदी विकास समिति(मद्रास) एवं हिंदुस्तानी प्रचार सभा(वर्धा) जैसी संस्थाओं की स्थापना का श्रेय भी उन्हें है।
मोटूरि सत्यनारायण का जन्म दक्षिण भारत के आन्ध्र प्रदेश के कृष्णा जिले के दोण्डापाडु नामक गाँव में हुआ था। प्राथमिक शिक्षा के बाद माचिलिपट्टनम से अंग्रेजी,तेलुगू और हिन्दी की शिक्षा प्राप्त की और गाँधी जी के विचारों से प्रभावित होकर दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा में स्वयंसेवक बन गए। धीरे-धीरे उन्होंने अपनी प्रतिभा और कार्य क्षमता से वहाँ जगह बना ली और वे सभा के सचिव बने। फिर अपना पूरा जीवन उन्होंने आजादी की लड़ाई और हिन्दी की प्रतिष्ठा को समर्पित कर दिया।
महात्मा गाँधी के नेतृत्व में चलाए गए सत्याग्रह तथा ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ में उन्होंने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था। उन दिनों हिन्दी का प्रचार-प्रसार करना स्वाधीनता-आन्दोलन का ही अविभाज्य हिस्सा था। गाँधी जी ने हिन्दी आन्दोलन को आजादी के आन्दोलन से जोड़ दिया था। आन्दोलन में भाग लेने के कारण ही मोटूरि सत्यनारायण को बन्दी बनाया गया था। उन्होंने जेल में रहते हुए भी हिन्दी के प्रचार का कार्य जारी रखा। जेल से मुक्त होने पर उन्होंने हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए अनेक योजनाएँ बनाईं। इन योजनाओं में केन्द्रीय हिन्दी शिक्षण मंडल की योजना भी थी।
मोटूरि जी अपनी मातृभाषा तेलुगु के साथ तमिल,अंग्रेजी,उर्दू,हिंदी तथा मराठी में समान दक्षता रखते थे। राष्ट्रीय चेतना और राजनीतिक दूर-दृष्टि के साथ उनके बहुभाषा ज्ञान ने उनकी भाषा-दृष्टि को सर्वग्राही और समावेशी बनाया। वे समस्त भारतीय भाषाओं के विकास के पक्षधर थे। उनके द्वारा स्थापित केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के निर्माण के पीछे महात्मा गाँधी की प्रेरणा काम कर रही थी। वे हिन्‍दीतर राज्‍यों में सेवारत हिन्‍दी शिक्षकों को हिन्‍दी भाषा के सहज वातावरण में रखकर उन्‍हें हिन्‍दी भाषा, हिन्दी साहित्य एवं हिन्‍दी शिक्षण का विशेष प्रशिक्षण प्रदान करने की आवश्‍यकता का अनुभव कर रहे थे। उनका मत था कि भाषा सार्वजनिक समाज की वस्तु है,इसलिए इसका विकास भी सामाजिक विकास के साथ-साथ ही चलते रहना चाहिए। वे प्रयोजनमूलक हिंदी आंदोलन के जन्मदाता थे और उन्होंने संस्थान के माध्यम से इस आंदोलन को संचालित किया।
मोटूरि जी को यह भी चिन्‍ता थी कि हिन्‍दी कहीं सिर्फ साहित्‍य की भाषा बनकर न रह जाए। उसे जीवन के विविध प्रकार्यों की अभिव्‍यक्‍ति में समर्थ होना चाहिए। उनकी दृष्टि में हिन्‍दी को देश के लिए किए जाने वाले विशिष्‍ट प्रकार्यों की अभिव्‍यक्‍ति का सशक्‍त माध्‍यम बनना है और खुद को उसके अनुरूप ढलना और उसके लिए तैयार होना है। केन्द्रीय हिन्दी संस्थान की स्थापना के पीछे उनकी यही परिकल्पना थी।
अपने उद्देश्य को साकार करने के लिए मोटूरि जी ने १९५१ में आगरा में ‘अखिल भारतीय हिंदी परिषद्’ नामक एक हिंदी शिक्षक-प्रशिक्षण संस्था का आरंभ किया। उनके निर्देशन में इस परिषद् ने एक हिन्दी विद्यालय शुरू किया। संविधान सभा के अध्‍यक्ष एवं भारत के प्रथम राष्‍ट्रपति डॉ. राजेन्‍द्र प्रसाद परिषद के अध्‍यक्ष थे। इसके कार्य-क्षेत्र का विस्तार हुआ। मोटूरि सत्यनारायण के प्रयास से इस संस्था को अपने समय के अनेक विख्यात हिंदी विद्वानों,मनीषियों और शिक्षाविदों का सान्निध्य मिला। १९६० में केन्द्र सरकार ने केन्द्रीय हिंदी शिक्षण मंडल का गठन करके इसके संचालन का