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प्याज के आँसू

हेमा श्रीवास्तव ‘हेमाश्री’
प्रयाग(उत्तरप्रदेश)

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अब रोना कैसा है बिना प्याज के!
जब मैं रहती थी तुम्हारी टोकरी में,
मुझे हाथ लगाते ही आँसू आ जाते थे
अब क्यों मेरे न होने पर भी रो रहे हो ?
कभी आधा खाया कभी आधा फेंक देते थे
बहुत सस्ता समझ लिया था मुझे,
आवश्यकता तुम्हें कल भी थी,और आज भी है
किंतु जब मैं आसानी से थी उपलब्ध,
तुम मेरी कीमत नहीं समझते थे तब!
मुझे यूँ ही लाकर जमीन पर फेंक दिया करते थे,
मैं सड़-गल जाऊंगी इसकी फिक्र नहीं करते थे।
मेरी गंध से कभी तुम्हें होती थी परेशानी,
कुछ तो मुझे भोजन में लेना भी तुच्छ समझते थे
आज वो भी कीमत बढ़ी देख मुँ फुला रहे हैं,
किसी-किसी परिवार में तो मेरे लिए रोक लगा दी गई।
अरे भाई,हम लहसुन-प्याज नहीं खाते हैं,
आज वहां भी मेरी कीमत की चर्चा हो रही है,
परिवार हो या शादी हर जगह मेरी मांग है,
मटर-पनीर हो या कटहल बिन प्याज सब बेकार है।
सात्विक भोजन है अच्छा फिर भी सब परेशान हैं,
हो रही बिचौलियों की चाँदी,किसानों का वही हाल है
मंडी तक मेरी कीमत अब भी नही खास है,
बस तुम्हारी रसोई तक आने में महंगाई की मार है।
स्टॉक बहुत है मेरा सरकारी खजाने में,
फिर भी बाजार में खरीददार हुआ लाचार है
अब तक सबने देखें कहां प्याज के आँसू!
असली आँसू प्याज के,निकल रहे आज हैं॥

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