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…तो समझ लेना

सारिका त्रिपाठी
लखनऊ(उत्तरप्रदेश)
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जब मेरी नज़्में खामोश हो जाएं,
जब पुकारना बंद कर दें तुम्हें
तो समझ लेना,
सो गई हूँ तनहाइयां ओढ़कर,
तुम्हारी परछाइयां ओढ़कर…।
जब कभी अचानक ही मन बहुत बेचैन हो जाए,
तो समझ लेना…
कि चली गई हूँ,अपनी बेचैनियां छोड़ कर…।
कभी बात-बात पर जो नयन छलक जाएं,
तो समझ लेना कि…
मन में हाहाकार मचाता,अथाह समन्दर लेकर,
गुम हो गई हूँ,गंगा की निर्मल धारा में…।
जब कभी घनघोर बारिशें तुम्हें भिगो दें,
तो समझना कि मैं ही
बादलों में बैठी रो रही हूँ…।
जब कभी कोई सिर पे हाथ रख दे
आशीषों के,
और मन अनायास ही भर आए
तो समझना,
मैं इसी पल के लिए तरसते…
असीसते-असीसते,
चली गई वहां…
जहां नज़्में लिखने का रिवाज़ नहीं…॥

परिचय-सारिका त्रिपाठी का निवास उत्तर प्रदेश राज्य के नवाबी शहर लखनऊ में है। यही स्थाई निवास है। इनकी शिक्षा रसायन शास्त्र में स्नातक है। जन्मतिथि १९ नवम्बर और जन्म स्थान-धनबाद है। आपका कार्यक्षेत्र- रेडियो जॉकी का है। यह पटकथा लिखती हैं तो रेडियो जॉकी का दायित्व भी निभा रही हैं। सामाजिक गतिविधि के तहत आप झुग्गी बस्ती में बच्चों को पढ़ाती हैं। आपके लेखों का प्रकाशन अखबार में हुआ है। लेखनी का उद्देश्य- हिन्दी भाषा अच्छी लगना और भावनाओं को शब्दों का रूप देना अच्छा लगता है। कलम से सामाजिक बदलाव लाना भी आपकी कोशिश है। भाषा ज्ञान में हिन्दी,अंग्रेजी, बंगला और भोजपुरी है। सारिका जी की रुचि-संगीत एवं रचनाएँ लिखना है।

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