दायित्व अपने हाथ में ले लिया। मोटूरि सत्यनारायण इसके प्रथम अध्यक्ष बनाए गए। वे दूसरी बार संस्थान के अध्यक्ष रहे। मंडल का प्रमुख उद्देश्य भारत के संविधान की मूल भावना के अनुरूप अखिल भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी के शिक्षण-प्रशिक्षण,शैक्षणिक अनुसंधान, बहुआयामी विकास और प्रचार-प्रसार से जुड़े कार्यों का संचालन करना निश्चित किया गया। इसका नामकरण केन्द्रीय हिंदी संस्थान के रूप में किया गया। इस तरह आज का केन्द्रीय हिंदी संस्थान (आगरा) वास्तव में डॉ. मोटूरि सत्यनारायण के सपनों का ही मूर्तिमान रूप है।
‘केन्द्रीय हिंदी संस्थान’ और ‘दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा’ जैसी संस्थाओं के माध्यम से मोटूरि सत्यनारायण ने हिंदी प्रचार-प्रसार एवं विकास कार्य को अखिल भारतीय स्वरूप प्रदान किया। हिन्दी के प्रचार-प्रसार के साथ उसके व्यावहारिक रूप को मजबूत बनाने के लिए वे सदा लगे रहे,क्योंकि उन्हें पता था हिन्दी का व्यावहारिक पक्ष ही उसे अहिन्दी भाषी जनता को आकर्षित कर सकता है।
मोटूरि सत्यनारायण एक साथ कई मोर्चों पर काम करते रहे। दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के प्रधान मंत्रित्व के पद को संभालते हुए उन्होंने हिन्दी विकास समिति की ओर से ‘विश्व विज्ञान संहिता’ नामक ग्रंथ का भी प्रकाशन किया। प्रयोजनमूलक हिन्‍दी की उनकी संकल्‍पना से न केवल केन्‍द्रीय हिन्‍दी संस्‍थान को अपने शैक्षिक कार्यक्रमों में बदलाव के लिए प्रेरणा मिली,अपितु बाद में विश्‍वविद्‌यालय अनुदान आयोग को भी इससे मार्गदर्शन प्राप्‍त हुआ।
भारत के संविधान की मसौदा समिति के भाषा अनुभाग के भी सदस्य थे। अनुभाग के सदस्य के रूप में उन्होंने हिन्दी को संघ की राजभाषा बनाने के लिए बहुत प्रयत्न किया और इसमें उन्हें सफलता भी मिली। उन्होंने भारतीय संविधान सभा के महत्वपूर्ण सदस्य के रूप में भी ख्याति अर्जित की। राज्यसभा के मनोनीत सदस्य के रूप में वे पहली बार अप्रैल १९५४ में राज्य सभा पहुँचे थे। भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय द्वारा हिन्दी का स्तर बढ़ाने के लिए गठित समिति के सभापति के रूप में उन्होंने तक पूरी निष्ठा के साथ दायित्व निभाया।
मोटूरि सत्यनारायण ने भारत में हिन्दी और अंग्रेजी की स्थिति और महत्व के संदर्भ मे कहा था कि सभ्य समाज में जूते और टोपी दोनों की प्रतिष्ठा देखी जाती है। जूतों का दाम साधारणतया टोपी से ज्यादा ही होता है। दैनिक जीवन में जूतों की अनिवार्यता भी सर्वत्र देखी जाती है,पर इससे टोपी की मान-मर्यादा में कोई फर्क नहीं पड़ता है। कोई भूल कर भी सिर पर जूता नहीं पहनता है, जो ऐसा करता है,पागल माना जाता है। हिन्दी हमारी गाँधी टोपी के समान है,तो अँग्रेजी जूता है।
इस तरह मोटूरि सत्यनारायण दक्षिण भारत में हिन्दी प्रचार आन्दोलन के संगठक,गाँधी के जीवन मूल्यों के प्रतीक,हिन्दी को राजभाषा घोषित कराने तथा हिन्दी के राजभाषा के स्वरूप का निर्धारण कराने वाले सदस्यों में दक्षिण के सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्यक्तियों में से एक थे। उन्हें भारत सरकार ने पद्मश्री एवं पद्मभूषण से सम्मानित किया। हम मोटूरि सत्यनारायण की पुण्यतिथि पर उनके द्वारा हिन्दी और देश के हित के लिए किए गए महान कार्यों का स्मरण करते हुए श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं।

(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन,मुंबई)

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