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सम्मान चाहता है नारी अस्तित्व

मंजू भारद्वाज
हैदराबाद(तेलंगाना)
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यह सर्वविदित है कि आज २१वीं सदी में नारी पुरुष के कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है,पर यह कहना गलत नहीं होगा कि नारी ने इस मुकाम को पाने के लिए युगों-युगों से युद्ध किया है । आज भी उसका युद्ध जारी है। कहते हैं भारतीय सभ्यता ने हमेशा नारी को पूज्य माना है। देवी की तरह पूजा है,पर यह सब तो चंद पंक्तियों में वेदों की शोभा बढ़ा रहे हैं। भारत का इतिहास उलट कर दीजिए,औरतों पर हुई प्रताड़नाएं,उनके ऊपर किए अत्याचार की कहानी से इतिहास के पन्ने भरे पड़े हैं। बात यदि त्रेता युग की करें,तो भी माता सीता को अग्नि परीक्षा से गुजरना पड़ा। क्यों नहीं किसी ने भगवान राम की पवित्रता पर सवाल उठाया ? उर्मिला ने लक्ष्मण को कटघरे में क्यों नहीं खड़ा किया ? हमेशा शक के दायरे में नारी ही क्यों होती है। बात द्वापर युग की करें तो वहां भी नारी का भरी सभा में अपमान किया गया। हमेशा नारियों को ही दीन-हीन अबला मानकर संस्कारों की दुहाई देकर बेड़ियों से बांधा गया। नारी जो देवी तुल्य है,जननी है,बेटी है, बहन है,हर घर की शोभा है।
आज पुरुषों ने नारी की सुंदरता का पैमाना बना रखा है कि झुकी हुई पलकें,खामोश लब,झुकी हुई गर्दन,शर्मो-हया की तस्वीर बनी एक बांदी की तरह हाथ बांधे पति के पास खड़ी रहे,तब वह आदर्श नारी मानी जाती है। दूसरी तरफ लहराते केश,चंचल चितवन,आँखों में शोखियां,लबों पर लाली,प्रेयसी की ऐसी तस्वीर सामने रखी जाती है। हैरान हूँ उनकी दोहरी नीति पर। पुरुष वर्ग ने नारी को कितने भागों में बांटा है और क्यों ? क्या पत्नी में प्रेयसी नहीं दिखती,या प्रेयसी को पत्नी का दर्जा नहीं दिया जा सकता! ये सब पुरुषों द्वारा रची गजब की माया नगरी है। जिसने पुरुष को जन्म दिया और अपना वर्चस्व उसके अधीन कर दिया,वही पुरुष उसे हीन भावना से ग्रसित करने का एक मौका नही छोड़ता है-
‘ढोल,गवार,शुद्र,पशु,नारी,
यह सब तारण के अधिकारी।’
यहां तो नारी की तुलना ढोल,गँवार,शुद्र,पशु से की गई है। अहमवादी पुरुषों की सोच ने समाज में नारी की छवि को इस कदर दूषित किया है कि,मानो वह समाज की एक बेकार-सी वस्तु है,जिसका कोई ठिकाना नहीं है। वह गेंद की तरह इधर-से-उधर फेंकी जा रही है। पिता कहे-पराई अमानत है, ससुराल कहे-पराए घर से आई है। वाह रे पुरुष, प्रधान समाज जिस नारी ने आपको नौ महीने गर्भ में रखा जन्म दिया,आपको घर दिया,चलना सिखाया,बोलना सिखाया,आपने उसके ही अस्तित्व को तार-तार कर दिया। जिसे अपना प्रथम गुरु मान कर आपको आदर करना चाहिए,उसे ही आपने अपनी दकियानूसी सोच में कैद कर दिया। नारी को,उसके अस्तित्व को,उसकी ममता को,उसके प्यार को,उसकी सेवा को,उसका फर्ज समझा,पर आपका फर्ज क्या है,क्या इस पर कभी आपने ध्यान दिया!
यदि नारी परपुरुष गमन करती है,तो उसे कुल्टा, वेश्या,व्यभिचारणी आदि नामों से विभूषित किया जाता है,पर पुरुष यदि परस्त्री गमन करे तो उसे बड़ा मर्द समझा जाता है। कौन-सा वेद,कौन-सा पुराण,कौन-सी संहिता,इस बात का समर्थन करती है। यह नियम अहंकारी पुरुष समाज ने अपनी पिपासा पूरी करने के लिए बनाया है।
आदिकाल से राजा महाराजा चार-चार शादी कर सकता थे,पर रानियां नहीं कर सकती थीं। वह महीनों अपने पति का मुँह देखने को तरसती थी। आज कवि दुष्यंत की यह पंक्ति बहुत याद आ रही है-
‘हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए।
अब हिमालय से गंगा निकलनी चाहिए।’
नारी ने वर्षों से आघात सहा है,तिरस्कार सहा है, आज उसने खुद को साबित करने की कोशिश की कि वह भी पुरुषों की तरह इंसान है,सम्मान की पात्र है,परिवार का संरक्षण करती है। हर क्षेत्र में उसने अपनी पहचान बनाई है। आज ऐसे समाज की रचना होनी चाहिए,जहां उनके बलिदान-संघर्ष को सम्मानित किया जाए,जो पुरुष और स्त्री को बराबर सम्मान दें। दोनों किसी तरह से भी किसी से कम नहीं हैं। भगवान ने भी दोनों को समान शक्ति दी है, दोनों एक-दूसरे के संग बिना बच्चे के जनन में भी असमर्थ हैं,फिर श्रेष्ठता का ये कैसा अहंकार पाल रखा है पुरुषों ने! जिंदगी की गाड़ी दो पहियों पर चलती है। एक पहिया छोटा और एक बड़ा हो तो गाड़ी नहीं चल सकती,इसलिए हमें एक उन्नत, विचारशील समाज की स्थापना करनी चाहिए-जहां समानता हो,जहां नारी को भी इज्जत-सम्मान मिले, ताकि वह भी सर उठा कर सम्मान की जिंदगी जी सके। उसके अंदर समाज का डर नहीं,बल्कि समाज के प्रति प्रेम होना चाहिए। एक भरोसा एक विश्वास होना चाहिए। तभी हम एक सक्षम, शाक्तिशाली समाज की स्थापना कर सकते हैं और हम एक नए भारत का निर्माण कर सकते है।

