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दर्द को और दर्द दो…

डाॅ. मधुकर राव लारोकर ‘मधुर’ 
नागपुर(महाराष्ट्र)

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दो मित्र रामलाल और श्यामलाल,शाम को पार्क में हर दिन की तरह मिले। श्यामलाल ने मित्र को देखकर कहा-“यार रामलाल,क्या हुआ ? तुम लंगड़ी घोड़ी की तरह क्यों चल रहे हो। माना कि रिटायर हो गए हो तो,क्या तुम कमजोर भी हो गये हो। रिटायर होने के बाद तो,व्यक्ति ज्यादा स्वस्थ हो जाता है,तनाव रहित।”
रामलाल ने कहा-“अरे यार रिटायर होने वाला व्यक्ति क्या कमजोर हो जाता है…? बात यह है कि मेरे पैरों में कल शाम से दर्द हो रहा है। पत्नी ने तो मालिश कर दी है,किन्तु दर्द तो सुरसा के मुँह की तरह बढ़ता ही जा रहा है।”
श्यामलाल-“यार,भाभी के हाथों में क्या मालिश करने की ताकत भी शेष ना रही ?लगता है भाभी ने बादाम खाना बंद कर दिया है और वे बूढ़ी हो गयी हैं ?”
रामलाल ने कहा-“हाँ यार,बुढ़ापा तो आ ही गया है समझो,परंतु बुढ़ापा तो अकेले ही नहीं आता,अपने साथ रोग,कमजोरी और पीड़ा का सैलाब लेकर आता है। बुढ़ापा दर्द सहने और दर्द पी जाने का,दूसरा नाम जो है।”
श्यामलाल-“ठीक कहते हो भाई। कुछ लोग अपना दर्द इसलिए छिपा जाते हैं कि, दर्द बताने से लोग मजाक उड़ाते हैं। जैसे किसी का दर्द,दूसरे को बताने की लोगों ने दुकान खोल ली हो और दर्द बेचने का व्यापार कर रहे हों। जैसे बहू-बेटे,माँ का ध्यान नहीं रखते। माँ दर्द से कराहती रहती है। अब तुम ही बताओ,इस उम्र में कोई माँ अपने बहू -बेटे को कैसे जग हँसाई का पात्र बना सकती है। यह बात वैसे भी सच्चाई से परे है। जैसे कोई नेता कृत्रिम आँसू बहा कर,छद्म दु:ख बताकर,जनता को मूर्ख बनाकर,मत ले जाता है और चुनाव जीत जाता है।”
रामलाल ने कहा-“भैया,इसलिए अच्छा है, हमें दर्द को बर्दाश्त करना आना चाहिए। बेहतर है हम अपने दर्द को और भी दर्द दें, ताकि दर्द हमें कम महसूस हो।”
श्यामलाल-“सही बोलते हो मित्र,अब तो दर्द पीकर ही उससे औषधि का काम लिया जाना चाहिए। जैसे महादेव ने गरल पीकर, संसार का कल्याण किया था। हमें भी दर्द को दर्द देकर जीने की आदत डालनी चाहिए।”

परिचय-डाॅ. मधुकर राव लारोकर का साहित्यिक उपनाम-मधुर है। जन्म तारीख़ १२ जुलाई १९५४ एवं स्थान-दुर्ग (छत्तीसगढ़) है। आपका स्थायी व वर्तमान निवास नागपुर (महाराष्ट्र)है। हिन्दी,अंग्रेजी,मराठी सहित उर्दू भाषा का ज्ञान रखने वाले डाॅ. लारोकर का कार्यक्षेत्र बैंक(वरिष्ठ प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त)रहा है। सामाजिक गतिविधि में आप लेखक और पत्रकार संगठन दिल्ली की बेंगलोर इकाई में उपाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-पद्य है। प्रकाशन के तहत आपके खाते में ‘पसीने की महक’ (काव्य संग्रह -१९९८) सहित ‘भारत के कलमकार’ (साझा काव्य संग्रह) एवं ‘काव्य चेतना’ (साझा काव्य संग्रह) है। विविध पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी को स्थान मिला है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में मुंबई से लिटरेरी कर्नल(२०१९) है। ब्लॉग पर भी सक्रियता दिखाने वाले ‘मधुर’ की विशेष उपलब्धि-१९७५ में माउंट एवरेस्ट पर आरोहण(मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व) है। लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी की साहित्य सेवा है। पसंदीदा लेखक-मुंशी प्रेमचंद है। इनके लिए प्रेरणापुंज-विदर्भ हिन्दी साहित्य सम्मेलन(नागपुर)और साहित्य संगम, (बेंगलोर)है। एम.ए. (हिन्दी साहित्य), बी. एड.,आयुर्वेद रत्न और एल.एल.बी. शिक्षित डाॅ. मधुकर राव की विशेषज्ञता-हिन्दी निबंध की है। अखिल भारतीय स्तर पर अनेक पुरस्कार। देश और हिन्दी भाषा के प्रति विचार-
“हिन्दी है काश्मीर से कन्याकुमारी,
तक कामकाज की भाषा।
धड़कन है भारतीयों की हिन्दी,
कब बनेगी संविधान की राष्ट्रभाषा॥”

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