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प्यार में था मैं

कुँवर बेचैन सदाबहार
प्रतापगढ़ (राजस्थान)
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काव्य संग्रह हम और तुम से….


प्यार में था मैं,
तो मैंने बेच कर नींद
कुछ रातें कमानी चाही।
सोचा…
खर्च करूँगा
तुम्हारे साथ,
उन रातों को।
पर तुम्हें डर था,
उन लोगों का।
जो कहते हैं-
‘प्यार और रात
हवस से ज्यादा
कुछ नहीं।’

प्यार में था मैं,
तो मैंने बेच कर आँसू
कुछ हँसी कमानी चाही।
सोचा,…
यूँ ही हँसते हुए,
देखता रहूँगा तुम्हें एकटक
और फिर एक रोज यूँ ही,
तुम्हें कागज पे उतार लूँगा।
और ऐसे ही हँसते हुए
ता-उम्र देखता रहूँगा तुम्हें।
पर तुम्हें डर था,
उस कहावत का-
‘जो जितना हँसता है,
वो उतना रोता भी है।

प्यार में था मैं,
तो मैंने खो कर खुद को
तुम्हें कमाना चाहा।
सोचा…
जो तुम मिल जाओ,
तो सब-कुछ पा लूँगा मैं।
शायद खुद को भी,
जिसे खो दिया था,
तुम्हें पाने के इस सफर में।
लेकिन तुम्हें डर था…
‘जो खो सकता है खुद को,
वो किसी को कैसे सम्भालेगा!

सब-कुछ खोकर भी,
मैं पा न सका प्यार…
मैं ढूंढता रहा प्यार।
ये कैसे प्यार में था मैं,
जिसमें प्यार ही नहीं था।
क्या वाकई,
प्यार में था मैं..???

परिचय-कुँवर प्रताप सिंह का साहित्यिक उपनाम `कुंवर बेचैन` हैL आपकी जन्म तारीख २९ जून १९८६ तथा जन्म स्थान-मंदसौर हैL नीमच रोड (प्रतापगढ़, राजस्थान) में स्थाई रूप से बसे हुए श्री सिंह को हिन्दी, उर्दू एवं अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। राजस्थान वासी कुँवर प्रताप ने एम.ए.(हिन्दी)एवं बी.एड. की शिक्षा हासिल की है। निजी विद्यालय में अध्यापन का कार्यक्षेत्र अपनाए हुए श्री सिंह सामाजिक गतिविधि में ‘बेटी पढ़ाओ और आगे बढ़ाओ’ के साथ ‘बेटे को भी संस्कारी बनाओ और देश बचाओ’ मुहिम पर कार्यरत हैं। इनकी लेखन विधा-शायरी,ग़ज़ल,कविता और कहानी इत्यादि है। स्थानीय और प्रदेश स्तर की साप्ताहिक पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में स्थानीय साहित्य परिषद एवं जिलाधीश द्वारा सम्मानित हुए हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-शब्दों से लोगों को वो दिखाने का प्रयास,जो सामान्य आँखों से देख नहीं पाते हैं। इनके पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद,हरिशकंर परसाई हैं,तो प्रेरणापुंज-जिनसे जो कुछ भी सीखा है वो सब प्रेरणीय हैं। विशेषज्ञता-शब्द बाण हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिंदी केवल भाषा ही नहीं,अपितु हमारे राष्ट्र का गौरव है। हमारी संस्कृति व सभ्यताएं भी हिंदी में परिभाषित है। इसे जागृत और विस्तारित करना हम सबका कर्त्तव्य है। हिंदी का प्रयोग हमारे लिए गौरव का विषय है,जो व्यक्ति अपने दैनिक आचार-व्यवहार में हिंदी का प्रयोग करते हैं,वह निश्चित रूप से विश्व पटल पर हिन्दी का परचम लहरा रहे हैं।”

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