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सामाजिक सम्बन्ध ही,एक बनाते देश

डॉ.एन.के. सेठी
बांदीकुई (राजस्थान)

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सामाजिक सम्बन्ध और दूरी स्पर्धा विशेष………..

तन से दूरी हो भले,मन से दूर न होय।
तन मन दोनों स्वस्थ हों,सुखी निरोगी होय॥

मतभेदों को भूलकर,सभी एकजुट होय।
दुश्मन से मिल के लड़ें,आपा कभी न खोय॥

नहीं किसी को छोड़ता,होय खास या आम।
‘कोराना’ का वायरस,मचा रहा कुहराम॥

सुरसा के मुख सा हुआ,कोरोना विकराल।
बने सूक्ष्म हनुमान सा,रोके इसकी चाल॥

करो ईश आराधना,बीत जाय यह काल।
रखो धैर्य घर में रहो,जीतेंगे हर हाल॥

समझो अब भी वक्त है,बनो नहीं नादान।
करो नियम की पालना,हारेगा शैतान॥

टूटा कहर गरीब पर,कोई नहीं उपाय।
सबका यह कर्त्तव्य है,मिलकर करें सहाय॥

रामचरित से सीख लें,संबंधों का मान।
करें राष्ट्र हित कार्य हम,भारत की संतान॥

जलकर दीपक ही स्वयं,जग में करे उजास।
आओ दीप जलायं हम,मन में हो उल्लास॥

सबने दीप जलाय के,दिया एक संदेश।
सामाजिक सम्बन्ध ही,एक बनाते देश॥

संकट के इस दौर में,रखो धैर्य विश्वास।
इसकी जद में हैं सभी,नहीं है कोई खास॥

आत्म नियन्त्रित हो सभी,करें घरों में वास।
सम्बन्धों में दूरियाँ,कभी न आये पास॥

आत्म मंथन करें सभी,दूर करें कुविचार।
पर दूषण देखें नहीं,खुद में करे सुधार॥

खुद की भी चिंता नही,औरों की गलफांस।
मानवता के शत्रु हैं,फैलाए जग त्रास॥

शासन के आदेश का,पालन करे अवाम।
सबके हित की बात है,सब पाए आराम॥

परिचय-पेशे से अर्द्ध सरकारी महाविद्यालय में प्राचार्य (बांदीकुई,दौसा)डॉ.एन.के. सेठी का बांदीकुई में ही स्थाई निवास है। १९७३ में १५ जुलाई को बांदीकुई (राजस्थान) में जन्मे डॉ.सेठी की शैक्षिक योग्यता एम.ए.(संस्कृत,हिंदी),एम.फिल.,पीएच-डी., साहित्याचार्य,शिक्षा शास्त्री और बीजेएमसी है। शोध निदेशक डॉ.सेठी लगभग ५० राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में विभिन्न विषयों पर शोध-पत्र वाचन कर चुके हैं,तो कई शोध पत्रों का अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशन हुआ है। पाठ्यक्रमों पर आधारित लगभग १५ व्याख्यात्मक पुस्तक प्रकाशित हैं। कविताएं विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। आपका साहित्यिक उपनाम ‘नवनीत’ है। हिंदी और संस्कृत भाषा का ज्ञान रखने वाले राजस्थानवासी डॉ. सेठी सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत कई सामाजिक संगठनों से जुड़ाव रखे हुए हैं। इनकी लेखन विधा-कविता,गीत तथा आलेख है। आपकी विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में शोध-पत्र का वाचन है। लेखनी का उद्देश्य-स्वान्तः सुखाय है। मुंशी प्रेमचंद पसंदीदा हिन्दी लेखक हैं तो प्रेरणा पुंज-स्वामी विवेकानंद जी हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-
‘गर्व हमें है अपने ऊपर,
हम हिन्द के वासी हैं।
जाति धर्म चाहे कोई हो 
हम सब हिंदी भाषी हैं॥’

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