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मंदिर से लेकर युद्ध तक रानी का शौर्य आज भी जीवन्त

गुलाबचंद एन.पटेल
गांधीनगर(गुजरात)
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इमेजीन ग्रुप ऑफ कंपनीज़(झाँसी) की ओर से `राष्ट्रीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन` में उपस्थित रहने का निमंत्रण प्राप्त हुआ। २२ फरवरी २०२० को होटल एमबीन्स में सम्मेलन था,जिसमें देशभर से साहित्यकार उपस्थित थे। उस सम्मेलन में ‘मीडिया का हिन्दी साहित्य पर प्रभाव` विषय पर आलेख और `तुम बिन सूनी गलियां` कविता प्रस्तुत करने का अवसर मिला। यहाँ संस्था ने हमें सम्मान प्रदान किया। फिर हम झाँसी में राजकीय संग्रह देखने गए। इस संग्रहालय में रानी लक्ष्मीबाई के द्वार `महारानी लक्ष्मीबाई वीथिका` में हमें तस्वीर खींचने का अवसर मिला। संग्रहालय में झाँसी के आजादी के लिए हुए अंग्रेज़ के साथ युद्ध की रानी लक्ष्मीबाई की तस्वीर देखी,बहुत वीरतापूर्ण मुद्रा में थी। बुंदेली कलम से झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के लिए लिखी गई कुछ बातें पढ़ने को मिली। रानी लक्ष्मीबाई वीथिका में मंगल पांडे की फांसी का विवरण और तस्वीर देखी। रानी लक्ष्मीबाई द्वारा लिखी गई कविता सुंदर फ्रेम में दीवार पर लगाई गई थी। इस संग्रहालय में बहुत सारी ऐतिहासिक रंगीन सुंदर तस्वीर रखी गई है। हमें सभी तस्वीर नजदीक से देखने और खींचने का समय भी मिला। १८५८ में अंग्रेजों के सामने युद्ध हुआ,रानी अपने सैनिकों के साथ भयंकर युद्ध करती हुई काल्पी और काल्पी से ग्वालियर पहुंची। गंभीर रूप से घायल रानी १८ जून १८५८ को शहीद हो गई।

यहाँ शिव मंदिर,काल कोठरी,आमोद बाग आदि के अवशेष देखने को मिले। यहाँ कड़क बिजली नामक तोप स्वतन्त्रता संग्राम में प्रयुक्त थी,वो दर्शनीय है। सुभद्रा चौहान कवियित्री द्वारा रानी के लिए लिखी गई कविता पत्थर के शिलालेख के रूप में देखने को मिली। कविता की पंक्तियां इस तरह थी,-’सिहासन हिल उठे,राजवंशों ने भुकुटी तानी थी,बूढ़े भारत में भी आई नई जवानी थीl` इस दुर्ग में दीवार में खंडेराव,दतिया, उन्नाव,ओरछा,बड़गांव आदि १० द्वार थे। इसके अतिरिक्त ४ खिड़कियां थी। झाँसी किले में भी सुंदर तस्वीर खींचने का आनन्द मिला।

हम दूसरे दिन झाँसी के साहित्यिक मित्र साकेत सुमन के साथ रिक्शे से ओरछा जाने के लिए निकले। रास्ते में शिरोमणि अमर शहीद चन्द्रशेखर की प्रतिमा देख रुक गए। आजाद चन्द्रशेखर स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान १८५८ में डेढ़ साल यहाँ वेश बदलकर सन्यासी के रूप में रहे थे। उन्होंने यहाँ कुइया खोदी थी,वो छोटे कुएँ के रूप में दिखाई देती है। यहाँ अभी प्रतिमा का काम चल रहा है।हमने यहाँ भी तस्वीर खिंचवाई। साकेत सुमन ने हमें बहुत सारी जानकारी दी। इस स्थान को `अमर शहीद चन्द्र शेखर आजाद अज्ञातवास स्थल` के नाम से जाना जाता है।

हम यहाँ से ओरछा जाने को निकले। ओरछा में राम जी का बहुत पौराणिक मंदिर है,तो यहाँ दर्शन किए। मंदिर राजा ने बनाया था राम के लिए,रानी ने राम की मूर्ति इस जगह पर नीचे रख दी,तो राम भगवान यहीं पर रुक गएl आज भी भगवान राम पुराने मंदिर में विराजमान है। पास में बेतवा नदी है,वहाँ गए तो किनारे पर राजा का महल पाया। उसका नवीनीकरण का काम चल रहा था। नदी में पानी बहुत गहरा था,सुंदर वातावरण था। दर्शन करके बाहर निकले तो यहाँ पास में हरदोल की समाधि देखी। राजा और रानी में द्वेष बनाने हेतु किसी ने राजा के भाई याने कि,रानी से प्यार से जुड़े हुए हैं,ऐसी गलत बात फैला दी,तो हरदोल रानी के देवर ने अपनी निर्दोषता दिखाने और रानी की आबरू बचाने के लिए अपनी जान दे दी थी। हरदोल बेकसूर था। ओरछा मध्यप्रदेश में तथा झाँसी से १२ किमी की दूरी पर है। ओरछा से हम वापस आकर हमारे दूसरे मित्र निहालचंद जी की कार से दतिया गए। यह झाँसी से १०० किमी की दूरी पर है। दतिया में पौराणिक पीतांबरा बगलामुखी माताजी का सुंदर मंदिर है,यहाँ दर्शन किए। इस तरह ऐतिहासिक स्थान झाँसी देखने का अवसर हमें सम्मेलन से प्राप्त हुआ,तो मित्रों ने भी खूब सहयोग किया।

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