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रूह से रूह तक

राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
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रूह से निकलती है
जब ‘आह’,
शब्दों को मिल जाते हैं अर्थ-
बन जाती है कविता।

शब्दों की ध्वनि से
कविता में ढलता है गीत,
आत्मा में मिलकर-
बन जाता संगीत।

संगीत में जब लय
आरोह-अवरोह में मिल,
बनती है सृजन-
लय में आ जाता कम्पन।

कम्पन से हिल उठते
मन-वीणा के तार,
वीणा के तार करते सम्मोहित-
मन से मन के तार।

मंत्र-मुग्ध और मन-स्थिर
स्थिर-मन से जुड़ जातेl
मन के तार-रूह से जुड़ते,
बन जाते अनहद-नादll

परिचय– राजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।

 

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