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खास जरूरत

शशि दीपक कपूर
मुंबई (महाराष्ट्र)
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जिंदगी की बेहतरीन और खास जरुरत है-
‘राजनीति’
राफेल!,
बोफोर्स!
दलित!,
आरक्षण !
सभी हैं-
‘राजनीति में चलते सिक्के।’

पिछड़ों को अगाड़ी,
अगाड़ी की पिछड़ी
सरकारों की समाज बनाने में होड़ लगी है।

ढेरों योजनाएं,
ढेरों लक्ष्य
क्रियान्वयन की क्रियाओं से गुजर जूझ रहे हैं।

चिंता…!
हमारी बस इतनी सिमटी हुई है-
‘मत-प्राप्ति के साधन कैसे बढ़ाएं जाएं ?’

विचित्र बात है!
नैतिक मूल्यों के सवालों पर असुरक्षित होने लगे हैं।

भुला दीजिए…
लाखों के टेलीफोन व बिजली बिल,
जो लोग नहीं भरते,
भुला दीजिए…
सरकारी आवास,
जो लोग खाली नहीं करते,
भुला दीजिए…
बिना डिग्री वाली फर्जी डिस्पेंसरियां,
भुला दीजिए…
स्त्री अस्तित्व लूटना और निर्वस्त्र करना,
भुला दीजिए…
पहले गौ हत्या करना फिर ईमान दिखाना,
भुला दीजिए…
सुसंस्कृत जाति की प्रांत में बेखौफ हत्या,
भुला दीजिए…
बच्चों को उच्चतम शिक्षा के लिए दर-बदर घूमना,
भुला दीजिए….
अधर्मी संतों का धर्म,
फैलता अविश्वसनीय फर्जीवाड़ा
भुला दीजिए…
वो सब जो आपसे असहनीय है,
या जो अभिव्यक्त करना है।

देखिए,
और बहुत से तथ्य हैं समाज में फैले दीमक से!!

भुला दीजिए…बस,भुला दीजिए…
वह सब-कुछ जो आपके लिए अवांछित है,
सिर्फ…!
और सिर्फ एक ही बात निडरता से करते रहिए,
बस,कैसे जीना है शान से ?
जो संघर्ष करना पड़े,
उल्टा-सीधा प्रयत्न करते रहिए।

खुले आकाश के नीचे जोर से चिल्लाइए…
क्योंकि
अब देश स्वतंत्र है,
और
हम उससे ज्यादा स्वतंत्र हैं।

बस! एक तथ्य चाह कर भी,
मत कभी भूलिए
कि
‘राजनीति हमारे जीवन का अभिन्न अंग है।’
एक बार फिर
सिर्फ…!
और सिर्फ एक यही बात निडरता से कहते रहिए-
‘बाकी सबसे तंग हैं,राजनीति से हमारी जंग है॥’

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