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मानक है हिन्दी वतन

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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हिंदी दिवस विशेष…..

हिन्दी पखवाड़ा दिवस,चलो मनाऊँ आज।
जनभाषा निज देश में,रक्षण निज मोहताज़ll

अभिनंदन स्वागत करूँ,हिन्दी दिवस आगाज़।
इस स्वतंत्र गणतंत्र में,तरसे हिन्द समाजll

सिसक रही निज देश में,निज वजूद सम्मान।
हिन्द देश हिन्दी वतन,निज रक्षण अपमानll

बाँध वतन जो एकता,दर्पण भारत शान।
जनभाषा तीसरी बड़ी,सहे हिन्द अवमानll

साजीशें ये कब तलक,भिक्षाटन अस्तित्व।
जनभाषा हिन्दी वतन,माँग रहा है स्वत्वll

निज वाणी मधुरा प्रिया,हिन्दी नित सम्मान।
भारत की जन अस्मिता,बने एकता शानll

नित यथार्थ सुन्दर सुलभ,सूत्रधार जन देश।
संस्कृत तनया जोड़ती,हिन्द वतन संदेशll

कण्ठहार जनभाष बन,विविध रीति बन प्रीत।
आन बान शाने वतन,हिन्दी है उद्गीतll

श्रवण कथन सम लेखनी,काव्यशास्त्र उद्गीत।
मानक है हिन्दी वतन,लोकतंत्र नवनीतll

शब्द अर्थ अधिगम सुलभ,साहित्यिक सत्काम।
समरसता नवरंग से,हिन्दी है अभिरामll

बने धरोहर राष्ट्र की,नव विकास आधार।
हिन्दी भाषा शुभ वतन,राष्ट्र भाष अधिकारll

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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