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लघुकथाएं व छोटी कहानियाँ अत्यंत प्रासंगिक-प्रो.शरद खरे

मंडला (मप्र)।

लघुकथा को लघु कहानी या छोटी कहानी का संबोधन देकर,पाठकों के समक्ष परोसना,लघुकथा के प्रति हमारी दयनीय स्थिति को दर्शाती है। निश्चित तौर पर लघुकथा शास्त्रियों, समीक्षकों ने इस बात को स्वीकार किया है कि लघुकथा,लघु कहानी का छोटा रूप यानि लघु रूप नहीं,यानी लघु कहानी नहीं,बल्कि एक स्वतंत्र विधा है। या फिर गद्य की स्वतंत्र विधा है लघुकथा।
भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में हेलो फेसबुक लघुकथा सम्मेलन में
विशिष्ट अतिथि और वरिष्ठ लेखक मंडला(मप्र) प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे ने यह बात कही। संयोजक सिद्धेश्वर ने संचालन करते हुए कहा कि दुर्भाग्य की बात यह है कि लघुकथा पर इतनी बहस,समीक्षा, आलोचना होने के बाद भी हमारे संपादक, प्रकाशक,स्वयं कथाकार यह निर्धारित नहीं कर पा रहे हैं कि,लघुकथा और लघु कहानी पर्यायवाची है या पृथक ?
सम्मेलन के मुख्य अतिथि लब्धप्रतिष्ठित कथाकार श्याम सहाय ने कहा कि,लघुकथा चिंतन और अनुभूति का त्वरित मिश्रण है,जो कम से कम शब्दों में अभिव्यक्त होता है।
लघुकथा सम्मेलन में पढ़ी गई लघुकथाओं पर समीक्षात्मक टिप्पणी अध्यक्षीय उद्बोधन में वरिष्ठ लघुकथाकार डॉ. रामकुमार घोटड़ ( राजगढ़ ) ने
प्रस्तुत की। आपने कहा कि,मेरी समझ से साढ़े सात सौ शब्दों तक लघुकथा के दायरे में रखी जानी चाहिए।
सम्मेलन में ऋचा वर्मा,डॉ. योगेंद्र नाथ शुक्ल एवं कमल चोपड़ा आदि की ऑनलाइन लघुकथा पढ़ी गई। सम्मेलन में सैकड़ों दर्शकों की भागीदारी रही।

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