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ओ दिन…

उमेशचन्द यादव
बलिया (उत्तरप्रदेश) 
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‘बड़े दिन की छुट्टी’ स्पर्धा  विशेष………


आज भी ओ(वो)दिन जब याद आता है,तो मन मगन हो जाता है। कड़ाके की ठंड में हम ठिठुर-ठिठुर कर पढ़ने जाते थे। हम सभी को बहुत ही बेसब्री से इंतजार रहता था इस दिन का,क्योंकि इसी दिन से हम आगे की मौज-मस्ती की तैयारी में जुट जाते थे। तरह-तरह के सपने संजोने लगते थे। हम इस बार कुछ अलग ही करेंगे,क्योंकि पिछले वर्ष मैं सोचता ही रह गया था। इस बार मौका हाथ से निकलने नहीं देंगे। अब आप भी उस दिन के बारे में जानने के लिए बेताब हो गए होंगे कि आख़िर वो कौन-सा दिन है जिसके लिए हम इंतजार कर रहे होते हैं। चलिए,बता ही देते हैं ओ दिन है ‘बड़ा दिन’ (२५ दिसम्बर),जिसे `क्रिसमस दिवस` के रूप में मनाया जाता है।
हमारा देश भारत त्योहारों और पर्वों का देश है। यहाँ हर रोज कोई ना कोई त्योहार मनाया जाता है। हमारी संस्कृति बहुत ही सुंदर और रंगीन है। विश्व की सभी संस्कृतियों में सबसे उत्तम और नैतिकता की दृष्टि में श्रेष्ठ है। हमारी भारतीय संस्कृति के बारे में जितना भी कहुँ,कम होगा। इसमें पूरी दुनिया की झलक मिलती है।
कहे `उमेश` देश भारत महान है,
विश्व गुरु हिंद को जानत जहान है।`
आइए हम अपने मुख्य विषय ‘बड़ा दिन’ की ओर बढ़ते हैं। बचपन में हमें इस दिन का बेसब्री से इंतजार रहता था। अच्छा इसे ‘बड़ा दिन’ क्यों कहते हैं ? क्या आपने इस पर कभी विचार किया है ? चलिए, आज हम सब मिलकर इस पर चर्चा करते हैं। मेरे विचार से तो यह लगता है कि इस जाड़े के मौसम में सूर्य देव इसी दिन यानी कि २५ दिसम्बर से ही दक्षिणायन से उत्तरायण होते हैं। इसीलिए इस दिन को ‘बड़ा दिन’ कहा जाता है। यह बात सत्य भी है क्योंकि इसी दिन से,दिन बड़े होने लगते हैं। दिन के बड़े होने की अवधि मिनटों में होती है,इसलिए हम इसका अंदाजा तुरंत नहीं लगा पाते हैं,लेकिन हाँ,अगर हम ध्यान दें तो जरूर समझ में आ जाएगा। कुछ और दिनों के बीतने के बाद अर्थात `मकर संक्रांति` के दिन से हमें इसका अनुभव आसानी से हो जाता है कि दिन बड़ा हो रहा है।
जी हाँ,हमारा मुख्य विषय है ‘बड़ा दिन’,जिसे क्रिसमस दिवस के रूप में मनाया जाता है। माना जाता है कि ईसा मसीह जी का मानव जाति के कल्याण के लिए इसी दिन अवतरण हुआ था। हम मनुष्य बहुत ही भाग्यशाली हैं। इसीलिए,हमें मानव शरीर मिला है। इस जीवन को हमें यूँ ही जाया नहीं करना चाहिए। हमें इसका सदुपयोग करना चाहिए, क्योंकि शरीर नश्वर है,एक दिन इसे मिट्टी में मिल जाना है। ईसा मसीह जी ने यही समझाने के लिए इस धरा पर अवतार लिया और हमें प्यार,दया,परोपकार और अहंकार त्यागकर अहिंसा के मार्ग पर चलना सिखाया। अपने जीवन में उन्होंने अनेक शारीरिक कष्ट सहकर मानसिक रूप से प्रसन्न रहने के अनेक उदाहरण प्रस्तुत किए। खुद सूली पर चढ़ गए,लेकिन मानवता को उन्होंने आँच नहीं आने दी। इस प्रकार उनके जीवन की घटनाओं की चर्चा के बाद हमें कई दिनों तक की छुट्टी मिल जाती थी।
