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वो कामवाली

डाॅ. मधुकर राव लारोकर ‘मधुर’ 
नागपुर(महाराष्ट्र)

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वो १५-१६ साल की साधारण-सी दिखने वाली लड़की थी।पहनावे और व्यवहार से गरीब और असहाय दिख रही थी। दवाई की दुकान में आकर चुपके से खड़ी होकर,अपनी बारी का इंतजार करने लगी। दवाई दुकान वाली मैडम को खाली देखकर बोली-“मेरी माँ दो दिनों से बुखार में तप रही है मैडम। उसके लिए गोलियाँ दीजिए।”
मैडम-“अरे डॉक्टर को क्यों नहीं दिखाया ? ऐसे ही दवाईयां नहीं दी जा सकती हैं।”
लड़की ने कहा-“मैडम हम लोग गरीब हैं। डॉक्टर के पास जाने के पैसे नहीं है। मेरी माँ जहाँ काम करती है,वहां की मालकिन ने कहा है कि,कल काम पर नहीं आई,तो हमारे घर कभी मत आना। मैडम मेरा छोटा भाई है। मैं भी घरों में काम करती हूँ और बाप मर चुका है,दारू पी पीकर। हम पैसे नहीं कमायेंगे तो,छोटे भाई को कैसे पढ़ाएंगे ? आप भी तो डॉक्टर हो। गोलियाँ दे दीजिए,कल मैं पैसे दे जाऊंगी।”
मैडम को दया आ गयी। बोली-“कहाँ रहती हो ?”
लड़की ने कहा-“मैडम जी,सामने झोपड़पट्टी में रहती हूँ।”
दवाई दुकान वाली मैडम ने अपने नौकर से कहा-“सुनील, दस मिनट में आ रही हूँ। ग्राहक आये तो रोककर रखना।”
मैडम ने झोपड़ी में बड़ी मुश्किल से कदम रखा। गंदगी और बदबू का चारों ओर साम्राज्य था। उन्होंने नाक में रूमाल रख लिया,उन्हें गरीब की मदद जो करनी थी। अपने अनुभव से मरीज को देखा। तुरन्त अपनी दवाई दुकान पर उस लड़की को लेकर आयी। उसकी माँ के लिए उपयुक्त दवा दी तथा किस तरह देना है,लड़की को विस्तार से समझाया।
दूसरे दिन सुबह नौ बजे दुकान खुलवाते ही,वही लड़की, एक छोटे लड़के को लेकर आयी। कहा-“मैडम जी,आप बहुत अच्छी हैं। आपकी दवा से माँ सुधर गयी और सुबह काम पर भी चली गयी है। यह मेरा भाई है,इसे पढ़ाना है। मैं भी अपने काम पर जा रही हूँ। आपके पैसे देने थे ना,कितने हुए ?”
मैडम ने कहा-“बिटिया तुम अपने भाई को,अच्छा पढ़ाओ और डॉक्टर बनाना। पैसे रहने दो। अभी तो तुम्हें पैसों की जरूरत है। मेरी किसी भी तरह की जरूरत पड़ेगी तो मुझे जरूर बताना। और हाँ,हिम्मत मत हारना,तुम लोगों के भी अच्छे दिन आएंगे।”

परिचय-डाॅ. मधुकर राव लारोकर का साहित्यिक उपनाम-मधुर है। जन्म तारीख़ १२ जुलाई १९५४ एवं स्थान-दुर्ग (छत्तीसगढ़) है। आपका स्थायी व वर्तमान निवास नागपुर (महाराष्ट्र)है। हिन्दी,अंग्रेजी,मराठी सहित उर्दू भाषा का ज्ञान रखने वाले डाॅ. लारोकर का कार्यक्षेत्र बैंक(वरिष्ठ प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त)रहा है। सामाजिक गतिविधि में आप लेखक और पत्रकार संगठन दिल्ली की बेंगलोर इकाई में उपाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-पद्य है। प्रकाशन के तहत आपके खाते में ‘पसीने की महक’ (काव्य संग्रह -१९९८) सहित ‘भारत के कलमकार’ (साझा काव्य संग्रह) एवं ‘काव्य चेतना’ (साझा काव्य संग्रह) है। विविध पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी को स्थान मिला है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में मुंबई से लिटरेरी कर्नल(२०१९) है। ब्लॉग पर भी सक्रियता दिखाने वाले ‘मधुर’ की विशेष उपलब्धि-१९७५ में माउंट एवरेस्ट पर आरोहण(मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व) है। लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी की साहित्य सेवा है। पसंदीदा लेखक-मुंशी प्रेमचंद है। इनके लिए प्रेरणापुंज-विदर्भ हिन्दी साहित्य सम्मेलन(नागपुर)और साहित्य संगम, (बेंगलोर)है। एम.ए. (हिन्दी साहित्य), बी. एड.,आयुर्वेद रत्न और एल.एल.बी. शिक्षित डाॅ. मधुकर राव की विशेषज्ञता-हिन्दी निबंध की है। अखिल भारतीय स्तर पर अनेक पुरस्कार। देश और हिन्दी भाषा के प्रति विचार-
“हिन्दी है काश्मीर से कन्याकुमारी,
तक कामकाज की भाषा।
धड़कन है भारतीयों की हिन्दी,
कब बनेगी संविधान की राष्ट्रभाषा॥”

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