परिचय-मंजू भारद्वाज की जन्म तारीख १७ दिसम्बर १९६५ व स्थान बिहार है। वर्तमान में आपका बसेरा जिला हैदराबाद(तेलंगाना)में है। हिंदी सहित बंगला,इंग्लिश व भोजपुरी भाषा जानने वाली मंजू भारद्वाज ने स्नातक की शिक्षा प्राप्त की है। कार्यक्षेत्र में आप नृत्य कला केन्द्र की संस्थापक हैं,जबकि सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत कल्याण आश्रम में सेवा देने सहित गरीब बच्चों को शिक्षित करने,सामाजिक कुरीतियों को नृत्य नाटिका के माध्यम से पेश कर जागृति फैलाई है। इनकी लेखन विधा-कविता,लेख,ग़ज़ल,नाटक एवं कहानियां है। प्रकाशन के क्रम में ‘चक्रव्यूह रिश्तों का'(उपन्यास), अनन्या,भारत भूमि(काव्य संग्रह)व ‘जिंदगी से एक मुलाकात'(कहानी संग्रह) आपके खाते में दर्ज है। कुछ पुस्तक प्रकाशन प्रक्रिया में है। कई लेख-कविताएं बहुत से समाचार पत्र-पत्रिका में प्रकाशित होते रहे हैं। विभिन्न मंचों एवं साहित्यक समूहों से जुड़ी श्रीमती भारद्वाज की रचनाएँ ऑनलाइन भी प्रकाशित होती रहती हैं। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार देखें तो आपको श्रेष्ठ वक्ता(जमशेदपुर) शील्ड, तुलसीदास जयंती भाषण प्रतियोगिता में प्रथम स्थान,श्रेष्ठ अभिनेत्री,श्रेष्ठ लेखक,कविता स्पर्धा में तीसरा स्थान,नृत्य प्रतियोगिता में प्रथम,जमशेदपुर कहानी प्रतियोगिता में प्रथम सहित विविध विषयों पर भाषण प्रतियोगिता में २० बार प्रथम पुरस्कार का सम्मान मिला है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-देश-समाज में फैली कुरीतियों को लेखनी के माध्यम से समाज के सामने प्रस्तुत करके दूर करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-दुष्यंत,महादेवी वर्मा, लक्ष्मीनिधि,प्रेमचंद हैं,तो प्रेरणापुंज-पापा लक्ष्मी निधि हैं। आपकी विशेषज्ञता-कला के क्षेत्र में महारत एवं प्रेरणादायक वक्ता होना है। इनके अनुसार जीवन लक्ष्य-साहित्यिक जगत में अपनी पहचान बनाना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-‘हिंदी भाषा साँसों की तरह हममें समाई है। उसके बिना हमारा कोई अस्तित्व ही नहीं है। हमारी आन बान शान हिंदी है।’

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