इस छुट्टी का मज़ा ही कुछ और होता था।
हम कई मित्र मिलकर कहीं घूमने की योजना बनाते थे। माता-पिता की इजाजत लेकर हम घूमने भी निकल जाते थे। हाँ,इजाजत लेने में हमें मुश्किल नहीं होती थी। शायद आपको लगा होगा कि इजाजत लेने में परेशानी होती होगी,तो भाई ऐसा कुछ भी नहीं है। हमें बहुत ही आसानी से अनुमति मिल जाती थी। अब आपके मन में प्रश्न उठ रहा होगा न कि वो कैसे ? तो जनाब आप भी अनुशासनप्रिय बनिए,क्योंकि हम बड़े ही अनुशासन प्रिय थे और आज भी हैं। हमारे सभी मित्र भी हमारे जैसे ही थे और होंगे क्यों नहीं! हम हर समय एक-दूसरे की कमियों पर बारीकी से नज़र रखते थे और निश्चित समय सीमा में दूर भी करते थे। एक अच्छी बात यह है कि हम आज धार्मिक स्थलों और सत्संगति में जाना पसंद करते हैं और तब भी। आसानी से अनुमति मिलने का महत्वपूर्ण कारण यह भी था। हमें बचपन से ही संत-महात्माओं और लाचार लोगों की सेवा करने की आदत है।
‘बड़े दिन’ की इस लंबी छुट्टी में हम बहुत मस्ती करते थे। मस्ती के साथ घर के कामों में भी हाथ बंटाते थे। जैसे गन्ने की छिलाई कर फिर गुड़ बनाना,चारा मशीन में हाथ से पुआल की छँटनी करना,ताकि गाय-भैंस का आसानी से पेट भर सके। हाँ, एक बात इस ठंड के मौसम में चारा मशीन चलाते समय खूब पसीना आता था,ठंड फुर्र हो जाती थी। साथ ही साथ हम नये साल की तैयारी भी करते थे। बताने के लिए तो बहुत कुछ है। सामान्य रूप से ये मेरा बचपन था,लेकिन जनाब बचपन तो बचपन ही, वो चाहे मेरा हो या आपका। हाँ,शहर और गाँव के बचपन में अंतर जरुर मिलेगा। मैं तो आपसे यही निवेदन करूंगा कि,बचपन हो या बूढ़ापन एक बार गाँव में कुछ दिन खेत-खलिहान और जानवरों के साथ जरुर बताइएगा। ठंड में अलाव तापने (हाथ सेंकने) का मज़ा जरुर लीजिएगा। हमारा भारत गाँवों का देश है, किसान रीढ़ की हड्डी हैं। अगर आप किसान नहीं बन पाएँ,तो किसान,जवान तथा गुरुदेवों का सम्मान जरुर कीजिएगा। यही जीवन का लक्ष्य और उद्देश्य होना चाहिए। आप कभी भी किसी का दिल मत दुखाइएगा। माता-पिता के चरणों में ही स्वर्ग है,आप उस स्वर्ग को हर समय अपनाइएगा।

परिचय–उमेशचन्द यादव की जन्मतिथि २ अगस्त १९८५ और जन्म स्थान चकरा कोल्हुवाँ(वीरपुरा)जिला बलिया है। उत्तर प्रदेश राज्य के निवासी श्री यादव की शैक्षिक योग्यता एम.ए. एवं बी.एड. है। आपका कार्यक्षेत्र-शिक्षण है। आप कविता,लेख एवं कहानी लेखन करते हैं। लेखन का उद्देश्य-सामाजिक जागरूकता फैलाना,हिंदी भाषा का विकास और प्रचार-प्रसार करना है।

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